भोपाल । मध्य प्रदेश में मदरसे मनमानी कर रहे हैं और सरकार के नियमों को नहीं मान रहे। राज्य बाल संरक्षण आयोग की टीम के अचानक से मदरसों की जांच करने के लिए पहुंचने और उसके द्वारा वहां तमाम अव्यवस्थाओं के देखने से यह बात बार-बार उजागर हो रही है। ऐसे में विधानसभा में इन्हें बंद करने के लिए लाए गए अशासकीय संकल्प के बाद तो जैसे चारो ओर मदरसा शिक्षा पर ही चर्चा हो रही है। हैरत की बात यह है कि अनेक बार मदरसों को समझाने के बाद भी वे सरकारी गाइडलाइन मानने को तैयार नहीं । मदरसा अपनी छुट्टी रविवार की जगह शुक्रवार को रखते हैं। रविवार को शुक्रवार का मध्यान भोजन बांट रहे हैं । यहां पढ़ने वाले तमाम हिन्दू बच्चों को दीनी तालीम देते हैं और उन नियमों की भी अवहेलना करते हैं, जोकि एक मदरसा संचालित करने एवं किसी भी बालक को दी जानेवाली गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा के लिए जरूरी है।
दरअसल, मदरसा संचालक मध्य प्रदेश शिक्षा विभाग के नियमों को यह कहकर मानने से इंकार कर रहे हैं कि शरीयत में जुमा एक बहुत बड़ा दिन है, बच्चों के लिए जुमे की नमाज अदा करना सप्ताह में सबसे ज्यादा जरूरी है, इसलिए मदरसे का अवकाश तो शुक्रवार को ही रखा जाएगा। इसी तरह से राज्य में हजारों की संख्या में हिन्दू बच्चे भी यहां शिक्षा ले रहे हैं, जिन्हें नियम विरुद्ध जाकर दीनी तालीम दी जा रही है। जबकि यह दीनी तालीम सिर्फ मुसलमान बच्चों को ही दी जा सकती है। ऐसे में स्वभाविक तौर पर एक वक्त के बाद हिन्दू बच्चों का माइंडवॉश हो जाता है।
उठी मांग, अल्पसंख्यकों को दिया गया अपने शिक्षण संस्थान खोलने का अधिकार वापिस हो
उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश में एक दिन पूर्व दो घटनाएं एक साथ घटीं, एक ओर मप्र विधानसभा के मानसून सत्र में पांच जुलाई को भाजपा विधायक डॉ. अभिलाष पाण्डेय द्वारा एक अशासकीय संकल्प सदन की कार्यसूची में लाया गया, जिसमें उन्होंने केंद्र सरकार से गुजारिश की, कि अल्पसंख्यकों धार्मिक या भाषायी आधार पर शिक्षण संस्थान चलाने का अधिकार दिया गया है, उसे समाप्त किया जाए।
दूसरी तरफ डॉ. निवेदिता शर्मा, सोनम निनामा और ओंकार सिंह की मप्र राज्य बाल संरक्षण आयोग की तीन सदस्यीय टीम राजधानी भोपाल में मदरसों की यथा स्थिति जानने निकली। ये जहां गए, वह शुक्रवार होने से बंद मिला और जब मदरसा संचालकों से इस टीम ने बात की तो उनका कहना था कि आज जुके की नमाज है। मदरसा बंद रहता है, जिसके बाद मध्य प्रदेश में मदरसा मामले ने तूल पकड़ना शुरू कर दिया। सदन के भीतर और विधान सभा के बाहर इसकी गूंज सुनाई देने लगी। हालांकि शुक्रवार को सदन में रखे जानेवाले सभी तीन अशासकीय संकल्पों को विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर ने अगली बार की विधानसभा में रखे जाने की बात कहकर सदन की कार्यवाही को स्थगित कर दिया, किंतु यह विषय कार्यसूची में शामिल होने से प्रदेश भर में ही नहीं देश भर में चर्चा का विषय बना हुआ है ।
मदरसों में चलने वाली गतिविधियां देश हित में नहीं
