इस्लामी-वामपंथी गठजोड़ और ईरान का भूला हुआ कम्युनिस्ट हत्याकांड
July 22, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • ऑपरेशन सिंदूर
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • जनजातीय नायक
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • ऑपरेशन सिंदूर
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • जनजातीय नायक
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम विश्लेषण

इस्लामी-वामपंथी गठजोड़ और ईरान का भूला हुआ कम्युनिस्ट हत्याकांड

जून के महीने में ही ईरान में हुए इस सामूहिक हत्याकांड की बरसी होती है, मगर समूचा कम्युनिस्ट जगत इस हत्याकांड को स्मरण नहीं करता है। सुनियोजित तरीके से राजनीतिक विरोधियों की हत्याएं की गईं।

by सोनाली मिश्रा
Jul 11, 2024, 08:52 am IST
in विश्लेषण
Iran Islamist communist genocide

प्रतीकात्मक तस्वीर

FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

फ्रांस में वामपंथी गठबंधन के सत्ता में आने को लेकर इस्लामिस्ट भी गदगद हैं। वे दोनों ही अपनी एकता को प्रदर्शित कर रहे हैं। मगर जैसे वर्ष 1965 में इंडोनेशिया में इस्लामिस्ट सेना ने कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्यों और उससे सम्बद्ध लोगों का कत्लेआम किया था, उसी तरह एक और हत्याकांड कम्युनिस्टों का हुआ था। इसमें उन्हें चुन-चुन कर मारा गया था, और वह भी एक इस्लामिस्ट देश में हुआ था।

यह घटना है ईरान की। ईरान में इन दिनों जो हो रहा है, वह किसी से छिपा नहीं है। वर्ष 1979 में ईरान में इस्लामिक क्रांति हुई थी, जिसने ईरान के शाह को गद्दी से हटाया था और इस्लामिक रिपब्लिक की स्थापना की थी। एक राजशाही का अंत था और इस्लामिक मूल्यों के आधार पर शिया मौलवियों ने सत्ता स्थापित की थी।

मगर क्या यही सच था? क्या यह क्रांति केवल इस्लामिक क्रांति थी? जिस क्रांति ने इस्लाम के शाह को गद्दी से हटाया था, उसमें छोटे अनुपात में ही सही मगर महत्वपूर्ण रूप से लेफ़्टिस्ट और मार्क्सवादी समूहों की भी भूमिका थी। उन्होंने भी तेहरान में हुए विजयी जश्न में भूमिका निभाई थी। मगर आज जब ईरान मे सरकार की चर्चा होती है, उसमें वे कम्युनिस्ट और मार्क्सवादी कहाँ हैं?

इसे भी पढ़ें: इस्लामिस्ट-कम्युनिस्ट गठजोड़ का सच बताता इंडोनेशिया का कम्युनिस्ट सामूहिक हत्याकांड

जून के महीने में ही ईरान में हुए इस सामूहिक हत्याकांड की बरसी होती है, मगर समूचा कम्युनिस्ट जगत इस हत्याकांड को स्मरण नहीं करता है। सुनियोजित तरीके से राजनीतिक विरोधियों की हत्याएं की गईं। यह इस सीमा तक सुनियोजित था कि आज तक इनके विषय में सामने कुछ नहीं आता है। ईरान के अधिकारियों ने बहुत ही सुनियोजित तरीके से राजनीतिक असंतुष्टों की सामूहिक कब्रों को खोदकर, ऐतिहासिक आंकड़ों को विकृत करके और जो जिंदा बचे उनका निरंतर शोषण करके, उनका दमन करके इस हत्याकांड को लोगों की स्मृतियों में से मिटाने का हरसंभव प्रयास किया।

