अभी हाल ही में तथाकथित सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर और तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सांसद साकेत गोखले को न्यायालय ने भारी झटका दिया है। मेधा को दिल्ली के साकेत न्यायालय ने 5 माह के कारावास और 10 लाख रुपए जुर्माने की सजा सुनाई है, वहीं साकेत गोखले पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने 50 लाख रुपए का दंड लगाया है। यह प्रकरण उन लोगों के लिए एक सबक है, जो स्वार्थ के लिए झूठ बोलकर किसी को बदनाम करते हैं या उनकी बेदाग छवि को धूमिल करने का प्रयास करते हैं।
मेधा पाटकर को यह सजा दिल्ली के वर्तमान उपराज्यपाल विवेक कुमार सक्सेना द्वारा दायर किए गए मानहानि मामले में हुई है। मामला उन दिनों का है जब श्री सक्सेना अमदाबाद स्थित गैर-सरकारी संगठन ‘नेशनल काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज’ के प्रमुख थे। उन दिनों श्री सक्सेना ने मेधा पाटकर और नर्मदा बचाओ आंदोलन के विरुद्ध एक विज्ञापन प्रकाशित कराया। इसके बाद मेधा पाटकर ने उनके विरुद्ध मुकदमा दायर कराया था।
यही नहीं, मेधा ने 25 नवंबर, 2000 को एक बयान जारी कर सक्सेना पर हवाला के जरिए लेन-देन का आरोप लगाया और उन्हें कायर कहा। मेधा ने यह भी कहा था किश्री सक्सेना गुजरात के लोगों और उनके संसाधनों को विदेशी हितों के लिए गिरवी रख रहे थे। सक्सेना ने इसे अपनी ईमानदारी पर सीधा हमला माना था। इसके बाद उन्होंने 2001 में मेधा पाटकर के विरुद्ध अमदाबाद की एक अदालत में आपराधिक मानहानि का मामला दायर किया। 2003 में सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले को दिल्ली स्थानांतरित कर दिया था। यह मामला दो दशक से भी अधिक समय तक चला। न्यायालय ने पाया कि श्री सक्सेना के संबंध में मेधा पाटकर द्वारा प्रकाशित की गई रिपोर्ट अपमानजनक तो थी ही, साथ ही उनकी प्रतिष्ठा में कमी लाने वाली भी थी और यह भी कि मेधा के कथन दुर्भावना से प्रेरित थे।
जाहिर है, मेधा ने सार्वजनिक रूप से जो आरोप लगाए थे वे निराधार थे और वे न्यायालय में उन आरोपों को साबित करने में असफल रहीं। सजा मिलने पर मेधा ने कहा कि ‘सत्य कभी पराजित नहीं होता। इस फैसले को चुनौती दी जाएगी।’ शायद मेधा की इसी जिद ने उन्हें सजा दिलाई है। वे चाहतीं तो पहले ही क्षमा मांग कर मामले को रफा-दफा कर सकती थीं, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। वहीं श्री सक्सेना ने इस मामले में बड़ी उदारता दिखाई। उन्होंने अपने वकील के माध्यम से न्यायालय से कहा कि उन्हें कोई मुआवजा नहीं चाहिए। वे इसे दिल्ली राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (डीएलएसए) को दे दें, लेकिन अदालत ने कहा कि शिकायतकर्ता को मुआवजा दिया जाएगा और फिर वे अपनी इच्छानुसार इसका निपटान कर सकते हैं।
देश विरोधी गैर सरकारी संगठनों की ‘आदर्श’ मेधा पाटकर सदैव विवादों में रही हैं। इसलिए उन्हें कुछ लोग विवादों की ‘मेधा’ कहते हैं। दो वर्ष पूर्व एक अन्य मामले में मेधा पाटकर और उनके साथियों पर मध्य प्रदेश के जनजाति बहुल बड़वानी में रुपयों के गबन को लेकर एक प्राथमिकी दर्ज की गई है। प्रीतम बडोले नामक एक स्थानीय व्यक्ति ने आरोप लगाया है कि वनवासी बच्चों की शिक्षा के लिए संग्रहीत करोड़ों रुपए की राशि घोषित उद्देश्य के लिए खर्च न करते हुए जनता को गुमराह करने के अभियान पर खर्च की गई है।