इस संबंध में भाजपा विधायक डॉ. अभिलाष पांडेय का कहना है कि मेरे पास कई ऐसी चीज़ें हैं जिसमें यह बात कही गई है जो गतिविधियां वहां मदरसों में चलती हैं, वह देश हित में नहीं हैं। हम उनको समाज की मूल धारा से जोड़ना चाहते हैं, इसलिए अशासकीय संकल्प मैं लेकर आया । उन्होंने कहा कि कई जगह मैंने पढ़ा सुना है जो बच्चे मदरसों में पढ़ते हैं, उन्हें हायर एजुकेशन के लिए दसवीं और बारहवीं में ओपन से पढ़ाई करनी पड़ती है। हम राष्ट्रीय शिक्षा नीति की बात करते हैं। हम समान एजुकेशन की बात करते हैं, मैं चाहता हूं कि माइनॉरिटी में रहने वाले बच्चे समान शिक्षा नीति के साथ पढ़ाई करें। अल्पसंख्यक बच्चों को भी समान शिक्षा का अधिकार मिले। ताकि उनका भविष्य उज्जवल हो सके। इसलिए इस दिशा में मैने कदम उठाया है।
बीजेपी विधायक अभिलाष पांडे जिस अशासकीय संकल्प को लेकर आ रहे थे, वह संविधान की धारा 30 से जुड़ा है। इसमें उन्होंने केंद्र सरकार से गुजारिश की है कि अल्पसंख्यकों धार्मिक या भाषायी आधार पर शिक्षण संस्थान चलाने का अधिकार दिया गया है, उसे समाप्त किया जाए। उनके समर्थन में फिर भाजपा के कई नेता आते दिखे।
मदरसों से मानव तस्करी और बंधुआ मजदूरी की शिकायते समाने आ चुकीं
राज्य में पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री रहीं ऊषा ठाकुर ने खुलकर कहा कि मदरसों पर पाबंदी लगनी चाहिए। क्योंकि प्रदेश में ऐसे कई मदरसे हैं जो शिक्षा विभाग की बिना अनुमति के संचालित हो रहे हैं। इन मदरसें में पढ़ाई के नाम पर बच्चों के जीवन से खिलवाड़ किया जा रहा है । कई मदरसों से मानव तस्करी और बंधुआ मजदूरी की शिकायते समाने आ चुकी हैं। यहां तक कि मदरसों में देश विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा दिए जाने तक का आए दिन खुलासा होता है।
पूर्व मंत्री ठाकुर बोलीं ‘‘विद्यार्थी राष्ट्र की धरोहर हैं, भविष्य हैं, उन्हें सबके साथ राष्ट्रवादिता, सामाजिक सेवा के शिक्षा और संस्कार दिए जाने चाहिए। चूंकि, ये केंद्र सरकार का विषय है, इसलिए हम शासकीय संकल्प के जरिये मध्य प्रदेश में मदरसों पर प्रतिबंध लगाना चाहते हैं। पूरा देश और देशभक्त नागरिक भी यही चाहते हैं।’’ इस दौरान उन्होंने यह सवाल उठाया कि जम्मू-कश्मीर के मदरसे क्या कर रहे थे? फिर से कोई देश की एकता और अखंडता को चुनौती न दे सके, इसलिये मदरसों का बंद करना ही उचित होगा।
मध्य प्रदेश की सरकार बहुत सजग और जागरुक
उन्होंने कहा कि जिन्हें मप्र मदरसा बोर्ड ने अनुमति नहीं दी और जिन्हें शिक्षा विभाग की भी अनुमति नहीं है। फिर हमारे आयोग के सदस्यों ने मदरसों का दौरा करते हुए अनेक कमियां पाईं, वह मदरसे मध्य प्रदेश की धरती पर कैसे चल सकते हैं? मध्य प्रदेश की सरकार बहुत सजग और जागरुक है। इसलिये मध्य प्रदेश की विधानसभा में इस विषय पर अशासकीय संकल्प आना है जोकि पारित होकर केन्द्र सरकार के पास स्वीकृति के लिए भेजा जाएगा।
हर बच्चा देश का भविष्य, उसके जीवन से खिलवाड़ नहीं होने देंगे
जब इस बारे में मप्र राज्य बाल संरक्षण आयोग (एससीपीसीआर) से बात की गई तो आयोग की सदस्य डॉ. निवेदिता शर्मा ने बताया कि उन्होंने अपने पिछले देढ़ साल के अधिक समय तक के कार्यकाल में निरिक्षण के दौरान ऐसा कोई मदरसा नहीं देखा जो पूरी तरह से व्यवस्थित हो, जहां बच्चों को ठीक ढंग से पढ़ने की सुविधा मुहैया हो और उन्हें सही वातावरण में शिक्षा दी जा रही हो। मदरसो में ऐसे बच्चों की बड़ी संख्या में एंट्री है, जो कभी मदरसा पढ़ने तक नहीं आते । उन्होंने कहा कि बच्चा किसी भी मत, पंथ, समुदाय का क्यों न हो, वह राज्य की संपत्ति और उसका भविष्य है। बात किसी विशेष समुदाय के होने और नहीं होने से संबंधित नहीं, हर बच्चे को शिक्षा का सही वातावरण मिलना चाहिए, जोकि उसका अधिकार है और इसका रक्षण स्वयं भारतीय संविधान करता है ।
