सर संघचालक श्री मोहन भागवत जी का 30 जुलाई को श्रीमद दयानन्द कन्या गुरुकुल महाविद्यालय चोटीपुरा, अमरोहा में मंगल आगमन होगा। वह इस गुरुकुल महाविद्यालय में निर्मित नूतन भवन- संस्कृति-नीडम् का उद्घाटन करेंगे। इस पुनीत अवसर पर केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के कुलपति आचार्य प्रो. श्रीनिवास वरखेडी की भी गरिमामयी उपस्थिति रहेगी। महर्षि दयानन्द सरस्वती की 200वीं जयन्ती के उपलक्ष्य में आयोजित इस समारोह का शुभारम्भ सुबह 10:30 बजे अतिथि स्वागतम् से होगा।
इसे भी पढ़ें: बाइडेन के बाद डेमोक्रेट की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार होंगी कमला हैरिस! कहा-‘मेरा इरादा नामांकन अर्जित कर जीतना है’
यह जानकारी गुरुकुल की मुख्य अधिष्ठात्री एवम् प्राचार्या डॉ. सुमेधा जी ने दी है। उपनयन वेदारम्भ संस्कार 11 बजे से 11:45 तक चलेगा। नूतन भवनोद्घाटन और वृक्षारोपण 11:45 से 12:10 तक होगा। सांस्कृतिक कार्यक्रम 02 बजे से 4:30 तक चलेंगे। केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय जनकपुरी, नई दिल्ली से संबद्ध इस नूतन महाविद्यालय भवन में छात्राओं के अध्ययन के लिए शास्त्री और आचार्य की कक्षाओं का संचालन किया जाएगा।
इसमें कुल 32 कक्ष निर्मित किए गए हैं,जिनमें 20 लघु और 12 बृहद् कक्ष हैं । उल्लेखनीय है, इस गुरुकुल में 20 प्रांतों की 1200 बालिकाएं आवासीय व्यवस्था में विद्याभ्यास एवम् व्रताभ्यास की शिक्षा ग्रहण कर संस्कृत और संस्कृति की रक्षा में संलग्न हैं।
वैदिक संस्कृति की आधारभूत आर्षपरम्परा का संरक्षण एवम् संवर्धन गुरुकुल पद्धति का मुख्य लक्ष्य है। पुरातन सनातन परम्परा का पालन करते हुए ऋषियों के सिद्धांतों को अगली पीढ़ी में पहुंचाने के लिए प्रतिवर्ष गुरुकुल में नूतन प्रविष्ट छात्राओं का उपनयन और वेदारम्भ संस्कार किया जाता है। इस वर्ष यह पवित्र संस्कार 30 जुलाई को हो रहा है। गुरुकुल की मुख्य अधिष्ठात्री डॉ. सुमेधा जी कहती हैं, हमारी यह आर्षपरम्परा है कि उपनयन वेदारम्भ संस्कार के बाद अन्तेवासी गुरुकुल तीर्थ में ज्ञान जल से स्नान कर अपने जीवन को धन्य बनाते हैं।
डॉ. सुमेधा जी बताती हैं, उपनिषदों में कहा है, गुरू शिष्य का संबंध गर्भस्थ शिशु की तरह होता है। जैसे शिशु माता से पुष्ट होता है, वैसे ही शिष्य आचार्य ज्ञान से पुष्ट होता है। गुरुकुल संस्कृति की संवाहिका डॉ. सुमेधा जी ने उम्मीद जताई, नूतनोपनयन के लिए सभी ब्रहमचारिणियां दोनों महानुभावों के आशीर्वाद से न केवल अनुगृहीत होंगी, बल्कि विद्यारम्भ से विद्या समाप्ति पर्यंत इस गुरुतीर्थ में सफलता को प्राप्त करेंगी।
इसे भी पढ़ें: धरोहरों के संरक्षण में भारत ने कई देशों की मदद की, ये यूनेस्को के लिए प्रेरणा है : ऑद्रे अजोले
उल्लेखनीय है, 1988 में स्थापित यह गुरूकुल 10 एकड़ में आच्छादित है। गुरुकुल की छात्राओं का हमेशा स्वर्णिम करियर रहा है। आईएएस और आईपीएस चयन से लेकर खेलों की राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पार्धाओं में सैकड़ों मेडल्स यहां की छात्राओं की झोली में हैं। नेट और जेआरएफ उत्तीर्ण करने वालों का प्रतिशत भी गौरवमयी है।
टिप्पणियाँ