नई दिल्ली, (हि.स.)। विश्व धरोहर समिति की बैठक के उद्घाटन सत्र में यूनेस्को की महानिदेशक ऑद्रे अजोले ने कहा कि भारत ने ऐतिहासिक स्मारकों और विरासत को सहेजने और संरक्षण में कई देशों की सहायता की है। स्वयं अपने देश में 3600 से अधिक ऐतिहासिक विरासत का संरक्षण किया है। भारत यूनेस्को के लिए प्रेरणा है।
रविवार को भारत मंडपम में शुरू हुए समिति की बैठक में ऑद्रे अजोले ने सभी का अभिवादन नमस्ते से किया और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का आभार व्यक्त किया। अजोले ने संबोधन में कहा कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण(एएसआई) ने 160 साल से भारत के 3600 प्राचीन धरोहरों का संरक्षण किया है। विश्व में एएसआई ने कई स्मारकों, प्राचीन धरोहरों का संरक्षण करने में यूनेस्को का सहयोग किया है। विशेषरूप से कंबोडिया में प्राचीन विष्णु मंदिर अंगकोरवाट मे एएसआई ने अभूतपूर्व संरक्षण का काम किया है। भारत की प्राचीन विरासत के संरक्षण के प्रति प्रतिबद्धता सभी के लिए प्रेरणादायक है।
उन्होंने उम्मीद जताई कि भारत विश्व के धरोहरों को सहेजने की दिशा में अपना सहयोग देता रहेगा। अजोले ने कहा कि यूनेस्को जो प्राचीन धरोहरों के संरक्षण की दिशा में काम कर रहा है उसके सामने ऐतिहासिक स्मारकों के संरक्षण में चुनौतियां भी अधिक है। जलवायु परिवर्तन और डिजीटल क्रांति युग में भी हम संरक्षण के प्रति दृढसंकल्प के साथ आगे बढ़ रहे हैं और इसे आने वाली पीढ़ी को भी सौंपने के लिए तैयार है। इसी उद्देश्य से 31 देशों से आए युवाओं को प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है।
विश्व धरोहरों का उल्लेख करते हुए महानिदेशक ने कहा कि भारत के सभी 42 विश्व धरोहर भूत, भविष्य और वर्तमान पीढी को दर्शाते हैं। कालबेलिया, गरबा, चांस नृत्य यनेस्को के अमूर्त सूची में शामिल है। भारत की प्रतिबद्धता अपनी धरोहर को संरक्षित और सुरक्षित रखने की दिशा में अभूतपूर्व है। पिछले साल भारत की अध्यक्षता में आयोजित जी 20 की बैठक में विश्व के सतत विकास के लिए संस्कृति और विरासत को केन्द्र में रखा गया। भारत की अध्यक्षता में हुई बैठक में काशी कल्चरल पाथवे को अपनाया गया जो अवैध रूप से ट्रैफकिंग और सांस्कृतिक धरोहरों को वापस लाने की दिशा में काम करेगा। भारत अपने ऐतिहासिक विरासत के संरक्षण के साथ प्राकृतिक संपदा के संरक्षण के लिए भी काम कर रहा है। भारत के कर्म ही धर्म है के सिद्धांत पर पूरा विश्व आगे बढ़ेगा।
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