इतिहासकारों के अनुसार राजा भोज ने 1034 में धार में सरस्वती सदन के रूप में भोजशाला रूपी महाविद्यालय की स्थापना की थी। बाद में इस्लामी आक्रांताओं ने यहां पर आक्रमण किया। 1456 में महमूद खिलजी ने उक्त स्थान पर कमाल मौला दरगाह का निर्माण कराया। साथ ही भोजशाला को ढहा कर उसी के अवशेषों से एक ढांचा खड़ा कर दिया। मुस्लिम इसे 11वीं शताब्दी में बनी ‘कमाल मौला मस्जिद’ बताते हैं। जानकारों का कहना है कि कथित मस्जिद में उपयोग किए गए नक्काशीदार खंभे वही हैं, जो भोजशाला में उपयोग किए गए थे। इसकी दीवारों से चिपके पत्थरों पर प्राकृत भाषा में भगवान विष्णु के कूर्मावतार के बारे में दो श्लोक लिखे हैं। एक अन्य अभिलेख में संस्कृत व्याकरण के बारे में जानकारी दी गई है। इसके अलावा कुछ अभिलेखों में राजा भोज के उत्तराधिकारी उदयादित्य और नरवर्मन की प्रशंसा की गई है।
इस्लामी आक्रमण
1305, 1401 और 1514 ई. में मुस्लिम आक्रांताओं ने भोजशाला के मंदिर और शिक्षा केंद्र को बार-बार तबाह किया। 1305 ई. में क्रूर और बर्बर मुस्लिम अत्याचारी अलाउद्दीन खिलजी ने पहली बार भोजशाला को नष्ट किया। हालांकि, इस्लामी आक्रमण की प्रक्रिया 36 साल पहले 1269 ई. में ही शुरू हो गई थी, जब कमाल मौला नाम का एक फकीर मालवा पहुंचा। कमाल मौला ने हिंदुओं को इस्लाम में लाने के लिए छल-कपट का सहारा लिया। उसने 36 साल तक मालवा क्षेत्र के बारे में विस्तृत जानकारी इकट्ठा की और उसे अलाउद्दीन खिलजी को दे दिया। युद्ध में मालवा के राजा महाकाल देव के वीरगति प्राप्त करने के बाद खिलजी ने कहर ढाना शुरू कर दिया।
कथित कमाल मौला दरहगाह
खिलजी के बाद एक अन्य मुस्लिम आक्रमणकारी दिलावर खान ने 1401 ई. में यहां के विजय मंदिर (सूर्य मार्तंड मंदिर) को ध्वस्त कर दिया और सरस्वती मंदिर भोजशाला के एक हिस्से को दरगाह में बदलने का प्रयास किया। मुस्लिम आज उसी विजय मंदिर में नमाज अदा करते हैं।
1514 ई. में महमूद शाह ने भोजशाला को घेर लिया और इसे एक दरगाह में बदलने का प्रयास किया। उसने सरस्वती मंदिर के बाहर के क्षेत्र पर कब्जा कर लिया और ‘कमाल मौला दरगाह’ की स्थापना की। इसी आधार पर भोजशाला के दरगाह होने का दावा किया जा रहा है।
1552 ई. में मेदनी राय नाम के एक क्षत्रिय राजा ने हिंदू सैनिकों को इकट्ठा कर महमूद खिलजी को मार भगाया। इस लड़ाई में मेदनी राय ने हजारों मुस्लिम सैनिकों मारे और 900 मुस्लिम सैनिकों को गिरफ्तार कर धार किले में बंद कर दिया।
25 मार्च, 1552 को धार किले में काम करने वाले सैयद मसूद अब्दाल समरकंदी ने विश्वासघात करते हुए उन सैनिकों को रिहा कर दिया। बाद में राजा मेदनी राय ने समरकंदी को विश्वासघात के लिए मृत्युदंड दिया। उसी सैयद मसूद अब्दाल समरकंदी को धार किले में ‘बंदीछोड़ दाता’ कहा जाता है।
कांग्रेस सरकार ने दी नमाज की अनुमति
