फ्रांस में इस वर्ष ओलंपिक्स हो रहे हैं। हर तैयारी पूरी हो चुकी है। और इसके साथ ही फ्रांस के एक निर्णय पर विवाद भी आरंभ हो गया है। दरअसल फ्रांस में एक निर्णय लिया गया था और वह निर्णय खिलाड़ियों में देश की भावना के सर्वोपरि होने के उद्देश्य से लिया गया था। वह निर्णय था कि ओलंपिक्स गेम्स में फ्रांस की तरफ से जो एथलीट हिस्सा ले रही हैं, वे हिजाब में नहीं होंगी।
अब इसे लेकर फ्रांस में विवाद आरंभ हो गया है। यह विवाद वे लोग कर रहे हैं, जो हर समय आजादी जैसे नारे लगाते रहते हैं। अब इन समूहों ने फ्रांस की सरकार पर यह आरोप लगाया है कि वह तानाशाही कर रही है। उनका यह भी कहना है कि वह “भेदभाव परक पाखंड” कर रही है। एमनेस्टी इन्टरनेशनल ने दस और अन्य संगठनों के साथ यह कहा कि यह प्रतिबंध खिलड़ियों को उनके इस मूलभूत अधिकार से वंचित करता है कि वे बिना किसी प्रकार के भेदभाव के अपना खेल खेल सकें।
इस मामले को लेकर एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इंटरनेशनल ओलंपिक समिति से भी शिकायत की, जिसने हाल फिलहाल फ्रांस के इस निर्णय पर कुछ कहने से इनकार कर दिया। एमनेस्टी के अनुसार 38 यूरोपीय देशों में से केवल फ्रांस ही ऐसा देश है, जिसने खेलों में मजहबी पहनावे पर प्रतिबंध लगाया गया है। फ्रांस की महिलाएं फुटबॉल, बास्केटबॉल और वालीबॉल में हिजाब पहनकर खेल नहीं सकते थे।
एमनेस्टी की वेबसाइट के अनुसार फ्रांसीसी महिला एथलीट जो हिजाब पहनकर खेलती हैं, उन पर प्रतिबंध से अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों का उल्लंघन है और वह अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति की निर्बलता को भी बताता है।
एमनेस्टी ने अपनी 32 पृष्ठ की रिपोर्ट में यह विस्तार से बताया है कि कैसे हिजाब पर प्रतिबंध से फ्रांस के खेलों में सभी स्तरों पर मुस्लिम महिलाओं और लड़कियों पर भयावह प्रभाव डाल रहा है।
एमनेस्टी ने अपनी रिपोर्ट में कुछ खिलाड़ियों के हवाले से यह बताने का प्रयास किया है कि “वर्ष 2024 में कपड़े के एक टुकड़े के आधार पर सपनों का टूटना बहुत दुखद है!”
एमनेस्टी ने लिखा कि कई संगठनों के साथ मिलकर जब अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति से यह आग्रह किया गया कि वह इस भेदभाव पर कदम उठाएं तो समिति ने कहा कि फ्रांस ने खेलों मे हिजाब पर जो प्रतिबंध लगाया है, वह ओलंपिक समिति के क्षेत्र से बाहर की बात है और यह भी कहा कि धार्मिक स्वतंत्रता की व्याख्या कई राज्यों में कई तरीके से की गई है।
वहीं फ्रांस की खेल मंत्री एमिली औदया-कास्टरा के अनुसार धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत यह कहता है कि इसकी अनुमति नहीं होनी चाहिए। उन्होनें फ्रेंच टीवी के साथ बातचीत में कहा था कि “इसका क्या अर्थ है? इसका अर्थ है कि किसी भी प्रकार की धार्मिक पहचान पर प्रतिबंध है। इसका अर्थ है कि सार्वजनिक सेवाओं में पूरी तरह से निष्पक्षता और फ्रांसीसी टीम हिजाब नहीं पहनेगी”
फ्रांस में पिछले वर्ष फ्रांसीसी फुटबॉल फेडरेशन द्वारा हिजाब पर प्रतिबंध लगा दिया था। और इसके कारण कई लड़कियां इस खेल से बाहर हो गई थी। इसे लेकर पिछले वर्ष ही यूएन ने इस निर्णय की आलोचना की थी। क्योंकि पिछले वर्ष ही यह सुनिश्चित हो गया था कि कोई भी हिजाब पहनने वाली खिलाड़ी ओलंपिक्स टीम का हिस्सा नहीं रह जाएगी। पिछले वर्ष ही फ्रांस की सरकार ने यह कहा था कि वर्ष 2024 में आयोजित होने वाले ओलंपिक खेलों में हिजाब पहनने वाली खिलाड़ियों को टीम में शामिल नहीं किया जाएगा।
इस पर संयुक्त राष्ट्र के कार्यालय से एक प्रवक्ता ने कहा था कि किसी को भी महिलाओं पर यह नहीं थोपना चाहिए कि उसे क्या पहनना है और क्या नहीं।
फ्रांस के खेल मंत्रालय ने एक वक्तव्य जारी करते हुए कहा था कि “जब भी कोई खिलाड़ी फ्रांस का नेतृत्व किसी भी राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिता में करता है तो वे किसी भी प्रकार का हेड स्कार्फ (हिजाब या किसी भी प्रकार के धार्मिक प्रतीक) नहीं पहन सकती हैं।“
फ्रांस में हालांकि यह प्रतिबंध पिछले वर्ष ही लग गया था, मगर जैसे जैसे ओलंपिक्स खेलों की तारीख पास आती जा रही है, यह विवाद और तेजी से सामने आ रहा है।
हिजाब के पहनने को लेकर अधिकारों के लिए लड़ने वाले समूहों के प्रति एक सॉफ्ट कॉर्नर दिखाई देता है जो बहुत अजीब इस कारण है कि इसकी मजहबी अनिवार्यता को लेकर ईरान और अफगानिस्तान में लाखों महिलाओं की आजादी ही नहीं ज़िंदगी भी खो चुकी है।
और खेलों में किसी भी प्रकार की अलगाववादी पहचान की अनिवार्यता की हठ क्यों है? जो खिलाड़ी एक धर्मनिरपेक्ष देश में राष्ट्रीय टीम की ओर से खेल खेल रही हैं, उन्हें अपनी विशिष्ट पहचान किसलिए चाहिए? तो फिर उन्हें अपनी मजहबी पहचान वाले देशों की टीम में ही खेलना चाहिए, जहां से वह हिजाब एवं अन्य मजहबी प्रतीकों के साथ खेल सकें।
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