जिन्ना के कंगाल इस्लामी देश के साथ मुस्लिम ब्रदरहुड का पैरोकार तुर्किए सदा खड़ा रहा है। इस वजह से अंतरराष्ट्रीय विषयों की जहां तक बात है तो भारत ने तुर्किए का विरोध किया है। भारत इस बात को कभी छुपाया नहीं है कि एजियन सागर में जिस प्रकार का तुक्रिए और ग्रीस के बीच तनाव चल रहा है, उसमें वह ग्रीस के पाले में खड़ा है।
खुद को इस्लामी ब्रदरहुड का ठेकेदार और मुलसमानों का खलीफा बताने वाले तुर्किए के राष्ट्रपति ने भारत को बेचे जाने वाले फौजी हथियारों पर फिलहाल एकतरफा रोक लगाने का गुपचुप फरमान जारी किया है। यह वही राष्ट्रपति रेसेप तैयब एर्दोगन हैं जो कश्मीर के मुद्दे पर जिन्ना के कंगाल देश के सुर में सुर मिलाते रहे हैं। लेकिन एर्दोगन के इस कदम से भी फिलहाल भारत के साथ उन्होंने अपने रिश्ते में खटास पैदा कर दी है।
एर्दोगन की सरकार की तरफ से भारत को सैन्य हथियार न बेचने के एकतरफा फैसले को लेकर कोई अधिकृत बयान सामने नहीं आया है।सवाल है कि क्या इसके पीछे भारत के प्रति दुनियाभर में झूठ फैलाते आ रहे पाकिस्तान की कोई शरारत है या कहीं और से एर्दोगन पर दबाव है!
लेकिन इस ताजा घटनाक्रम ने तुर्किए के असली चेहरे से एक बार नकाब हटाया है। बताया गया है कि तुर्किए के राष्ट्रपति एर्दोगन की तरफ से भारत को सैन्य हथियार बेचने की बात पर चुप्पी साध ली गई है। इसीलिए उनकी सरकार ने भी इस दृष्टि से कोई बयान जारी नहीं किया है।
भले तुर्किए सरकार की ओर से ऐसा कोई बयान जारी नहीं हुआ है, लेकिन उस देश की पार्लियामेंट में एर्दोगन की यह मंशा उजागर होती है। शायद अनजाने में तुर्किए में रक्षा उद्योग के उपाध्यक्ष ने अपने एक बयान से इस बात का संकेत कर दिया था। उपाध्यक्ष मुस्तफा मूरत सेकर बोल तो गए, लेकिन अपनी गलती का भान होने के बाद से मुस्तफा ने इस बिंदु पर मुंह सिल लिया है।
तब संसद में मुस्तफा बोल गए थे कि भारत को तुर्किए सरकार कोई सैन्य उपकरण नहीं बेचने वाली; सभी आदेश रोक दिए गए हैं। मुस्तफा भूल गए थे कि उनकी सरकार ने इस संबंध में कोई सार्वजनिक बयान जारी नहीं किया है। लेकिन बात सामने आ गई। मुस्तफा ने यह भी बताया कि भारत विश्व के पांच चोटी के हथियार खरीदने वाले देशों में से एक के नाते बहुत बड़ा बाजार है।
तुर्किए के रक्षा उद्योग उपप्रमुख ने आगे कहा, लेकिन उनके देश के राजनीतिक हालातों तथा पाकिस्तान—तुर्किए संबंधों को देखते हुए तुर्किए का विदेश विभाग भारत को कैसे भी सैन्य उत्पाद भेजने के अनुरोधों को दबाकर बैठ जाता है। यही वजह है कि तुर्किए की किसी कंपनी को भारत को हथियार बेचने का परमिट देना रुक गया है।
पता चला है कि भारत को सैन्य आपूर्ति से संबंधित कागजात आगे बढ़ते तो हैं लेकिन फिलहाल उन्हें कहीं दबा दिया जा रहा है। इसके पीछे विशेषज्ञों को एक वजह तो नजर आती है, लेकिन वही वजह सही है ऐसा कहना अभी थोड़ी जल्दी होगी।
तो फिर वजह क्या है? ज्यादा पुरानी बात नहीं है। भारत में जहाज निर्माण में तुर्किए की एक कंपनी भी शामिल थी, उसके साथ अनुबंध किया गया था। लेकिन अभी गत अप्रैल माह पहले ही उसके साथ वह अनुबंध निरस्त किया गया था। लगभग उसी कदम के बाद तुर्किए ने भारत को बेचे जाने वाले सैन्य हथियारों को रोक दिया है।
जैसा पहले बताया, जिन्ना के कंगाल इस्लामी देश के साथ मुस्लिम ब्रदरहुड का पैरोकार तुर्किए सदा खड़ा रहा है। इस वजह से अंतरराष्ट्रीय विषयों की जहां तक बात है तो भारत ने तुर्किए का विरोध किया है। भारत इस बात को कभी छुपाया नहीं है कि एजियन सागर में जिस प्रकार का तुक्रिए और ग्रीस के बीच तनाव चल रहा है, उसमें वह ग्रीस के पाले में खड़ा है।
तुर्किए भारत के इस मत से भौंहें तिरछी किए हुए बैठा है। उसने खुलकर भारत विरोधी बयान दिए हैं। इसे देखते हुए भारत ने जहाज बनाने में शामिल तुर्किए की एक कंपनी का अपने साथ अनुबंध निरस्त किया था।
वह अनुबंध भारत के प्रमुख उद्यत हिंदुस्तान शिपयार्ड लिमिटेड द्वारा भारतीय नौसेना के लिए 5 सहयोगी जहाजों को बनाने में तुर्किए की कंपनी के साथ किया था। लेकिन फिर उन्हें हटाते हुए 22,000 करोड़ रु. के समझौतों को निरस्त कर दिया था। भारत ने अकेले ही जहाज बनाने का काम करने का निर्णय लिया था।
इतना ही नहीं, भारत ने ग्रीस राष्ट्रीय प्रतिरक्षा स्टाफ प्रमुख को देश के सैन्य हवाईअड्डे पर मुख्य अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया था। भारत के इस कदम से तुर्किए को काफी मिर्ची लगी थी। हालांकि भारत ने तुर्किए के कश्मीर के विषय में तथ्यों को जाने बिना पाकिस्तान के सुर में सुर मिलाए जाते रहने के विरोध में तुर्किए की कंपनी को बाहर का रास्ता दिखाया था। लेकिन इस पर तुर्किए ने बहुत अपरिपक्वता दर्शाते हुए भारत को सैन्य हथियारों को बेचने की फाइलें दबा दीं।
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