अनुच्छेद 370 हटने के बाद कश्मीर के शांत वातावरण में जहां बॉलीवुड हस्तियां फिल्मों की शूटिंग में व्यस्त हैं, ऐसे में ‘प्रहार’ और ‘क्रांतिवीर’ जैसी फिल्मों के माध्यम से अपने अभिनय का लोहा मनवाने और भारतीय सेना के प्रति आस्था जताने वाले वरिष्ठ अभिनेता नाना पाटेकर एक अनूठा काम कर रहे हैं। उन्होंने भारतीय सेना के साथ मिलकर पाकिस्तान की सीमा से सटे इस केंद्र शासित प्रदेश के बच्चों में शिक्षा की अलख जगाकर उन्हें मुख्यधारा में लाने का अभियान शुरू किया है।
पांच साल पहले 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 हटने के बाद कश्मीर आतंकवाद के रास्ते को त्याग कर शांति के पथ पर चलने लगा है। सूबे में कानून का राज स्थापित होने लगा है। हर स्तर पर यहां के युवा वर्ग को उचित माहौल देने की कोशिशें हो रही हैं। इस समय प्रदेश सरकार जहां खेल और बुनियादी ढांचे को सुधारने और पूंजीनिवेश लाने के प्रयासों में लगी है, वहीं नाना पाटेकर की गैर सरकारी संस्था ‘नाम’ ने कश्मीरी बच्चों को शिक्षा का बेहतर माहौल देने के लिए भारतीय सेना से हाथ मिलाया है।
अभिनेता नाना पाटेकर के बेहद खास ‘नाम फाउंडेशन’ का काम सीईओ गणेश थोराट और नाना के बेटे मल्हार संभाल रहे हैं। थोराट का कहना है-‘‘शिक्षा का माहौल अच्छा होगा तो बच्चे अपने आप सही रास्ते पर चल पड़ेंगे। काफी समय तक शोध करने के बाद एक व्यापक योजना बनी है जिसके माध्यम से काम को सिरे चढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है। कश्मीर में शिक्षा का बेहतर माहौल तैयार करने को कुछ बड़ी कंपनियों से भी बात की जा रही है। योजना का खाका ऐसा है कि स्थानीय लोग अपने स्तर पर इसकी निगरानी कर सकेंगे।’’
श्रीगणेश नियंत्रण रेखा के गांव से
इस अभियान का श्रीगणेश पाकिस्तान की सीमा से लगते गग्गर हिल प्राइमरी स्कूल से किया गया है। पिछले दिनों इसका उद्घाटन हुआ। जानकारी के अनुसार, भारतीय सेना चिनार कोर और ‘नाम फाउंडेशन’ के सहयोग से इस प्राइमरी स्कूल का जीर्णोद्धार किया गया। इसका लाभ आस-पास के गांवों के छात्रों को मिलेगा। स्कूल के उद्घाटन कार्यक्रम के दौरान बच्चों के बीच आवश्यक स्कूली सामान वितरित किया गया। साथ ही महिला सशक्तिकरण और कौशल विकास को बढ़ावा देने की खातिर ग्रामीण महिलाओं को सिलाई- कढ़ाई मशीनें और अन्य सामग्री भी उपलब्ध कराई गई।
इसके अलावा नाम फाउंडेशन और सेना के सहयोग से स्थानीय युवाओं को आवश्यक कौशल के साथ सशक्त बनाने के लिए चिनार 9 जवान क्लब, बोनियार की स्थापना की गई है।
परियोजना के संदर्भ में गणेश थोराट ने बताया कि कश्मीर के बोनियार क्षेत्र में शिक्षा और स्वरोजगार का माहौल तैयार करने के लिए ‘नाम फाउंडेशन’ और भारतीय सेना की परोपकारी साझेदारी में बुनियादी ढांचे के विकास, विभिन्न स्कूलों के जीर्णोद्धार और चिनार नौजवान क्लब, बोनियार के छात्रों को आवश्यक वस्तु उपलब्ध कराकर बोनियार में भारत के अनुकूल माहौल तैयार करने का प्रयास चल रहा है।
नाना के बेटे मल्हार के अनुसार, ‘‘यह इलाका नियंत्रण रेखा के बिल्कुल पास है। यहां के गग्गर हिल प्राइमरी स्कूल का नवीनीकरण किया गया है ताकि छात्रों को शिक्षा का उचित माहौल, सुविधा और सुरक्षा मिल सके। गग्गर हिल, चोटाली और कुराली के दूरदराज गांवों के छात्रों और उनके परिवारों को जिम्मेदार और सशक्त बनाया जा सके, इसलिए स्कूल के बच्चों को पढ़ाई की सामग्री और वर्दी देने के अलावा उनके परिजनों को स्वावलंबी बनाने की योजना पर काम चल रहा है।
काम से प्रभावित हैं सरहद के ग्रामीण
थोराट कहते हैं, ‘‘यहां पर काम करने के दौरान गांव वालों ने कभी इसका एहसास नहीं होने दिया कि वे दूसरे प्रदेश के हैं। अन्य जाति-पंथ के सभी लोगों ने जमकर आव-भगत की। यहां के बाद बारामूला में अभियान शुरू होगा। शिक्षा के छोटे-मोटे कार्यों से धीरे-धीरे पूरे कश्मीर में योजना को विस्तार दिया जाएगा। ‘नाम’ और सेना के मुताबिक माहौल तैयार होने के बाद शिक्षा को लेकर कई बड़ी परियोजनाएं शुरु करने का इरादा है जिसका भरपूर लाभ घाटी के युवा उठा सकेंगे।’’
थोराट पेशे से सिविल इंजीनियर हैं, इसलिए नाना ने स्कूलों के जीर्णोद्वार की जिम्मेदारी विशेष तौर से उन्हें सौंपी है। तकरीबन 10 साल पुरानी बात है। एक बार नाना को भी अन्य अभिनेताओं की तरह महंगी कार खरीदने का ख्याल आया। इसके लिए उन्होंने डेढ़ करोड़ रुपए इकट्ठे भी कर लिए। इस बीच एक दिन उन्होंने महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्या करने की खबर पढ़ी तो कार खरीदने का इरादा त्याग दिया और कार के लिए जमा किए गए सारे पैसे एक हजार किसानों में वितरित कर दिए। बाद में किसानों की निरंतर सहायता करने के लिए नाना पाटेकर ने मराठी अभिनेता मकरंद अनासपुर के साथ मिलकर 2015 में गैर सरकारी संगठन ‘नाम फाउंडेशन’ की स्थापना की। नाना कहते हैं, ‘‘नाम एक संस्था नहीं बल्कि एक आंदोलन है।
महाराष्ट्र में विनाशकारी सूखे और किसानों को पीड़ादायक स्थिति से उबारने के लिए निरंतर काम किया जा रहा है। इसके लिए गांवों के विकास, किसानों की आत्महत्या को रोकने और जल संकट दूर करने के लिए तरह-तरह की परियोजनाएं चलाई जा रही हैं। इसके अलावा ‘नाम फाउंडेशन’ किसानों को शिक्षित कर संग्रहीत भूजल के उपयोग में संतुलन बहाल करने, मौजूदा नहरों और परित्यक्त जल परियोजनाओं को पुनर्जीवित करने के प्रयासों में भी लगा है। इसमें से कई परियोजनाएं सफलतापूर्वक अंजाम तक पहुंच भी चुकी हैं और कई योजनाओं के स्तर पर हैं।
‘नाम फाउंडेशन’ के काम का दायरा महाराष्ट्र से बढ़कर उत्तर प्रदेश और कश्मीर तक पहुंच गया है। यह फाउंडेशन उत्तर प्रदेश सरकार और टाटा मोटर्स के साथ मिलकर जल्द ही बुंदेलखंड के क्षेत्र में हर घर नल परियोजना शुरू करेगी।
नाना पाटेकर का कश्मीर से अनाम रिश्ता
वरिष्ठ अभिनेता नाना के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं कि उन्होंने मराठा लाइट इन्फैंट्री में तीन साल गुजारे हैं। इस दौरान उन्होंने कमांडो के अलावा अन्य युद्ध कला के कोर्स किए हैं। वे अच्छे शूटर भी रहे हैं। कारगिल युद्ध के दौरान भी वे यहां कई मोर्चों पर तैनात रहे थे। नाना ने एक चैनल में साक्षात्कार के दौरान बताया था कि ‘‘कारगिल युद्ध के दौरान उन्होंने तत्कालीन सेना प्रमुख से बात की थी कि पर उन्होंने नाना को यह कहते हुए सेना के साथ लड़ाई में शामिल होने से मना कर दिया कि वे सिविलियन हैं। जब नाना ने बताया कि वह तीन साल कमांडो की ट्रेनिंग ले चुके हैं, इसके बावजूद उन्हें सेना में शामिल नहीं किया गया। इसके बाद उन्होंने तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस से इस विषय पर बात की। वे नाना से परिचित थे। उनसे बातचीत का नतीजा यह रहा कि उन्हें सेना के क्यूआरटी में रखा गया। इस दौरान उनके पास सेना की कई अहम जिम्मेदारियां थीं। इसी दौरान वे कुपवाड़ा, बारामूला, सोपोर आदि में तैनात किए गए थे।’’
नाना बताते हैं ‘‘सेना के साथ उन्होंने तब इस कदर काम किया कि उनका वजन चिंताजनक स्थिति तक कम हो गया था। सेना और पुलिस के प्रति उनके मन में बहुत सम्मान है। आज भी जब वे सड़क से गुजरते समय किसी ट्रैफिक पुलिस वाले को डयूटी करते देखते हैं तो गाड़ी रोक कर उसका हाल-चाल लेना नहीं भूलते। नाना कहते हैं कि उनके ऐसा करने से उक्त पुलिस कर्मी की कुछ समय की थकान दूर हो जाती है।’’
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