छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित अबूझमाड़ के अंदरुनी हिस्से में पूरी तरह से आज तक कोई सरकार नहीं पहुंच पाई है। यहां सिर्फ चर्च की पहुंच है। नक्सलवाद और चर्च के बीच क्या गठजोड़ है, इस पर बात होनी चाहिए। एक और महत्वपूर्ण बात, नक्सलियों के ऊंचे कैडर और निचले कैडर में एक टकराव है।
ऊंचा कैडर ज्यादातर तेलंगाना का या आंध्र प्रदेश का है, उसे मूल संस्कृति से कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन जो निचला कैडर है वह स्थानीय है। निचले कैडर को अपनी संस्कृति, पूजा-पद्धति और चर्च द्वारा किए जा रहे हमलों की चिंता है।
निचला कैडर नहीं चाहता कि चर्च को सहयोग करे, ऊंचा कैडर चर्च को सहयोग करना चाहता है, क्योंकि उसे रणनीतिक निर्णय लेने होते हैं। नक्सली छोटी बच्चियों का शारीरिक शोषण भी करते हैं।
यहां कई गांव हैं, जहां माता—पिता को इच्छा के विरुद्ध बच्चियों को नक्सलियों को सौंपना पड़ता है। प्रेम करने और विवाह करने की अनुमति नहीं है। यदि किसी कारण से विवाह हो भी गया तो बच्चा पैदा करने की अनुमति नहीं है। कुछ वर्ष पूर्व नारायणपुर के पास एक गांव में नक्सलियों ने कैडर में किशोर लड़के—लड़कियों को जबरन शामिल किया था। उन्हें आपस में प्रेम हो गया तो उन्हें जिंदा जला दिया गया।
इलाके में किसी के पास ट्रैक्टर है, तो नक्सली सालाना 20,000 रुपये टैक्स वसूलते हैं। दुकान, बाइक आदि के लिए वसूली की दर तय है। क्षेत्र में यदि नक्सली चाहते हैं कि शत-प्रतिशत मतदान हो, तो होता है। यदि वह चाहते हैं कि मतदान नहीं हो, तो वैसा भी होता है। जो नक्सलियों ने कह दिया वही कानून है।
छत्तीसगढ़ में जनजाति समाज का बड़ा वर्ग है और वह सनातन सभ्यता का मूल है, लेकिन उन्हें जनगणना में धर्म कॉलम में ‘अन्य’ लिखने के लिए प्रोत्साहित किया गया। यह काम यहां चर्च ने किया। यहां योजनाबद्ध तरीके से जनजातीय समाज को पहले उन्हें धर्म से भटकाया जाता है, फिर उनका कन्वर्जन करा दिया जाता है।
अमेरिका में बाहर से आए लोगों ने वहां के मूल निवासियों का नरसंहार किया। इसके चलते हर साल 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस मनाने की परंपरा शुरू हुई। इसे हमारे देश में भी लागू कर दिया गया। संविधान में आदिवासी शब्द का उल्लेख नहीं है, वहां जनजाति शब्द प्रयुक्त हुआ है। इसके लिए हमने एक अभियान चलाया और एक कार्ड निकाला। उस पर लिखा कि हम सब भारतवासी मूल निवासी हैं।
बस्तर में एक व्यक्ति ने उसे एक व्हाट्सएप ग्रुप में डाल दिया तो उसे 500 लोगों ने घेर लिया। उस पर 50 हजार का जुर्माना लगाया। माफी मांगने के लिए मजबूर किया। एक और कहानी जनजातीय समाज को भटकाने के लिए गढ़ी गई कि रावण वनवासियों का राजा है।
दण्डकारण्य उसकी राजधानी थी और महिषासुर उनके पूर्वज हैं। योजनाबद्ध तरीके से छत्तीसगढ़ की छवि को खराब करने की कोशिश की गई, जैसे भूखे नंगों का राज्य हो। कुछ लोग पूछते हैं कि वहां घरों में रहते हैं या जंगलों में? कपड़े पहनते हैं या नहीं? कुछ के दिमाग में ऐसी भी छवि है कि जैसे ही आप रायपुर एयरपोर्ट पर उतरेंगे वहां नक्सली आपको गोलियों से भून देंगे।
स्थिति बिल्कुल इसके उलट है। सीता बेंगरा की गुफा को विश्व की प्राचीनतम नाट्यशाला माना जाता है। प्राचीन भारत के 16 महाजनपदों में से एक महाजनपद छत्तीसगढ़ को भी माना जाता है। कला और संस्कृति में भी छत्तीसगढ़ आगे है। जब हम छत्तीसगढ़ के समाज को देखते हैं तो उसकी सरलता उसकी सहजता देखकर हम उसके बौद्धिक रूप से पिछड़े होने की एक छवि बना लेते हैं, जबकि ऐसा नहीं है। बार-बार जब छत्तीसगढ़ के नकारात्मक पक्षों को उठाया जाता है, तो यह छत्तीसगढ़ के मानस पर असर करता है।
हमारा राज्य विकसित होने का प्रयास कर रहा है। आगे बढ़ाने के लिए पूरा जोर लगा रहा है, सरकार भी अपना प्रयास कर रही है। इसके लिए सभी से अपेक्षा है कि छत्तीसगढ़ की सही छवि बनाई जाए। पूर्वाग्रह का चश्मा पहनकर छत्तीसगढ़ को न देखा जाए। दिल्ली में बैठकर छत्तीसगढ़ के बारे में लिखा जाता है। छत्तीसगढ़ घूमिए, उसे समझिए और फिर इसके बारे में लिखिए।
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