वैसे इसे भुलाए जाने में पूरे विश्व के कम्युनिस्टों ने भी योगदान दिया है। वे हर मोर्चे पर इस्लामिस्टों के साथ खड़े दिखाई देते हैं, मगर वे ईरान में अपने उन साथियों के साथ खड़े नहीं दिखाई देते, जिन्होनें ईरान के शाह की गद्दी छीनना सरल किया और फिर उनकी ही जिंदगी छिन गई थी। यह सत्य है कि ईरान में वर्ष 1979 में हुई इस्लामिक क्रांति ने इस्लाम को आधिकारिक मजहब बनाया था, मगर फिर भी कम्युनिस्ट और मार्क्सवादी समूह के नेता और सदस्य इस्लामिक रिपब्लिक के मजहबी विचारों को साझा नहीं करते थे। ऐसे में शायद सत्ताधारी दल में असंतोष होना स्वाभाविक हो गया था। स्थितियां जटिल भी हो गई थीं। फिर ऐसे में इस्लामिस्ट सरकार के पास एक ही चारा था कि वह अपनी राजनीतिक स्थिति को मजबूत करने के लिए और अपने राजनीतिक अस्तित्व के लिए विरोधियों का समूल नाश कर दे।

मगर क्या विरोधियों का समूल नाश होना संभव था? क्या इतनी बड़ी संख्या में और उन लोगों को मारा जा सकता था, जिन्होनें ईरान की क्रांति में अपने मन से आने वाली सरकार के निर्माण के लिए योगदान दिया था? आज जब फ्रांस में इस्लामिस्ट और कम्युनिस्ट दोनों ही कम्युनिस्ट पार्टी के सबसे बड़े गठबंधन होने का जश्न मना रहे हैं, तब कम्युनिस्टों से यह पूछा ही जाना चाहिए कि आखिर वे हजारों लोग कहाँ गए जिन्होंने ईरान को शाह के हाथों से आजाद कराने के लिए काम किया था?

जो रणनीति बनाई गई उसमें क्रांति और इस्लाम की बुनियादी बातों की रक्षा करने के नारे महत्वपूर्ण हो गए और इसके लिए जून 1981 से मार्च 1982 तक ईरान में वह हुआ, जिसे किसी भी सभ्य समाज में दोहराया नहीं जा सकता है। इस अवधि के दौरान ईरान के मौलवी शासन ने ईरान के इतिहास के सबसे बड़े कत्लेआम में से एक को अंजाम दिया। जो मारे गए थे उनमें कम्युनिस्ट, सोशलिस्ट, सोशल डेमोक्रेट, उदारवादी इस्लामिस्ट, उदारवादी, राजशाही समर्थक और बहाई मत के अनुयायी थे। पूरे 9 महीने तक यह दमन चलता रहा।

कल्चरल क्रांति के नाम पर हुआ था यह कत्लेआम

ईरान में यह कत्लेआम कल्चरल या कहें तहजीबी क्रांति के रूप में आरंभ हुआ था। यह बात उचित भी है कि जब क्रांति के माध्यम से इस्लामिस्ट शासन आ गया था, शरिया के अनुसार समाज की संकल्पना हो गई थी तो फिर और विचारों का क्या काम था? तो ऐसे में अयातुल्ला खुमैनी ने 14 जून 1980 को एक तहजीबी क्रांति के लिए आदेश पारित किया। यह तालीम को गैर इस्लामिक, उदारवादी या कहें लेफ़्टिस्ट तत्वों से आजाद कराने का आदेश था। देखते ही देखते शिया मौलवियों ने देश के हर संस्थान पर अपना कब्जा कर लिया और अपनी ताकत को एकत्र किया। उन्होंने ईरान में एक मजहबी तानाशाही की स्थापना की। कॉलेज आदि में इस्लाम के अनुसार पाठ्यक्रमों का संचालन होने लगा और एक ही झटके में सभी छात्र संघ बेकार हो गए।

वर्ष 1981 में राजनीतिक बंदियों की यह हत्या हिंसा की घटनाओं का परिणाम नहीं थी। वे बहुत ही सोच समझकर, सुनियोजित तरीके से की गई थीं। ये हत्याएं कानूनी दायरे में रहकर की गई थी और ये कानूनी दायरे वे दायरे थे, जो इस्लामिक क्रांति होने के बाद वर्ष 1979 के बाद बनाए गए थे। अत: यह कहा जा सकता है कि वे कानून का शिकार हुए थे।

