झारखण्‍ड

शौहर मुसलमान, बच्चे मुसलमान, पर बीवी चुनाव लड़ती है जनजाति के नाम

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अरुण कुमार सिंह

जनजातियों के लिए सुरक्षित राजमहल लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने वाली मरियम मरांडी के पति का नाम है- मोहम्मद अब्दुस शमीम। 

झारखंड में बहुत ही सोची-समझी साजिश के तहत मुसलमान लड़के जनजाति लड़कियों से विवाह कर रहे हैं। इन युवकों में कुछ स्थानीय हैं, तो ज्यादातर बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठिए। ये लोग जनजाति लड़कियों से विवाह जरूर करते हैं, लेकिन कभी उनका नाम नहीं बदलते हैं। इसके पीछे भी एक सोच है और वह सोच है जनजाति के नाम पर मिलने वालीं सरकारी सुविधाओं का लाभ उठाना। बच्चों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण दिलाना, जनजातियों के लिए सुरक्षित क्षेत्र से चुनाव लड़वाना। राजमहल, साहिबगंज, पाकुड़ जैसे क्षेत्रों में बड़ी संख्या में ऐसी जनजाति महिलाएं मुखिया हैं, जिनका विवाह या निकाह किसी मुसलमान से हुआ है। ये महिलाएं भले ही मुखिया हैं, लेकिन इनका काम इनके मुसलमान पति ही करते हैं। यानी ये लोग अपनी कथित जनजाति पत्नी की आड़ में पूरी व्यवस्था पर कब्जा कर रहे हैं। अब ये लोग लोकसभा का चुनाव भी सुरक्षित क्षेत्र से अपनी कथित जनजाति पत्नी को लड़वाने लगे हैं। इसका ताजा उदाहरण है राजमहल लोकसभा क्षेत्र।
इस वर्ष राजमहल (सुरक्षित) लोकसभा क्षेत्र से बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर मरियम मरांडी ने चुनाव लड़ा था। 31 वर्षीया मरियम के पति का नाम है-मोहम्मद अब्दुस शमीम। बेटे का नाम मोहम्मद शाहिद और बेटी है सीमा खातून। मरियम मरांडी गांव इस्लामपुर, पोस्ट भवानीपुर, जिला पाकुड़ की रहने वाली हैं। आश्चर्य है कि अब्दुस शमीम से निकाह के बाद भी मरियम मरांडी जनजातियों के लिए आरक्षित राजमहल लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ती हैं। कह सकते हैं कि मरियम मरांडी के घर वालों ने कानून में मौजूद छेद का लाभ उठाया और उन्हें लोकसभा के चुनाव में उतार दिया। हालांकि मरियम मरांडी चुनाव हार गईं, लेकिन कल्पना कीजिए कि वह जीत जातीं तो उन पर जोर किसका चलता। स्पष्ट है कि उनके बहाने उनके पति अब्दुस शमीम ही इस क्षेत्र के लिए काम करते। यानी एक सुरक्षित क्षेत्र का प्रतिनिधित्व अपरोक्ष रूप से एक मुसलमान करता। ऐसा होता तो अब्दुस शमीम के लिए मीडिया में एक नया शब्द आता-‘सांसद पति।’ ठीक वैसे ही जैसे ‘मुखिया पति’ शब्द आजकल बहुत प्रसिद्ध है।
इस प्रकरण से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि झारखंड में कुछ जिहादी तत्व शासन और प्रशासन पर पकड़ बनाने के लिए किस हद तक के षड्यंत्र रच रहे हैं। इन लोगों के कारण ही बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठ की समस्या भी राज्य में विकराल रूप लेती जा रही है, लेकिन सत्ता में बैठे लोग इस मामले पर बिल्कुल चुप हैं। उन्हें लग रहा है कि यदि बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों पर कुछ बोला या किया तो वोट बैंक नाराज हो जाएगा। इसका पूरा फायदा वे लोग उठा रहे हैं, जो बांग्लादेशी घुसपैठियों को भारत में बसाकर इसे ‘मुस्लिम देश’ बनाना चाहते हैं।
सामाजिक कार्यकर्ता  संत कुमार घोष बताते हैं, ‘‘अब साहिबगंज जिले में अनेक जमाई गांव बन गए हैं। दरअसल, ये घुसपैठिए स्थानीय लड़की से विवाह इसलिए करते हैं कि उनकी जमीन पर कब्जा कर सकें।’’  यह भी बताया, ‘‘जनजाति की जमीन कोई गैर-जनजाति खरीद नहीं सकता है। इसलिए बांग्लादेशी घुसपैठिए स्थानीय जनजाति युवतियों को अपने प्रेम जाल में फंसाते हैं।’’ विवाह के बाद ये घुसपैठिए ससुराल में ही रहते हैं। साहिबगंज और पाकुड़ जिले में ऐसे अनेक गांव हैं, जहां ऐसे दामादों की संख्या बहुत अधिक है। इसलिए ऐसे गांवों को जमाई गांव कहा जाने लगा है।
बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठ से सबसे ज्यादा प्रभावित है संथाल परगना। इस क्षेत्र के छह जिले- साहिबगंज, पाकुड़, गोड्डा, देवघर, दुमका और जामताड़ा घुसपैठियों से बुरी तरह प्रभावित हैं। लोगों का कहना है कि इन घुसपैठियों को कुछ मुस्लिम नेता ही बसाते हैं। यही नेता इनके रहने के लिए जगह ढूंढते हैं, काम की तलाश करते हैं। पहले घुसपैठियों को रेलवे लाइन के किनारे या फिर और इसी तरह की सरकारी जमीन पर बसाया जाता है। इसके बाद इनके लिए आधार कार्ड, वोटर आई कार्ड बनवाए जाते हैं। ये कार्ड बनने के बाद ये लोग पूरे भारत में फैल जाते हैं। जहां जो काम मितला है, वही करने लगते हैं।
राजमहल से भाजपा विधायक अनंत कुमार ओझा लगातार घुसपैठ के विरुद्ध आवाज उठाते रहे हैं। वे कहते हैं, ‘‘राज्य सरकार घुसपैठियों को बाहर करने के लिए कुछ करना ही नहीं चाहती है। कभी कुछ बहाना बनाती है, तो कभी कुछ। इस कारण राजमहल, पाकुड़, साहिबगंज के अनेक हिस्सों की जनसांख्यिकी बदल गई है।’’ उन्होंने बताया, ‘‘राजमहल विधानसभा क्षेत्र के उधवा प्रखंड की जनसांख्यिकी पूरी तरह बदल गई है। 2014-19 के बीच यहां 8,000 मतदाता बढ़े थे, जो 2019-24 में 24,000 हो गए हैं।’’ उन्होंने कहा कि यह बदलाव घुसपैठ के कारण ही हुआ है। उन्होंने यह भी बताया कि यहां के 303 मतदान केंद्रों में से 17 में हिंदू मतदाता कम हुए हैं। ऐसा क्यों हुआ! उन्होंने इसकी जांच चुनाव अयोग से करने को कहा है।
बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों का मामला झारखंड उच्च न्यायालय भी पहुंच गया है। अभी हाल ही में झारखंड उच्च न्यायालय ने राज्य के छह जिलों (जामताड़ा, गोड्डा, पाकुड़, साहिबगंज, देवघर और दुमका) के उपायुक्तों को आदेश दिया है कि वे अपने जिले में बांग्लादेशी घुसपैठियों की पहचान कर उन्हें वापस बांग्लादेश भेजने की कार्रवाई करें। इसके साथ ही उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि इस संबंध में जो कार्रवाई की गई, उसकी जानकारी शपथपत्र के जरिए दो सप्ताह के अंदर न्यायालय को दें। बता दें कि इन दिनों बांग्लादेशी घुसपैठियों के विरुद्ध दायर एक याचिका पर उच्च न्यायालय की एक पीठ सुनवाई कर रही है। इसी दौरान न्यायमूर्ति सुजीत नारायण प्रसाद व न्यायमूर्ति अरुण कुमार राय की खंडपीठ ने मौखिक रूप से कहा कि विदेशी घुसपैठ किसी राज्य का नहीं, बल्कि देश का मुद्दा है। इसलिए विदेशी घुसपैठियों का भारत में प्रवेश हर हाल में रोकना होगा। इसके साथ ही खंडपीठ ने राज्य सरकार से कहा कि बांग्लादेशी घुसपैठिए झारखंड की जमीन पर रह रहे हैं। राज्य सरकार को घुसपैठियों की पहचान कर उन्हें वापस भेजना होगा। यह याचिका दानियल दानिश ने दायर की है।
पिछली सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से अधिवक्ता प्रशांत पल्लव ने खंडपीठ को बताया था कि घुसपैठियों की पहचान कर उन्हें राज्य की सीमा से बाहर करने की शक्ति राज्यों को दी गई है। इस मामले में कार्रवाई के लिए राज्य सरकार सक्षम है। यानी राज्य सरकार यह नहीं कह सकती है कि घुसपैठ का मामला केंद्र सरकार के अधीन है।

 

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