मोदी अभी इटली में जी7 शिखर सम्मेलन में गए थे, जहां उन्होंने यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की सहित कई नेताओं से मुलाकात की थी; पुतिन से चर्चा में मोदी रूस-यूक्रेन संघर्ष को सुलझाने में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आज दो दिन के लिए रूस दौरे पर रवाना हुए हैं। नि:संदेह मोदी के इस दौरे पर केवल भारत और रूस ही नहीं, अपितु जी7 देशों, नाटो, यूएन और यूरोपीय संघ के नेताओं की नजर है। मोदी आज एक वैश्विक नेता का दर्जा पाए हुए हैं। उनकी बात और नीतियों को गंभीरता से सुना, देखा जाता है। इसलिए द्विपक्षीय ही नहीं, वर्तमान वैश्विक परिस्थितियों के संदर्भ में मोदी का यह रूस दौरा विशेष महत्व रखता है।
सिर्फ भारत के संदर्भ की बात करें तो मोदी मास्को में एस400 मिसाइल तंत्र की आपूर्ति पर बात कर सकते हैं। भारत ने रूस से पांच ऐसे मिसाइल तंत्र खरीदने का समझौता किया हुआ है। रूस ने अभी दो ही भेजे हैं, शेष तीन को भेजने में यूक्रेन युद्ध की वजह से देरी हो रही है। संभवत: वे 2025 तक ही भारत को मिल पाएंगे।
मोदी पुतिन से बात कर सकते हैं रूस की सेना में भारतीयों के अटके होने की। मानव तस्कर गिरोह की चाल में फंसकर लगभग 20 भारतीय अनजाने ही रूस की सेना में भर्ती होकर यूक्रेन के विरुद्ध मोर्चे पर उतरने को मजबूर कर दिए गए थे। उनमें से दो तो इस लड़ाई में अपनी जान गंवा चुके हैं। शेष 18 में से 10 स्वदेश लौट आए हैं। बाकी के भारतीय ‘सैनिक’ भी सकुशल लौटें, इस संबंध में शायद बात हो। भारत के विदेश मंत्री जयशंकर खुद अस्ताना में जारी शंघाई सहयोग शिखर सम्मेलन में इस विषय पर बोल भी चुके हैं।
मास्को में मोदी की रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से होने वाली इस वार्ता को दोनों देशों के बीच रहे पारंपरिक संबंधों की मजबूती में एक मील पत्थर माना जा रहा है। इससे पूर्व पुतिन के साथ हुई उनकी प्रत्यक्ष वार्ता को तीन साल हो चुके हैं। कह सकते हैं कि रूस—यूक्रेन शुरू होने के बाद, दोनों में पहली बार आमने—सामने बात होने जा रही है।
भारत तथा रूस अनेक दशक से अपने द्विपक्षीय व्यापार को 10 अरब डॉलर से आगे बढ़ाने के लिए कोशिश कर रहे हैं; इधर नई दिल्ली ने रूसी कच्चा तेल खरीदना शुरू किया तबसे यह अभूतपूर्व रूप से 65 अरब डॉलर तक पहुंच गया। इसमें भी संदेह नहीं है कि भारतीय सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की कंपनियां रूसी हाइड्रोकार्बन क्षेत्र पर दृष्टि जमाए हुए हैं। इन कंपनियों ने कुछ क्षेत्रों में सफलतापूर्वक प्रवेश किया भी है और यह परस्पर लाभकारी ही रहा है।
मोदी की इस रूस यात्रा के वैश्विक संदर्भों पर पूर्व राजदूत अनिल त्रिगुणायत का कहना है कि मास्को तथा नई दिल्ली चीन से जुड़े मुद्दों पर लगातार और खुलकर चर्चा करते हैं। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह कि रूस ब्रिक्स शिखर सम्मेलन का अध्यक्ष है। त्रिगुणायत कहते हैं कि मोदी अभी इटली में जी7 शिखर सम्मेलन में गए थे, जहां उन्होंने यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की सहित कई नेताओं से मुलाकात की थी; पुतिन से चर्चा में मोदी रूस-यूक्रेन संघर्ष को सुलझाने में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।
इसके साथ ही ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ के अपने दर्शन और विश्व बंधुत्व के मंत्र पर चलने वाली नई दिल्ली को उन संकटों को कम करने के तरीके भी खोजने की जरूरत है जो उसके राष्ट्रीय हितों के साथ-साथ अल्प विकसित तथा विकासशील देशों के वंचित वैश्विक समुदाय के तीन चौथाई हिस्से पर प्रतिकूल असर डालते हैं।
दोनों देशों के बीच व्यापार की बात करें तो भारत तथा रूस अनेक दशक से अपने द्विपक्षीय व्यापार को 10 अरब डॉलर से आगे बढ़ाने के लिए कोशिश कर रहे हैं; इधर नई दिल्ली ने रूसी कच्चा तेल खरीदना शुरू किया तबसे यह अभूतपूर्व रूप से 65 अरब डॉलर तक पहुंच गया। इसमें भी संदेह नहीं है कि भारतीय सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की कंपनियां रूसी हाइड्रोकार्बन क्षेत्र पर दृष्टि जमाए हुए हैं। इन कंपनियों ने कुछ क्षेत्रों में सफलतापूर्वक प्रवेश किया भी है और यह परस्पर लाभकारी ही रहा है। मोदी अपनी यात्रा में रूसी पाइपलाइनों पर भी चर्चा कर सकते हैं। यह समय भी सही है, क्योंकि मास्को अपनी ‘एक्ट एशिया’ और यूरेशिया नीतियों को बेहतर बना रहा है तो भारत भी अपनी बहु-आयामी नीति के साथ आगे बढ़ रहा है।
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