कुरुक्षेत्र में गत दिनों ‘एकात्म मानव दर्शन संकल्पना कोश’ का लोकार्पण हुआ। ‘एकात्म मानव दर्शन संकल्पना कोश’ के लोकार्पण समारोह में कई विशिष्ट व्यक्तियों ने हिस्सा लिया। समारोह का आयोजन ‘पुनरुत्थान विद्यापीठ’ और ‘विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान’ के संयुक्त तत्वाधान में हुआ।
ग्रंथ का विमोचन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सह–सरकार्यवाह सी आर मुकुन्द ने किया। समारोह की अध्यक्षता कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो डॉ सोमनाथ सचदेवा ने की। पुनरुत्थान विद्यापीठ की कुलपति इन्दुमति काटदरे और विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान के अध्यक्ष डॉ ललित बिहारी गोस्वामी भी समारोह में मौजूद थे।
‘पुनरुत्थान प्रकाशन’ द्वारा प्रकाशित ‘मानव दर्शन संकल्पना कोश’ के इस हिन्दी संस्करण से पूर्व इसका अंग्रेजी संस्करण आया था, जिसका संपादन रविन्द्र महाजन और नाना लेले ने किया था। अब उस अंग्रेजी संस्करण के जिस हिन्दी संस्करण का विमोचन हुआ उसका अनुवाद कुरुक्षेत्र के विद्वान और प्रसिद्द शिक्षाविद रत्न चंद सरदाना ने किया है। समारोह में रत्न चंद सरदाना और रविन्द्र महाजन भी उपस्थित रहे।
सीआर मुकुन्द ने इस मौके पर एकात्म मानव दर्शन के विभिन्न पहलुओं को अच्छे से समझाया। उन्होंने कहा कि आज विश्व जिस दौर से गुजर रहा है उसमें भारतीय ज्ञान परंपरा का अत्यंत महत्व है। लेखक रत्न चंद सरदाना ने कहा कि हमारे प्राचीन ज्ञान को वर्तमान जीवन में किस तरह प्रयोग में लाया जाये, यह पुस्तक उसकी कुंजी है। पुस्तक में जीवन के 4 पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की सम्पूर्ण व्याख्या है। यह पुस्तक आम पाठकों के लिए तो श्रेष्ठ है ही, साथ ही मानव दर्शन के शोधार्थियों के लिए भी बेहद उपयोगी है। पुस्तक का अनुवाद करने में मुझे करीब 6 महीने लगे। लेकिन इसका अनुवाद करना सुखकर रहा। इससे भारतीय चेतना की अनुभूति होती है। ऋषियों मुनियों के पुरातन ज्ञान का बोध होता है। ‘मानव दर्शन संकल्पना कोश’ उसी पुरातन ज्ञान की आधुनिक प्रस्तुति होने के साथ, पूंजीवाद और साम्यवाद जैसी असफल व्यवस्थाओं का एक श्रेष्ठ भारतीय विकल्प भी है। रत्न चंद सरदाना को उनके विशिष्ट योगदान के लिए समारोह में सम्मानित भी किया गया। पिछले 20 साल में यह उनकी बीसवीं पुस्तक है।
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