पुलिस ने बताया है कि शिकायतकर्ता ने कुछ दस्तावेज प्रस्तुत किए हैं। इन सबकी विस्तृत जांच की जाएगी। हालांकि, मेधा ने इन आरोपों को निराधार बताया है, परंतु सत्य क्या है यह जांच होने के बाद ही स्पष्ट हो पाएगा। शिकायतकर्ता का दावा है कि महाराष्ट्र के नंदूरबार में पाटकर के एनजीओ द्वारा ‘जीवनशाला’ नामक विद्यालय संचालित करने और बच्चों का जीवन संवारने की बात कही गई थी, परंतु वस्तुस्थिति में ऐसा कोई विद्यालय देखा ही नहीं गया है। शिकायतकर्ता के अनुसार मेधा पाटकर के एनजीओ द्वारा प्राप्त धन का उपयोग देश में चल रहे विकास कार्यों के विरुद्ध प्रदर्शन आदि में किया जा रहा है।
वर्षों तक मेधा पाटकर नर्मदा नदी पर बन रहे सरदार सरोवर सहित अन्य बांध प्रकल्पों के निर्माण के विरुद्ध व्यापक विरोध प्रदर्शन करती आई हैं। इस दौरान उनके द्वारा इन प्रकल्पों के संबंध में ऐसी कई अवधारणाएं प्रस्तुत की गई, थी जो तथ्यों की बजाय अनुमानों पर आधारित थीं। परंतु उनके द्वारा चलाए गए आंदोलन की वजह से सरदार सरोवर जैसा जनोपयोगी प्रकल्प दशकों तक अटका रहा। गुजरात का कच्छ क्षेत्र, जो कि सदा से जल समस्या से जूझता रहा था, आज सरदार सरोवर की नहरों से सराबोर है और क्षेत्र की आम जनता को पेय जल तो उपलब्ध हुआ ही, किसानों को सिंचाई का जल भी विपुल मात्रा में उपलब्ध हुआ और परिणामस्वरूप उनके जीवन स्तर में परिवर्तन आ रहा है।
मेधा पाटकर और उनके पीछे खड़े सेकुलर तंत्र ने दो दशक तक भ्रम फैलाकर मानवीयता और पर्यावरण के नाम पर भ्रम का ऐसा ताना- बाना बुना कि बड़ी संख्या में लोग इसका शिकार हुए और जिस प्रकल्प का निर्माण 1989 में हुआ था, उसका लोकार्पण 2017 में हो पाया।
प्रसिद्ध स्तंभ लेखक स्वामीनाथन अंकलेसरिया ने अपने आलेख में स्वीकार किया है कि वे भी मेधा के फैलाए भ्रम का शिकार हो गए थे और यह कि मेधा के ये अनुमान कि कच्छ जैसे सूखे और बंजर क्षेत्र में यह जल पहुंच ही नहीं पाएगा पूर्णत: निराधार सिद्ध हुए हैं। वे यह भी लिखते हैं कि मेधा के आंदोलन का आधार विस्थापितों के जीवन का नाश हो जाने की संभावना पर आधारित था, जबकि वर्तमान में यह देखा जा सकता है कि विस्थापित आधुनिक सुविधाओं के साथ कहीं बेहतर जीवन जी रहे हैं। एक अन्य रिपोर्ट में दावा किया गया है कि मेधा पाटकर के एनजीओ को बड़ी मात्रा में धन प्राप्त हुआ और उसका लेखा-जोखा भी नहीं है। इसमें विदेश से एक ही दिन में 1.19 करोड़ रुपए प्राप्त होने का मामला भी है। इस मामले ने सर्वाधिक ध्यान आकर्षित इसलिए किया, क्योंकि एक ही दिन में 20 अलग-अलग खाता नंबर से एक जैसी ही यानी 5,96,264 रुपए की राशि प्राप्त हुई थी।
दान का दुरुपयोग
