नई दिल्ली। भारत सरकार हर वर्ष 25 जून को ‘संविधान हत्या दिवस’ मनाएगी। इस संबंध में अधिसूचना भी जारी हो गई है। यह दिन उन सभी लोगों के विराट योगदान का स्मरण करायेगा, जिन्होंने 1975 के आपातकाल के अमानवीय दर्द को झेला था।
भारत में संविधान को रौंद कर, तंत्र को बंदी बनाने वाले गांधी कुनबे की सोच जर्मनी के तानाशाह से दो कदम आगे रही है। 25 जून 1975 से इंदिरा गांधी सरकार का दमनकारी रूप दिखा था। लोगों को जेल में ठूंस दिया गया था, लोकतंत्र को बंदी बना लिया गया था। जनता को असह्य पीड़ा दी गई थी। लोकतंत्र और राष्ट्रवाद का शंखनाद करने वाली पत्रिका पाञ्चजन्य ने इस पीड़ा को महसूस किया, पीड़ितों के साथ खड़ा हुआ और इंदिरा गांधी की हिटलर वाली सोच को जनता के सामने लाकर रखा। आपातकाल पर केंद्रित दो विशेष अंक का भी प्रकाशन किया।
इसी साल 25 जून का अंक – हिटलर वाला काम गांधी बस नाम से कवर पेज प्रकाशित किया। इसमें लिखा कि भारत में संविधान को रौंद कर, तंत्र को बंदी बनाने वाले गांधी कुनबे की सोच जर्मनी के तानाशाह से दो कदम आगे। यह भी लिखा कि आज राहुल गांधी घूम-घूम कर यह कह रहे हैं कि केंद्र सरकार संविधान को बदलना चाहती है, लेकिन वे अपनी दादी इंदिरा गांधी की चर्चा नहीं करते जिन्होंने आपातकाल लागू कर पूरे लोकतंत्र की हत्या की थी।
2 जुलाई 2023 के अंक में भी हिटलर वाली सोच को उजागर किया था। कवर पेज था – हिटलर गांधी। दो तानाशाह, एक जैसी इबारत, हिटलर के जघन्य अपराधों को नकारने अथवा भुलाने पर यूरोप में कई जगह कानूनी पाबंदी है, यह उनके लिए अस्तित्व रक्षा का प्रश्न है। यही स्थिति भारत में इंदिरा गांधी के लगाए आपातकाल की है, जिसे भुलाना लोकतंत्र के अस्तित्व के लिए खतरनाक हो सकता है।
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