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‘खान मार्केट गैंग’ का गुप्त गठजोड़ उजागर

Published by
Sudhir Kumar Pandey

कश्मीर पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की एक लोकप्रिय कविता है, जिसमें उनकी एक पंक्ति है- ‘चिंगारी का खेल बुरा होता है।’ वर्तमान दौर में यह चिंगारी फेक नैरेटिव के रूप में दिखती है और यह खेल खेलता है खान मार्केट गैंग। यह गुप्त गठजोड़ आग लगाकर तमाशा देखने लगता है। वरिष्ठ पत्रकार अशोक श्रीवास्तव की अभी हाल में आई पुस्तक ‘मोदी Vs खान मार्केट गैंग’ में इस गठजोड़ को परत दर परत खोला गया है।

यह गैंग नरेंद्र मोदी और राष्ट्रवाद का विरोध करता है एवं लुटियंस दिल्ली और लुटियंस मीडिया से जुड़ा है। नई दिल्ली से लेकर न्यूयॉर्क तक कैसे एजेंडा सेट होता है, सिस्टम कैसे चलता है, टूलकिट कैसे सक्रिय होती है, चिंगारी कैसे भड़कती है, इन सभी सवालों के जवाब इस पुस्तक में मिलते हैं।

इसी गुप्त गठजोड़ ने ‘मोदी तानाशाह हैं’ का फेक नरैटिव उछाला। ‘गोदी मीडिया’ शब्दावली गढ़ी गई और गैंग के इकोसिस्टम ने इसे गोद ले लिया। लेखक ने इसे स्पष्ट किया है कि असली गोदी मीडिया कौन है? प्रमाण के लिए उसने कुलदीप नैयर की आत्मकथा ‘बियांड द लाइन्स, एन आटोबायोग्राफी’ का जिक्र किया है। इसमें बताया गया है कि नेहरू के कहने पर इंदिरा गांधी के पति फिरोज गांधी को इंडियन एक्सप्रेस में नौकरी पर रखा गया था। इसके साथ ही उन्हें महंगी विदेशी आस्टिन कार दी गई थी, जिसकी कीमत लाखों में थी।

दरअसल, मोदी से नफरत करने वाले कुछ लोगों ने भारत में यह फेक नैरेटिव बना दिया कि पत्रकारिता के मायने हैं-मोदी का विरोध करना, हर चुनाव में मोदी को हराने के लिए काम करना और उन्हें हराने की भविष्यवाणी करना।

लेखक ने लिखा है कि जब पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी चुनाव जीतती हैं तो ‘द टेलीग्राफ’ शीर्षक लगाता है-‘गुड मॉर्निंग बंगाल’। टेलीग्राफ को यह ‘सांप्रदायिकता के खिलाफ जनता का वोट’ दिखता है, लेकिन जब उत्तर प्रदेश में मोदी-योगी के नेतृत्व में भाजपा जीतती है तो टेलीग्राफ उत्तर प्रदेश को ‘शव प्रदेश’ कहता है। बंगाल में राजनीतिक हिंसा की बात किसी से छिपी नहीं है, जबकि उत्तर प्रदेश राजनीतिक हिंसा से कोसों दूर रहा है। फेक नैरेटिव के खेल में कैसे एक देश तबाह हो सकता है, लेखक ने इसके लिए इराक का उदाहरण दिया है।

अमेरिकी लेखक मार्क ट्वेन ने कहा था कि जब तक सच अपने जूते पहनता है तब तक झूठ आधी दुनिया का चक्कर लगा लेता है। सूचना क्रांति और भ्रांति के इस दौर में तो झूठ इतने समय में पूरी दुनिया के कई बार चक्कर लगा लेगा। इस झूठ को हवा देते हैं कथित ‘फैक्ट चेकर’, जिनका एजेंडा राजनीतिक होता है। ये झूठ फैलाने में आगे रहते हैं। ‘फैक्ट चेक का धंधा, झूठा एजेंडा’ अध्याय में लेखक ने इन कथित ‘फैक्ट चेक’ करने वालों के तथ्यों का ‘फैक्ट चेक’ किया है। फेक नैरेटिव का यह खेल वर्ष 2014 से केन्द्र में सत्ता परिवर्तन के बाद से लगातार चल रहा है। ये कथित ‘फैक्ट चेकर’ सर तन से जुदा करने वाले गैंग को भी सक्रिय कर देते हैं और सेना की निष्ठा पर भी सवाल उठाते हैं। इन्हें पैसा कहां से मिलता है? कौन-कौन से लोग जुड़े हैं? इन सवालों के जवाब इस पुस्तक में मिलते हैं।

खान मार्केट गैंग फेक नैरेटिव ही नहीं बनाता, बल्कि समाज के सौहार्द को बिगाड़ने का भी काम करता है। समाज में वैमनस्यता कैसे फैले, आग कैसे लगे, इस पर भी गैंग की नजर रहती है। इस गैंग ने ही यह झूठ फैलाया है कि भारत में मुसलमान सुरक्षित नहीं हैं। इस झूठ को 2014 से हवा दी जा रही है। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से भारत ही नहीं, विदेश में भी इस झूठ को फैलाया जा रहा है।

गुजरात दंगों को लेकर नरेंद्र्र मोदी को घेरने की कोशिश की गई। यह अभियान सफल नहीं हुआ तो इसे दूसरे रूप में पेश किया गया। 2014 के चुनाव से ही इस गैंग ने यह प्रचार करना शुरू कर दिया था कि नरेंद्र मोदी अगर चुनाव जीत गए तो मुसलमानों का भारत में रहना मुश्किल हो जाएगा। इसमें वे लोग भी शामिल थे, जिन्होंने वर्ष 2008 में मुंबई आतंकी हमले में पाकिस्तान को क्लीन चिट दी थी। यही गैंग कॉमन सिविल कोड को मुस्लिम विरोधी करार देता है, खालिस्तान समर्थकों के साथ खड़ा हो जाता है, संसद पर संग्राम करता है और भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था को नाकाम बताता है।

लेखक ने इसे पहले ही स्पष्ट कर दिया कि दिल्ली के खान मार्केट से इस पुस्तक का सीधा संबंध नहीं है। वर्ष 2019 के चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक विशेष संदर्भ में इस शब्दावली का प्रयोग किया था, जिसका विस्तार से वर्णन इस पुस्तक में किया गया है। पुस्तक की भाषा सरल है। शैली पाठकों से संवाद करती हुई है। लेखक ने तथ्यों को प्रमाण के साथ रखा है। तथ्यों को कुछ स्थानों पर दोहराया गया है, लेकिन बात कहते समय यह प्रयोग उचित प्रतीत होता है।

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