‘तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं मुआवजे का अधिकार’ देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने दो टूक कहा कि वो इस फैसले को नहीं मानेगा। AIMPLB के प्रेसीडेंट हजरत मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने कहा कि शीर्ष अदालत का फैसला इस्लामी शरीयत के खिलाफ था।
इसलिए वो कुरान के अनुसार ही निकाह कराएंगें और शरीयत के तहत की काम करेंगे। बोर्ड का कहना है तलाक के बाद मुस्लिम पुरुषों को पिछली पत्नियों को बनाए रखने के लिए मजबूर करना पूरी तरह से अव्यवहारिक करार देते हुए कहा कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने अपने अध्यक्ष को ये अधिकार दिया है कि वो सुप्रीम कोर्ट के फैसले को वापस कराने के लिए कुछ भी करने के लिए स्वतंत्र है। इसके साथ ही वह कानूनी, संवैधानिक या किसी भी लोकतांत्रिक तरीकों को अख्तियार करने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र हैं।
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क्या है पूरा मामला
सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों को नई मजबूती प्रदान की है। शीर्ष अदालत इस फैसले के अनुसार, CRPC की धारा 25 के तहत मुस्लिम महिलाओं को ये अधिकार है कि वे अपने शौहर से गुजारा भत्ता मांग सकती हैं। कोर्ट ने कहा है कि इससे महिलाओं के समानता और न्याय के अधिकार को सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने 39 साल पुराने शाह बानो केस की यादों को ताजा कर दी है।
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उत्तराखंड के यूसीसी को भी चुनौती देंगे
वहीं दूसरी ओर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने उत्तराखंड सरकार द्वारा लागू किए गए UCC को चुनौती देने का भी ऐलान किया है। बोर्ड ने अपनी लीगल कमेटी को यूसीसी कानून के खिलाफ कोर्ट में याचिका दायर करने का निर्देश दिया है।
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