मप्र के 1,755 पंजीकृत मदरसों में 9,417 हिंदू बच्चे अध्ययन कर रहे
वे हिन्दू बच्चों के मदरसों में पढ़ने को लेकर भी खुलकर बोलीं, उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगोजी के नेतृत्व में अभी पिछले माह ही भोपाल में एक बैठक हुई थी, जिसमें कि स्कूली शिक्षा विभाग समेत कई विभाग, राज्य बाल संरक्षण आयोग(एससीपीआर) प्रमुखता से शामिल रहा। यहां जो आंकड़ा शिक्षा विभाग द्वारा बताया गया, उसके अनुसार मप्र के 1,755 पंजीकृत मदरसों में 9,417 हिंदू बच्चे अध्ययन कर रहे हैं और सभी बच्चों को दीनी तालीम की शिक्षा दी जा रही है। इसके अलावा गैर पंजीकृत मदरसों की संख्या भी हजारों में है। प्रश्न उठता है कि गैर मुस्लिम बच्चों को दीनी तालिम से क्या लेना-देना है? फिर इन संस्थानों में आरटीई अधिनियम के तहत अनिवार्य बुनियादी ढांचे का अभाव है। इसलिए मैं कहती हूं कि इन सभी बच्चों को सरकार द्वारा सामान्य विद्यालयों में भर्ती करा देना चाहिए । इनका कहना रहा, ‘‘आयोग यही चाहता है कि शिक्षा से जुड़ी कोई भी संस्था हो, वह बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ न करे, यदि कहीं भी बच्चों के साथ कुछ गलत होता पाया जाएगा, तो वहां राज्य बाल संरक्षण आयोग आपको बालकों के हित में खड़ा मिलेगा।’’
सरकारी नियमों को नहीं मानते मदरसे जबकि यू डायस की सभी सुविधाएं ले रहे
इसके साथ ही आयोग सदस्य ओंकार सिंह बोले, ‘‘सरकारी नियम के अनुसार रविवार को छुट्टी का सभी के लिए दिन तय है, लेकिन, मदरसे शुक्रवार को छुट्टी रखते हैं। क्या शासन के नियम सभी प्रकार की शिक्षण संस्थानों को नहीं मानने चाहिए? प्रदेश में कई मदरसों को यू डायस जिसे यूनीफाइड डिस्ट्रिक्ट इनफार्मेशन सिस्टम फार ऐजुकेशन भी कहा जाता है वह मिला हुआ है। जिसके अंतर्गत राज्य सरकार तय सुविधाएं भी अन्य शिक्षण संस्थानों की तरह इन मदरसों को मुहैया कराती है, फिर भी ये सरकारी नियमों को नहीं मानेंगे तो कैसे यहां पढ़ रहे बच्चों का हित होगा ? इन्हें भी राज्य की हर संस्था की तरह नियमों में बंधकर ही कार्य करना चाहिए’’
धारा 30 का दुरुपयोग हुआ, अब समय आ गया रिव्यू करने का
उच्च शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार का इस मामले में कहना है कि धारा 30 का दुरुपयोग हुआ है। अब समय आ गया है कि इनका रिव्यू किया जाए । निश्चित तौर पर सरकार शीघ्र इसका रिव्यू करेगी। उन्होंने कहा, जिस शैक्षणिक संस्था में 51 प्रतिशत से अधिक बच्चे अल्संख्यक पढ़ते हैं, उसे ही अल्पसंख्यक माना जाना चाहिए न कि उस संस्थान को जिसे संचालित करने वाला कोई अल्पसंख्यक है । भारत में अल्पसंख्यक का दर्जा लोगों के जीवन स्तर सुधारने के लिए दिया गया है न कि व्यवसाय में लाभ कमाने के लिए। ऐसे में जो मदरसे पोर्टल पर दर्ज हैं, वहीं चलेंगे, जो अवैध तौर पर संचालित हो रहे हैं, पोर्टल पर नहीं हैं उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
