प्रधानमंत्री शेख हसीना की बीजिंग यात्रा को लेकर कई प्रकार की खबरें चली थीं कि वह चीन के शिकंजे में फंस जाएंगी, चीन उस देश में परियोजनाओं में कर्ज देने के बहाने उसकी अर्थव्यवस्था को दीमक लगाने की फिराक में था। लेकिन शायद सही समय पर बांग्लादेश के नीति—निर्माताओं को चीन को ट्रैक रिकार्ड ध्यान आया और हसीना ने सही राह चुनने का फैसला लिया।
भारत के पड़ोसी देश ने हाल में एक गजब का रुख दिखाया है। बांग्लादेश अपनी महत्चपूर्ण परियोजनाओं के लिए चीन के बजाय भारत का साथ चाहता है। यह भारत की पड़ोसी पहले की कूटनीति की सफलता ही कही जाएगी कि विस्तारवादी ड्रैगन के कर्ज के शिकंजे की असलियत पहचानते हुए प्रधानमंत्री शेख हसीना की चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से हुई हाल की मुलाकात की जो जानकारी छनकर आई है, उससे संकेत मिलता है कि परियोजनाओं के लिए उसे भारत की नीतियों और कार्य पर भरोसा ज्यादा है।
पड़ोसी देश की प्रधानमंत्री हसीना कहा कहना है कि भारत उनका पड़ोसी देश है इसलिए वे चाहती हैं कि प्रस्तावित तीस्ता जल संरक्षण परियोजना को वह भारत के साथ अंजाम दें। इसके लिए भारत से बांग्लादेश की काफी समय से चर्चा भी चल रही है। हसीना का इस महत्वपूर्ण परियोजना के लिए चीन नहीं, भारत पर भरोसा जताना मोदी सरकार के कार्य के प्रति विश्वास भी झलकाता है।
तीस्ता जल संरक्षण तथा उससे जुड़ी एसईजेड परियोजना को लेकर चीन को पूरा भरोसा था कि आसान शर्तों पर कर्ज देने के उसके लालच में बांग्लादेश फंस जाएगा और धीरे—धीरे वह बांग्लादेश की हर चीज पर शिकंजा कस लेगा। जैसा चीन ने श्रीलंका, पाकिस्तान और कुछ अफ्रीकी देशों में किया है।
लेकिन छोटा और अविकसित देश होने के बावजूद बांग्लादेश की प्रधानमंत्री संभवत: स्वाभिमान और राष्ट्रीय हित को तरजीह देते हुए भारत के पाले में रहने का मन बना रही हैं। हसीना की इस बात के बड़े मायने हैं कि भारत पड़ोसी देश है इसलिए पड़ोसी को ही इस परियोजना पर पहला हक है। भारत और बांग्लादेश अब बहुत हद तक इस परियोजना पर काम आगे बढ़ाएंगे।
पिछले दिनों प्रधानमंत्री शेख हसीना की बीजिंग यात्रा को लेकर कई प्रकार की खबरें चली थीं कि वह चीन के शिकंजे में फंस जाएंगी, चीन उस देश में परियोजनाओं में कर्ज देने के बहाने उसकी अर्थव्यवस्था को दीमक लगाने की फिराक में था। लेकिन शायद सही समय पर बांग्लादेश के नीति—निर्माताओं को चीन को ट्रैक रिकार्ड ध्यान आया और हसीना ने सही राह चुनने का फैसला लिया।
हसीना के मन बदलने के पीछे चीन की धूर्तता भी बताई जा रही है। हुआ यूं कि चीन ने बांग्लादेश को 5 अरब डॉलर का आर्थिक पैकेज देने की घोषणा की थी। लेकिन वह अपनी इस घोषणा से पलट गया, पैकेज नहीं दिया। इतना ही नहीं, बीजिंग ने बांग्लादेश की प्रधानमंत्री की वैसी आवभगत भी नहीं की, जैसी अपेक्षित थी। शायद इसी वजह से हसीना ने बीजिंग में तय वक्त के अपने दौरे को छोटा करके स्वदेश लौटने का फैसला किया था।
हसीना का ताजा बयान है कि वे इस परियोजना के लिए भारत को पहले नंबर पर रखती हैं। कारण यह कि भारत तीस्ता के पानी का प्रयोग कर ही रहा है तो परियोजना पर काम भी उसे ही करना है, बांग्लादेश इसमें अपनी ओर से हाथ बंटाएगा। हसीना ने चीन के इस पर काम करने के बारे में इतना ही कहा कि, हां, उनकी ओर से भी हमारे यहां प्रस्ताव भेजा गया था, लेकिन प्रस्ताव भारत ने भी रखा था। तो फिर क्यों न पड़ोसी भारत के साथ इस पर काम किया जाए।
बांग्लादेश के लिए जो सही होगा वही किया जाएगा।
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