ऐसा कहा जाता है कि 85 शहरों में 3500 लोगों को फांसी दी गई थी। इस्लाम के अनुसार कानून बनाए गए और अयातुल्ला खुमैनी ने इन समूहों के खिलाफ़ फ़तवा जारी किया और नेशनल फ़्रंट पर धर्मत्याग ( एर्टेडैड ), “इस्लाम विरोधी” कम्युनिस्टों और “पाखंडियों” ( मुनाफ़िक़) के साथ सहयोग करने का आरोप लगाया। उसी बयान में, उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि शरिया कानून के सभी आलोचकों ने “अपने हाथों से अपनी कब्र खोदी है”। कुछ दिनों बाद, इस बयान के कारण सैकड़ों युवा प्रदर्शनकारियों और आलोचकों की सामूहिक गिरफ़्तारी हुई। यह ऐसा हत्याकांड था, जिसमें पहले मारने के लिए कानून बनाए गए और फिर उन सभी को मारा गया जो उस दायरे में फिट नहीं बैठते थे।

उसी दौरान महिलाओं के लिए अनिवार्य हिजाब का कानून बना था। यह भी विडंबना है कि जहां ईरान के शाह के शासनकाल में महिलाओं को हिजाब न पहनने की आजादी थी, वहीं इस्लामिक क्रांति के बाद उनकी वस्त्र पहनने की आजादी ही गायब हो गई। यह आंदोलन मध्य वर्ग के उन लोगों का आंदोलन था, जो कथित रूप से शाह की राजशाही से मुक्ति चाहते थे। उनमें आजादी की इस भावना का विस्तार करने वाले कम्युनिस्ट ही थे। खुमैनी के लिए ऐसी छवि गढ़ी गई कि वह आते ही सब कुछ ठीक कर देगा। मगर वर्ष 1979 के बाद जो भी ईरान में हुआ, उसके अवशेष अभी तक दिख रहे हैं। आज भी ईरान में इस्लाम के अनुसार ही कानून है और इस्लाम के अनुसार ही पर्दा है। इसके साथ ही जो विरोधी दल थे, उन पर प्रतिबंधों की बारिश होने लगी, जैसे तुहेद पार्टी ऑफ ईरान को प्रतिबंधित कर दिया गया। कई नियम और शर्तें बनाई गईं जिनका पालन न किए जाने पर मौत की सजा का प्रावधान था।

इसी हत्याकांड का दूसरा अभियान वर्ष 1988 में चलाया गया था। कहा जाता है कि लगभग 10,000 लोगों को इस्लाम के दुश्मन होने के फतवे के चलते चुन चुन कर मार डाला गया। वर्ष 1981-82 में और बाद में 1988 में जिन्हें मारा गया, वे अधिकांश कम्युनिस्ट विचारों के ही लोग थे, फिर भी उनकी इस सुनियोजित हिंसा पर चुप्पी रहती है। ऐसा क्यों है कि इस्लामिस्ट और कम्युनिस्ट गठजोड़ जब होता है, तब कथित दक्षिण पंथ को तो हराने की बात करता है, कथित दक्षिणपंथ के फासीवाद की बात करता है, मगर आज तक वही कम्युनिस्ट और इस्लामिस्ट गठजोड़ उन हजारों हत्याओं पर कुछ नहीं कहता, जो इस्लामिस्ट राज्यों में विरोधी अर्थात इस्लाम विरोधी विचारों के लोगों की हुई थीं?