आवश्यकता है रोजगार मूलक शिक्षा की, सरकार करा ही पूरे मामले का परिक्षण
दूसरी तरफ स्कूल शिक्षा मंत्री उदय प्रताप सिंह का साफ कहना है, ‘सरकार इस बारे में अभी परीक्षण करा रही है। हम चाहते हैं कि बच्चों को जो शिक्षा दी जा रही है वह आज के युग में रोजगारमूलक हो। ऐसी शिक्षा जो बच्चों के भविष्य को बाधित करने वाली हो, नहीं दी जाए। एक बार परीक्षण हो जाए, फिर इस पर बात करेंगे।’ वहीं, भाजपा के कद्दावर नेता एवं भोपाल हजूर से भाजपा विधायक रामेश्वर शर्मा भी इस मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रिया देते हैं, वे कहते हैं, शिक्षा देने एवं लेने पर कोई रोक नहीं, लेकिन शिक्षा पद्धति में संविधान, भारत का सम्मान, सेना का सम्मान, भारत माता की जयकार और राष्ट्रगान होना चाहिए। अगर मदरसों में ऐसा नहीं हो रहा तो मदरसों को बंद कर देना चाहिए।
एनसीपीसीआर का दावा, सभी मदरसा शिक्षकों के पास नहीं है बीएड की डिग्री
जब इस मुद्दे पर एनसीपीसीआर अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो से बात की गई तो उनका कहना यही था कि मध्य प्रदेश के मदरसों में पढ़ने वाले हिंदू बच्चों को जोकि पंजीकृत और अपंजीकृत दोनों ही प्रकार के मदरसों में पढ़ रहे हैं, उन्हें सामान्य स्कूलों में भेजने का अनुरोध राज्य सरकार से किया है। उन्होंने बताया, एनसीपीसीआर के पास मौजूद जानकारी के अनुसार इन मदरसों के शिक्षकों के पास बी.एड. की डिग्री नहीं है और न ही उन्होंने शिक्षक पात्रता परीक्षा दी है। फिर ‘जिस अधिनियम के तहत मध्य प्रदेश मदरसा बोर्ड अस्तित्व में आया, उसमें मदरसों को परिभाषित किया गया है और स्पष्ट रूप से कहा गया है कि उनमें इस्लामी धार्मिक शिक्षा दी जाएगी। ऐसे में हिन्दू बच्चों की पढ़ाई का यहां कोई अर्थ नहीं बनता है। इसलिए सरकार को इस पूरी योजना पर विचार करना चाहिए और तत्काल हिंदू बच्चों को मदरसों से बाहर निकाल कर उनको सामान्य स्कूलों में भेजना चाहिए।
कांग्रेस विधायक कर रहे भाजपा के नेताओं का डॉक्टर से इलाज करवाने की बात
इस दौरान मदरसों पर हो रहे विवाद और चचाओं के बीच अशासकीय संकल्प यह सुनते ही कांग्रेस के विधायक आतिफ अकील भड़क जाते हैं। आतिफ का कहना है – मासूम बच्चे मदरसों में पढ़ते हैं। उनके खाने-पीने की ठीक से व्यवस्था नहीं हो पाती। उनके प्रिंसिपल चंदा करके मदारसे की व्यवस्था चलाते हैं और बच्चों को पढ़ाते हैं। शर्म आनी चाहिए भाजपा सरकार में ऐसे नेताओं और अन्य लोगों को जो मदरसों पर प्रश्न उठा रहे हैं। यह वायरस इन लोगों के दिमाग में घुसा है, उसको निकालना पड़ेगा। सही डॉक्टर से इलाज कराना होगा।
दरअसल, यहां कांग्रेस के विधायक आतिफ अकील की बातें सुनकर यही लगता है कि वह अपनी कौम को शिक्षा एवं आधुनिक दौर में आगे बढ़ते हुए नहीं देखना चाहते। दरअसल, यह इसलिए कहा जा रहा है, क्योंकि खुद आतिफ अकील खुद तो एक पड़े लिखे बीई सिविल इंजीनियरिंग कर चुके विधायक हैं। लेकिन वह दूसरी ओर मदरसा शिक्षा की वकालत कर आधुनिक एशुकेशन सिस्टम से बच्चों को दूर रखने की बात कह रहे हैं । वहीं, इस मामले में कांग्रेस के पूर्व मंत्री जयवर्धन सिंह ने भी भाजपा विधायकों पर आरोप लगाई हैं।
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