नर्मदा से जुड़े क्षेत्र में पिछले कुछ समय से मेधा पाटकर का भारी विरोध हो रहा है। स्थानीय निवासी कहते हैं कि हो सकता है, दान की राशि का उपयोग मेधा पाटकर द्वारा भारत विरोधी और हिंदू विरोधी गतिविधियों के लिए किया जा रहा हो। इसका कारण हाल ही के दिनों में पाटकर का भारत विरोधी आंदोलन में सम्मिलित होना और हिंदू विरोधी दंगों में मुस्लिम अपराधियों का साथ देना है। जब देश में नागरिकता संशोधन अधिनियम पारित हुआ तो दिल्ली के निवासियों ने अधिनियम के स्वागत में एक रैली का आयोजन किया। मेधा पाटकर ने वहां पहुंचकर अधिनियम का विरोध किया। हालांकि नागरिकों ने मेधा पाटकर का ही विरोध किया। ऐसे ही 2022 में जब खरगोन और सेंधवा में हिंदू विरोधी दंगा हुआ तब मेधा पाटकर, मुस्लिम वर्ग के घर गर्इं और उनका समर्थन किया। बाद में पुलिस जांच में सैकड़ों मुसलमानों को दंगा फैलाने के लिए आरोप में गिरफ्तार किया गया। इसी तरह इंदौर के निकट मुस्लिम बहुल चांदनखेड़ी गांव में श्रीराम जन्मभूमि निधि समर्पण यात्रा पर जानलेवा हमले होने पर मेधा पाटकर गांव में पहुंचीं और अपराधियों का समर्थन किया।
साकेत के लिए संकेत ठीक नहीं
अब बात उन बड़बोले साकेत गोखले की, जो मानहानि के एक मामले में बुरी तरह फंस गए हैं। दिल्ली उच्च न्यायालय ने 1 जुलाई को कहा कि गोखले को लक्ष्मी पुरी के विरुद्ध और अधिक अपमानजनक सामग्री प्रकाशित करने से रोका जाता है और लक्ष्मी की प्रतिष्ठा को हुए नुकसान के लिए 50 लाख रुपए का हर्जाना दिया जाता है। न्यायमूर्ति अनूप जयराम भंभानी की पीठ ने कहा कि कोई भी राशि वास्तव में प्रतिष्ठा को हुए नुकसान की भरपाई नहीं कर सकती है, हालांकि सभी विचारों के आधार पर साकेत गोखले को वादी को नुकसान की राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया जाता है। यह राशि उन्हें 8 सप्ताह के भीतर देनी होगी। इसके साथ ही गोखले को यह भी कहा गया है कि वे अपने एक्स हैंडल पर माफीनामा पोस्ट करें और यह माफी छह महीने तक रहनी चाहिए।
इन दिनों साकेत गोखले तृणमूल कांग्रेस के प्रवक्ता और राज्यसभा सांसद हैं। एक प्रवक्ता के नाते वे कई बार विरोधियों के लिए बिना तथ्यों की बात करते रहते हैं। लेकिन वे तब फंसे जब उन्होंने संयुक्त राष्टÑ में सहायक महासचिव रहीं लक्ष्मी पुरी और उनके पति केंद्रीय मंत्री हरदेव पुरी पर निराधार और अपमानजनक आरोप लगाए। बता दें कि 13 जून, 2021 को साकेत गोखले ने जिनेवा में ‘2 मिलियन डॉलर’ के अपार्टमेंट के लिए धन के स्रोत पर संदेह व्यक्त करते हुए कई ट्वीट किए थे। हालांकि उन्होंने अपने ट्वीट में पुरी का नाम नहीं लिया था। अपने पहले ट्वीट में साकेत ने सवाल उठाया था कि अगर पूर्व भारतीय सिविल सेवकों ने सेवा के दौरान 20 लाख डॉलर (खरीद के समय 10 करोड़ रुपए) की संपत्ति खरीदी, जिसमें उनके वेतन के अलावा कोई अन्य आय नहीं थी, तो क्या ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) मामले की जांच करेगा और क्या वह जांच निष्पक्ष होगी?
अपने दूसरे ट्वीट में उन्होंने कहा कि खरीद के समय संपत्ति की कीमत 10 करोड़ रुपए थी और जून, 2021 में 25 करोड़ रुपए थी। 23 जून, 2021 को साकेत गोखले ने कई ट्वीट किए। उन्होंने कहा कि लक्ष्मी और हरदीप पुरी लगभग 12 लाख रुपए के वार्षिक वेतन बैंड में थे, जब उन्होंने 2006 के आसपास 16 लाख सीएचएफ (स्विस फ्रैंक) की संपत्ति खरीदी थी। साकेत गोखले की बातों को लक्ष्मी पुरी ने निराधार माना और उन्होंने उनके विरुद्ध मानहानि का मामला दर्ज कराया था। आशा है कि मेधा पाटकर और साकेत गोखले को मिली सजा से वे लोग सबक लेंगे, जिन्हें दूसरों पर निराधार आरोप लगाने की गंदी आदत है।
टिप्पणियाँ