वर्तमान युवा पीढ़ी यह जानकर आश्चर्य करेगी कि भोजशाला के शिक्षकों व छात्रों ने भोजशाला को बचाने के लिए लंबे समय तक संघर्ष किया था। एक रपट के अनुसार 1305 में अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय भोजशाला के शिक्षकों और विद्यार्थियों ने खिलजी की इस्लामिक सेना का विरोध किया था। इसके बाद लगभग 1,200 छात्र-शिक्षकों को बंदी बनाकर उनसे इस्लाम कबूल करने के लिए कहा गया, लेकिन इन सभी ने इस्लाम स्वीकार करने से मना कर दिया। इसके बाद इन सभी की हत्या कर उनके शवों को भोजशाला के ही विशाल हवन कुंड में फेंक दिया गया था। भोजशाला मामले में एक दुखद मोड़ तब आया, जब दिग्विजय सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने 1997 में भोजशाला को मुसलमानों के लिए खोल दिया और हर शुक्रवार को नमाज पढ़ने की मांग को स्वीकार कर लिया। जहां कभी पूरा समय भजन-कीर्तन और पूजा हुआ करती थी, वहां नमाज होने लगी। साजिशन हिंदुओं को साल में केवल एक ही बार, वसंत पंचमी पर पूजा तक सीमित कर दिया गया। तब हिंदुओं का एक समूह न्यायालय भी गया, लेकिन वहां से भी कोई समाधान नहीं निकला। अब एक बार फिर से हिंदू समाज न्यायालय पहुंचा है। ब्रिटिश काल में भी भोजशाला में सर्वेक्षण हो चुके हैं और भोजशाला विश्वविद्यालय व सरस्वती मंदिर होने के पुख्ता प्रमाण मिले हैं। इस स्थल के पत्थर ही स्वयं के सनातन धर्म व संस्कृति से जुड़े होने का परिचय देते हैं। अब जब कि भोजशाला का मामला एक बार फिर न्यायालय में है तो हम सभी सनातनियों को उम्मीद है कि इस मामले में जल्दी निर्णय होगा। -भूपेंद्र भारतीय
अंग्रेजों का दखल
1703 ई. में मालवा पर मराठों का अधिकार हो गया, जिससे मुस्लिम शासन समाप्त हो गया। ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1826 ई. में मालवा पर अधिकार कर लिया। उन्होंने भी भोजशाला पर आक्रमण किया। कई स्मारकों और मंदिरों को नष्ट कर दिया। लॉर्ड कर्जन ने भोजशाला से देवी की मूर्ति को लेकर 1902 में इंग्लैंड भेज दिया। यह मूर्ति अभी भी लंदन के एक संग्रहालय में है। मुस्लिम शासन के बाद पहली बार मुसलमानों ने 1930 में भोजशाला में प्रवेश करके नमाज अदा करने का प्रयास कर दिया था। हालांकि इस प्रयास को हिंदुओं ने विफल किया था।
1952 में केंद्र सरकार ने भोजशाला को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ए.एस.आई.) को सौंप दिया। उसी वर्ष राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और हिंदू महासभा ने हिंदुओं को भोजशाला के बारे में जानकारी देना शुरू किया। इसी के आसपास हिंदुओं ने ‘श्री महाराजा भोज स्मृति वसंतोत्सव समिति’ की स्थापना की।
1902 की रपट
उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में ए.एस.आई. की एक रपट का हवाला दिया है। 1902 में लॉर्ड कर्जन धार, मांडू के दौरे पर आए थे। उन्होंने भोजशाला के रखरखाव के लिए 50,000 रु. खर्च करने की मंजूरी दी थी। तब इसका सर्वे भी किया गया था। 1902 में हुए सर्वे में भोजशाला में हिंदू चिन्ह, संस्कृत के शब्द आदि पाए गए। 1951 में भोजशाला को राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया गया। उस समय जारी अधिसूचना में भोजशाला और कमाल मौला की दरगाह का उल्लेख है।
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