इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति ने शुक्रवार को एक निर्णय तीन भाषाओं में सुनाया। अभी तक की जानकारी में ऐसा पहली बार है जब किसी न्यायमूर्ति ने हिंदी, संस्कृत और अंग्रेजी में अपना निर्णय सुनाया। यह मुकदमा एक महिला की और से दायर किया गया था।
महिला ने उच्च न्यायालय से गुजारा भत्ता दिलाने के लिए गुहार लगाई थी। उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति शिवशंकर प्रसाद ने महिला की याचिका खारिज करते हुए कहा कि यदि पारिवारिक न्यायालय ने धारा 125 सीआरपीसी के अंतर्गत गुजारा भत्ता देने का अंतरिम आदेश दिया है तो ऐसे में उस पर अमल कराने के लिए क्रिमिनल मिसलेनियस एप्लिकेशन 482 के अंतर्गत याचिका पोषणीय नहीं है। याची को धारा 125 के अंतर्गत गुजारा भत्ता के आदेश पर अमल करने के लिए धारा 128 में उसी पारिवारिक न्यायालय में अर्जी देनी चाहिए।
महिला की शादी वर्ष 2009 में बैजलाल रावत के साथ हुई थी। याची का आरोप है कि विवाह में करीब 8 लाख रुपये खर्च हुए थे। शादी के बाद उसके ससुराल में याची को प्रताड़ित किया जा रहा था। प्रताड़ना से तंग आकर वह ससुराल से वापस आ गई और मायके में रहने लगी। पति से उसने गुजारा भत्ता की मांग की मगर पति ने गुजारा भत्ता देने से मना कर दिया। इसके बाद उसने गाजीपुर जनपद के पारिवारिक न्यायालय में मुकदमा दाखिल किया। वहां से गुजारा भत्ता के लिए अंतरिम आदेश पारित किया गया है।
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