झारखंड में एक गहरे षड्यंत्र के अंतर्गत मुसलमान लड़के जनजाति लड़कियों से निकाह कर रहे हैं। इन लड़कों में कुछ स्थानीय हैं, तो ज्यादातर बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठिए। ये लोग जनजाति लड़कियों से निकाह जरूर करते हैं, लेकिन कभी उनका नाम नहीं बदलते। इसके पीछे चाल है जनजाति के नाम पर मिलने वाली सरकारी सुविधाओं का लाभ उठाना। बच्चों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण दिलाना, जनजातियों के लिए सुरक्षित क्षेत्र से चुनाव लड़वाना।
राजमहल, साहिबगंज, पाकुड़ जैसे क्षेत्रों में बड़ी संख्या में ऐसी जनजाति महिलाएं मुखिया हैं, जिनका निकाह किसी मुसलमान से हुआ है। ये महिलाएं भले ही मुखिया हैं, लेकिन इनका काम इनके मुसलमान पति ही करते हैं। यानी ये लोग अपनी कथित जनजाति पत्नी की आड़ में पूरी व्यवस्था पर कब्जा कर रहे हैं। अब ये लोग लोकसभा का चुनाव भी सुरक्षित क्षेत्र से अपनी कथित जनजाति पत्नी को लड़वाने लगे हैं। इसका ताजा उदाहरण है राजमहल लोकसभा क्षेत्र।
इस वर्ष राजमहल (सुरक्षित) लोकसभा क्षेत्र से बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर मरियम मरांडी ने चुनाव लड़ा। 31 वर्षीया मरियम के पति का नाम है-मोहम्मद अब्दुस शमीम। बेटे का नाम मोहम्मद शाहिद और बेटी है सीमा खातून। मरियम मरांडी गांव इस्लामपुर, पोस्ट भवानीपुर, जिला पाकुड़ की रहने वाली हैं। किसी मुसलमान का गैर-मुसलमान से निकाह तभी मान्य होता है, जब उसे इस्लाम कबूलवाया जाता है। जाहिर है कि मरियम ने इस्लाम कबूला होगा, तभी उनका निकाह अब्दुस के साथ हुआ होगा। इसके बावजूद मरियम जनजातियों के लिए आरक्षित क्षेत्र से चुनाव लड़ीं।
रांची उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता विजय तिवारी इसे गलत मानते हैं। वे कहते हैं, ‘‘मरियम मरांडी ने एक मुसलमान के साथ निकाह किया, लेकिन वह चुनाव उस क्षेत्र से लड़ीं, जो जनजातियों के लिए सुरक्षित है। उन्होंने और उनके घर वालों ने कानून में मौजूद खामी का लाभ उठाया।’’ हालांकि मरियम मरांडी चुनाव हार गर्इं, लेकिन कल्पना कीजिए कि वह जीत जातीं तो उन पर जोर किसका चलता। स्पष्ट है कि उनके बहाने उनके पति अब्दुस शमीम ही इस क्षेत्र के लिए काम करते। यानी जनजातियों के लिए सुरक्षित इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व अपरोक्ष रूप से एक मुसलमान करता। यह तो धोखाधड़ी होती।
इस प्रकरण से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि झारखंड में जिहादी तत्व शासन और प्रशासन पर पकड़ बनाने के लिए किस हद तक के षड्यंत्र रच रहे हैं। इन लोगों के कारण ही बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठ की समस्या भी राज्य में विकराल रूप लेती जा रही है, लेकिन सत्ता में बैठे लोग इस मामले पर बिल्कुल चुप हैं। उन्हें लग रहा है कि यदि बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों पर कुछ बोला या किया तो वोट बैंक नाराज हो जाएगा। इसका पूरा फायदा वे लोग उठा रहे हैं, जो बांग्लादेशी घुसपैठियों को भारत में बसाकर इसे ‘मुस्लिम देश’ बनाना चाहते हैं।
हाल के वर्षों में पाकुड़ जिले में मुस्लिम आबादी 40 प्रतिशत, तो संथाल जनजाति की आबादी 20 प्रतिशत से भी कम बढ़ी है। साहिबगंज जिले में मुस्लिम आबादी 37 प्रतिशत और संथाल आबादी 11 प्रतिशत बढ़ी है। स्थानीय लोग कहते हैं कि ऐसा घुसपैठ के कारण हो रहा है। बता दें कि बांग्लादेश सीमा से पाकुड़ ज्यादा दूर नहीं है।
बांग्लादेशी घुसपैठिए पश्चिम बंगाल के रास्ते पाकुड़ तक आते हैं। यहां इन लोगों को मस्जिदों और मदरसों में शरण दी जाती है। फिर इन्हें लाने वाले इनके लिए नकली जन्म प्रमाणपत्र तैयार करवाते हैं, वह भी वेबसाइट के जरिए। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 13 दिसंबर, 2023 को ऐसी 120 से अधिक वेबसाइट को लेकर एक पत्र जारी किया है, जिसमें कहा गया है कि इनके जरिए लोग नकली जन्म प्रमाणपत्र बनवा रहे हैं। दरअसल, कोई भी प्रमाणपत्र बनवाने में मुखिया की बड़ी भूमिका रहती है। इसलिए ये घुसपैठिए पंचायतों पर कब्जा करने के लिए कुछ भी करते हैं।
‘हिंदू धर्म रक्षा मंच’ के अध्यक्ष संत कुमार घोष बताते हैं, ‘‘अब साहिबगंज जिले में अनेक जमाई गांव बन गए हैं। दरअसल, मुस्लिम स्थानीय जनजाति लड़कियों से निकाह इसलिए करते हैं कि उनकी जमीन पर कब्जा कर सकें।’’ उन्होंने यह भी बताया, ‘‘जनजातियों की जमीन कोई गैर-जनजाति खरीद नहीं सकता है। इसलिए बांग्लादेशी घुसपैठिए स्थानीय जनजाति युवतियों को अपने प्रेम जाल में फंसाते हैं।’’ विवाह के बाद ये घुसपैठिए ससुराल में ही रहते हैं। साहिबगंज और पाकुड़ जिले में ऐसे अनेक गांव हैं, जहां ऐसे दामादों की संख्या बहुत अधिक है। इसलिए ऐसे गांवों को ‘जमाई गांव’ कहा जाने लगा है।
बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठ से सबसे ज्यादा प्रभावित है संथाल परगना क्षेत्र। इस क्षेत्र के छह जिले- साहिबगंज, पाकुड़, गोड्डा, देवघर, दुमका और जामताड़ा घुसपैठियों से बुरी तरह प्रभावित हैं। इसे शासन भी स्वीकार करता है। 2 जून, 2023 को पुलिस अधीक्षक (स्थापना) ने राज्य के सभी उपायुक्तों और पुलिस अधीक्षकों को लिखे पत्र में कहा है ,‘‘संथाल परगना क्षेत्र में बांग्लादेशी घुसपैठियों के प्रवेश की सूचना है। प्राप्त सूचनानुसार इन बांग्लादेशी घुसपैठियों को पहले संथाल परगना क्षेत्र के विभिन्न मदरसों में ठहराया जाता है। इसके पश्चात् इनका सरकारी दस्तावेज तैयार किया जाता है एवं उनका नाम मतदाता सूची में डाला जाता है और फिर साजिश के तहत उन्हें वहां बसाया जाता है, जिससे राज्य की आंतरिक व्यवस्था का खतरा बना रहता है। उक्त तथ्यों के आधार पर संथाल परगना क्षेत्र के साथ-साथ झारखंड राज्य के अन्य जिलों में भी ऐसे घुसपैठियों के प्रवेश करने की संभावना है, जिसकी सतत निगरानी एवं जांच/सत्यापन आवश्यक है।’’
राजमहल से भाजपा विधायक अनंत कुमार ओझा लगातार घुसपैठ के विरुद्ध आवाज उठाते रहे हैं। वे कहते हैं, ‘‘राज्य सरकार घुसपैठियों को बाहर करने के लिए कुछ करना ही नहीं चाहती। कभी कुछ बहाना बनाती है, तो कभी कुछ। इस कारण राजमहल, पाकुड़, साहिबगंज के अनेक हिस्सों की जनसांख्यिकी बदल गई है।’’ उन्होंने बताया,‘‘राजमहल विधानसभा क्षेत्र के उधवा प्रखंड की जनसांख्यिकी पूरी तरह बदल गई है। 2014-19 के बीच यहां 8,000 मतदाता बढ़े थे, जो 2019-24 में 24,000 हो गए हैं। यह बदलाव घुसपैठ के कारण ही हुआ है।’’ उन्होंने यह भी बताया कि यहां के 303 मतदान केंद्रों में से 17 में हिंदू मतदाता कम हुए हैं। ऐसा क्यों हुआ! उन्होंने चुनाव अयोग से इसकी जांच करने को कहा है।
बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों का मामला झारखंड उच्च न्यायालय भी पहुंच गया है। 4 जुलाई को झारखंड उच्च न्यायालय ने जामताड़ा, गोड्डा, पाकुड़, साहिबगंज, देवघर और दुमका के उपायुक्तों को आदेश दिया है कि वे अपने जिले में बांग्लादेशी घुसपैठियों की पहचान कर उन्हें वापस बांग्लादेश भेजने की कार्रवाई करें। इसके साथ ही उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि इस संबंध में जो कार्रवाई की गई, उसकी जानकारी शपथपत्र के जरिए दो सप्ताह के अंदर न्यायालय को दें। बता दें कि इन दिनों बांग्लादेशी घुसपैठियों के विरुद्ध दायर एक याचिका पर उच्च न्यायालय की एक पीठ सुनवाई कर रही है। इसी दौरान न्यायमूर्ति सुजीत नारायण प्रसाद और न्यायमूर्ति अरुण कुमार राय की खंडपीठ ने मौखिक रूप से कहा कि विदेशी घुसपैठ किसी राज्य का नहीं, बल्कि देश का मुद्दा है। इसलिए विदेशी घुसपैठियों का भारत में प्रवेश हर हाल में रोकना होगा। इसके साथ ही खंडपीठ ने राज्य सरकार से कहा कि बांग्लादेशी घुसपैठिए झारखंड की जमीन पर रह रहे हैं। राज्य सरकार को घुसपैठियों की पहचान कर उन्हें वापस भेजना होगा। यह याचिका दानियल दानिश ने दायर की है।
पिछली सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से अधिवक्ता प्रशांत पल्लव ने खंडपीठ को बताया था कि घुसपैठियों की पहचान कर उन्हें राज्य की सीमा से बाहर करने की शक्ति राज्यों को दी गई है। इस मामले में कार्रवाई के लिए राज्य सरकार सक्षम है। यानी राज्य सरकार यह नहीं कह सकती है कि घुसपैठ का मामला केंद्र सरकार के अधीन है। फिर भी कुछ लोग मानते हैं कि वर्तमान राज्य सरकार इन घुसपैठियों को निकालने के लिए लिए शायद ही कुछ करे।
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