कम्युनिस्टों में अपने ही लोगों के सुनियोजित तरीके से मारे जाने पर इतना सन्नाटा क्यों होता है? कट्टर कम्युनिस्ट और कट्टर इस्लामिस्ट फिर एक बार एक मेज पर खाने के लिए सामने आ जाते हैं, बिना यह विचारे कि आखिर उन हजारों लोगों की क्या गलती थी, जो केवल कथित कम्युनिस्ट और कथित आजादी के चलते मारे गए। आखिर इन हत्याओं पर बात क्यों नहीं होती है?

Topics: फ्रांसFranceफ्रांस न्यूजवर्ल्ड न्यूजइस्लामिस्ट-कम्यनिस्ट गठजोड़ईरान कम्युनिस्ट हत्याकांडIslamist-communist allianceIran communist massacreworld NewsFrance News
Share1TweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

सुअर साथ लेकर चलने के वीडियो सोशल मीडिया पर हो रहे वायरल

क्या फ्रांस में लड़कियां साथ लेकर चल रहीं “सुअर”, आखिर कारण क्या है?

Iran-Israel War : दुनिया भर में बंद होंगे इजरायल के दूतावास, ईरान ने कहा- ‘कहानी का अंत हम लिखेंगे’

जमीन पर पटका, उल्टा कर बांधे हाथ-पैर : अमेरिकी एयरपोर्ट पर छात्र से बदसलूकी, एक्शन में आया भारतीय दूतावास

फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों को सौंपी गई रिपोर्ट में स्कूलों और स्थानीय सार्वजनिक निकायों में 'मुस्लिम ब्रदरहुड' द्वारा मजहबी तत्वों को घुसाने की चाल का सबूत मिलने का दावा किया गया

France में इस्लामवादियों का उपद्रव, खुफिया रिपोर्ट ने इस्लामी तत्वों की सरकार में घुसपैठ की दी थी चेतावनी

चीन की महत्वाकांक्षा एक वैश्विक महाशक्ति बनने की है

कम्युनिस्ट ड्रैगन कर रहा दुनिया भर में जासूसी, ताजा रिपोर्ट से खुलासा हुआ China के सबसे बड़े गुप्तचर तंत्र का

फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों (दाएं) ने बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस को संभवत: उनका कद याद दिलाया

मैक्रों से अलग से बैठक की यूनुस की मंशा पर फिरा पानी, France के राष्ट्रपति ने नहीं दिया मिलने का वक्त

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

उत्तराखंड : खच्चर चलाने वाला अतुल अब करेगा IIT मद्रास से पढ़ाई, जानिए संघर्षरत छात्र की प्रेरक कहानी..

जगदीप धनखड़ का इस्तीफा : जानिए कैसे होगा उपराष्ट्रपति चुनाव? आसान भाषा में समझें वोटिंग प्रक्रिया

‘पार्टी में इनकी हैसियत क्या है?’, शशि थरूर ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की स्थिति पर उठाया सवाल

जगदीप धनखड़ के इस्तीफे की पूरी टाइमलाइन : जानिए 10 घंटे में क्या हुआ, जिसने देश को चौंका दिया..?

खालिस्तानी आतंकवादी गुरपतवंत सिंह पन्नू

खालिस्तानी पन्नू करेगा 15 अगस्त पर शैतानी, तिरंगा जलाने और जनमत संग्रह की धमकी के साथ फैला रहा नफरती जहर

लव जिहाद : राजू नहीं था, निकला वसीम, सऊदी से बलरामपुर तक की कहानी

लव जिहाद और जमीन जिहाद की साजिशें बेनकाब : छांगुर नेटवर्क के पीड़ितों ने साझा की आपबीती

मुरादाबाद : लोन वुल्फ आतंकी साजिश नाकाम, नदीम, मनशेर और रहीस गिरफ्तार

हर गांव में बनेगी सहकारी समिति, अब तक 22,606 समितियां गठित: अमित शाह

खुशखबरी! ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतने पर अब दिल्ली सरकार खिलाड़ियों को देगी 7 करोड़ रुपये

पेटीएम ने राशि का भुगतान नहीं किया राज्य आयोग ने सेवा दोष माना

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • जीवनशैली
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies