गुरु पूर्णिमा सनातन धर्म को युग धर्म के रूप में प्रतिष्ठापित करने का पर्व : स्वामी रामदेव
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गुरु पूर्णिमा सनातन धर्म को युग धर्म के रूप में प्रतिष्ठापित करने का पर्व : स्वामी रामदेव

स्वामी रामदेव ने कहा कि भारत से पूरी दुनिया को शिक्षा, चिकित्सा के क्षेत्र में पारिवारिक, आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक जीवन में नई दिशा मिलेगी। यह दिशा देने का कार्य भारत गुरु देश के रूप में करता रहा है, इसीलिए भारत विश्वगुरु रहा है

by दिनेश मानसेरा
Jul 21, 2024, 06:32 pm IST
in उत्तराखंड
आचार्य बालकृष्ण का सम्मान करते स्वामी रामदेव।

आचार्य बालकृष्ण का सम्मान करते स्वामी रामदेव।

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हरिद्वार: गुरु-शिष्य की पवित्र परम्परा का प्रतीक ‘गुरु पूर्णिमा’ पर्व पतंजलि योगपीठ के संस्थापक अध्यक्ष स्वामी रामदेव और महामंत्री आचार्य बालकृष्ण के सान्निध्य में पतंजलि वैलनेस, योगपीठ-2 स्थित योगभवन ऑडिटोरियम में मनाया गया। इस अवसर पर स्वामी रामदेव ने कहा कि गुरु पूर्णिमा भारत की गुरु परम्परा, ऋषि परम्परा, वेद परम्परा व सनातन परम्परा का बहुत ही गौरवपूर्ण व पूर्णता प्रदान करने वाला पर्व है।

उन्होंने कहा कि अलग-अलग कारणों से पूरी दुनिया में इस्लाम, इसाईयत, वामपंथ, पूंजीवाद और अलग-अलग प्रकार के वैचारिक उन्माद भौतिकवाद, बौद्धिक आतंकवाद, मजहबी आतंकवाद, राजनीति, आर्थिक, मेडिकल और एजुकेशनल टैरेरिज्म सब बेपर्दा हो चुके हैं। ऐसे में सबकी दृष्टि भारत की ओर है कि भारत से पूरी दुनिया को शिक्षा, चिकित्सा के क्षेत्र में पारिवारिक, आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक जीवन में नई दिशा मिलेगी। यह दिशा देने का कार्य भारत गुरु देश के रूप में करता रहा है, इसीलिए भारत विश्वगुरु रहा है।

उन्होंने कहा कि भारत अपनी उस भूमिका में पुनः आए, इसके 100 करोड़ से अधिक सनातनधर्मी अपने गुरुओं के सच्चे प्रतिनिधि बनें। योग तत्व, वेद तत्व व सनातन तत्व को अपने जीवन व आचरण में धारण करें। हमारे आचरण से किसी भी प्रकार से हमारी गुरु, ऋषि, वेद व सनातन परम्परा कलंकित नहीं होनी चाहिए। गुरु पूर्णिमा का पर्व सनातन धर्म को युग धर्म के रूप में प्रतिष्ठापित करने का पर्व है।

कांवड़ मेले के दौरान प्रशासन द्वारा अस्थाई दुकानों व ढाबा मालिकों के नाम के सत्यापन को लेकर स्वामी जी ने कहा कि जब रामदेव को अपनी पहचान बताने में कोई दिक्कत नहीं है, तो रहमान को क्यों दिक्कत होनी चाहिए। अपने नाम पर तो सबको गौरव होता है। नाम छिपाने की कोई जरूरत नहीं है, अपने कार्य में शुद्धता व पवित्रता लाने की आवश्यकता है।

कांवड़ मेले को लेकर उन्होंने कहा कि कांवड़ के यात्री शिवत्व धारण कर ऐसा आचरण करें कि सबको लगे कि यह कांवड़िया नहीं अपितु साक्षात शिव-पार्वती का साक्षात विग्रह जा रहा है।

केदारनाथ धाम को लेकर स्वामी जी ने कहा कि जो हमारे देव स्थान या बड़े तीर्थ हैं, उनका कोई विकल्प नहीं हो सकता। जो भगवान के द्वारा बनाए गए धाम हैं, उन्हें कोई इन्सान नहीं बना सकता। धामी सरकार ने जो चारों धामों को पेटेंट करने का निर्णय लिया है, वह प्रशंसनीय है।

इस अवसर पर आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि गुरु पूर्णिमा का यह पर्व हम सबके जीवन में सात्विकता व पवित्रता लेकर आए। हम अपने पूर्वजों के जीवन के आधार पर जीवन जीने का संकल्प लें। जीवन में हम अच्छे व सच्चे बनना चाहते हैं तो इसके लिए सफल, सक्षम महापुरुष के सान्निध्य की आवश्यकता होती है। सीखाने व ज्ञान देने वाले को ही हमारे शास्त्रों में गुरु कहा गया है। सब गुरुजनों को भी इस दिवस पर प्रणाम। अपने जीवन में किसी ऐसे आदर्श गुरु, महापुरुष का आश्रय व आलम्बन लें जिससे जीवन के अनसुलझे पहलू सुलझ जाएं।

कांवड़ यात्रा के विषय में आचार्य बालकृष्ण ने कांवड़ियों से आह्वान किया कि आप बड़ा तप कर रहे हैं तो आपकी वाणी व व्यवहार में भी संयम झलकना चाहिए। श्रद्धा-भक्ति में न तो उद्दण्डता होनी चाहिए और न ही किसी को कष्ट होना चाहिए। इस अवसर पर पतंजलि योगपीठ से सम्बद्ध सभी इकाईयों के सेवाप्रमुख, संन्यासीगण, इकाई प्रमुख, विभागाध्यक्ष तथा प्रभारीगण एवं छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।

नवप्रवेशित छात्र-छात्राओं का दीक्षारम्भ व यज्ञोपवीत

गुरु पूर्णिमा के पावन पर्व पर योगभवन सभागार में पतंजलि विश्वविद्यालय के नवप्रवेशित लगभग 272 छात्राओं तथा 150 छात्र सहित कुल 422 विद्यार्थियों का दीक्षारम्भ व उपनयन संस्कार वैदिक रीति से सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर स्वामी रामदेव व कुलपति आचार्य बालकृष्ण ने विद्यार्थियों को यज्ञोपवित धारण कराकर आशीर्वाद दिया। स्वामी रामदेव ने विद्यार्थियों को संकल्प दिलाया कि जीवन के अंतिम श्वास तक यज्ञोपवित धारण करना है। उन्होंने कहा कि हमें अपने सनातन धर्म, वेद धर्म, ऋषि धर्म तथा अपने पूर्वजों में दृढ़ता होनी चाहिए। अपनी सांस्कृतिक विरासत तथा सनातन मूल्यों के साथ हम भारत ही नहीं पूरे विश्व का नेतृत्व करने में सक्षम हैं। स्वामी जी ने कहा कि व्यक्ति नहीं व्यक्तित्व की पूजा करो, चित्र नहीं चरित्र की पूजा करो। अपना पुरुषार्थ करो और गुरु व भगवत् कृपा से आगे बढ़ते रहो।

आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि यज्ञोपवित मात्र प्रतीक नहीं है, यह हमारे सौभाग्य का पर्व है। जीवन के पूर्वार्द्ध के बाद आप उत्तरार्द्ध की ओर जाएँगे यानि शिक्षा के उपरान्त सेवा कार्य करेंगे तब आपको यज्ञोपवीत की महत्ता का आभास होगा। उन्होंने आह्वान किया कि आप अपने पूर्वज ऋषि-ऋषिकाओं के अनुगामी बनें, उनके प्रतिनिधि बनें। आचार्य जी ने कहा कि आपको समाज में व्याप्त अज्ञानता व भ्रम को मिटाकर सनातन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करना है।

Topics: स्वामी रामदेवकांवड़ यात्रागुरु पूर्णिमाआचार्य बालकृष्ण
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