दुनियाभर में जूनोटिक बीमारियां सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता का प्रमुख कारण बनी हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार जूनोटिक बीमारियों में रेबीज, लाइम रोग, एवियन इन्फ्लूएंजा, इबोला, सार्स, वेस्ट नाइल, कोविड-19 इत्यादि शामिल हैं, जिनका सार्वजनिक स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था तथा आजीविका पर विनाशकारी प्रभाव हो सकता है। विश्वभर में मनुष्यों में होने वाली सभी संक्रामक बीमारियों का लगभग 60 प्रतिशत तथा उभरते संक्रामक रोगों का 75 प्रतिशत से भी ज्यादा हिस्सा जूनोटिक रोगों का ही है। आमतौर पर जानवरों से मनुष्यों में फैलने वाली बीमारियों को ही ‘जूनोटिक डिजीज’ कहा जाता है। आइसीएमआर के अनुसार जब कोई संक्रामक बीमारी जानवरों से मनुष्यों में पहुंचती है तो उसे ‘जूनोसिस’ कहते हैं और इसी प्रकार जब मनुष्यों से कोई संक्रामक बीमारी जानवरों में पहुंचती है तो उसे ‘रिवर्स जूनोसिस’ कहा जाता है। बैक्टीरिया, वायरस, परजीवी अथवा कवक जूनोसिस के रोगजनक हो सकते हैं, जो सीधे सम्पर्क, भोजन, पानी अथवा पर्यावरण के माध्यम से मनुष्यों में फैल सकते हैं। जूनोटिक बीमारियां संक्रामक होती हैं, जो संक्रमित जानवरों के सीधे सम्पर्क में आने से अथवा संक्रमित खाद्य पदार्थों और दूषित पानी के जरिये इंसानों में फैलती हैं। इस प्रकार की संक्रामक बीमारियों का फैलाव मच्छरों के जरिये भी होता है। जानवरों के काटने से फैलने वाला रेबीज और संक्रमित पशुओं के सम्पर्क से होने वाला क्यू बुखार भी जूनोसिस रोगों में आते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानना है कि वर्तमान में विश्वभर में 200 से भी ज्यादा जूनोसिस बीमारियां हैं। जूनोसिस बीमारियां फैलाने में सबसे ज्यादा भूमिका बैक्टीरिया की होती है। विशेषज्ञों के मुताबिक 538 तरह के बैक्टीरिया, 307 प्रकार के फफूंद, 287 कृमि, 217 वायरस तथा 66 प्रकार के प्रोटोजोआ से जानवरों से इंसानों में बीमारी फैलती हैं और हर साल दुनिया के निम्न-मध्यम आय वाले देशों में ही 10 लाख लोगों की मौत जूनोसिस रोगों के कारण हो जाती है। यही कारण है कि प्रतिवर्ष 6 जुलाई को जूनोटिक बीमारियों के प्रति जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से दुनियाभर में ‘विश्व जूनोसिस दिवस’ मनाया जाता है। 6 जुलाई को ही यह दिवस मनाने का कारण यही है कि फ्रांसीसी जीवविज्ञानी लुई पाश्चर ने इसी दिन 6 जुलाई 1985 को जूनोटिक रोग के खिलाफ पहले टीके का सफल प्रयोग किया था। उन्होंने उस दिन एक युवा लड़के को रेबीज का पहला टीका सफलतापूर्वक लगाया था, जिसे एक पागल कुत्ते ने काट लिया था। जूनोटिक बीमारियों को समझने और रोकथाम की दिशा में वह बेहद महत्वपूर्ण उपलब्धि थी। लुई पाश्चर की उस अभूतपूर्व उपलब्धि ने न केवल उस लड़के की जान बचाई थी बल्कि जानवरों से मनुष्यों में फैलने वाली जूनोटिक बीमारियों के खिलाफ लड़ाई की शुरुआत भी की थी। इसीलिए जूनोटिक बीमारी के खिलाफ पहले टीकाकरण के दिन 6 जुलाई को ही ‘विश्व जूनोसिस दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
‘जूनोस’ शब्द ग्रीक से उत्पन्न हुआ है, जहां ‘जून’ का अर्थ है जानवर और ‘नोसोस’ का अर्थ है बीमारी। जानवरों के साथ मनुष्यों का लंबा रिश्ता रहा है, फिर चाहे वह शिकार को लेकर रहा हो या उन्हें पालतू जानवरों के रूप में रखने को लेकर। हालांकि पहले के समय में महामारी और बीमारियों का प्रसार कम होता था लेकिन जनसंख्या विस्फोट और लोगों के बीच बढ़ती कनेक्टिविटी के साथ ही बीमारियों और महामारियों में फैलने की क्षमता तेजी से बढ़ी है। ‘इंटरनेशनल लाइव स्टॉक रिसर्च इंस्टीट्यूट’ की एक रिपोर्ट के अनुसार जूनोसिस यानी प्राणी जनित रोग 1415 प्रकार के होते हैं, जिनमें से 60 प्रतिशत रोग पशु, कीट, कीड़े से मनुष्यों को होते हैं, जिनके संक्रमण से पहले यदि बचाव के लिए वैक्सीन नहीं लगी हो तो मनुष्य की मौत होने की भी आशंका रहती है। जानवरों से मनुष्यों को 868 तरह के गंभीर रोग होते हैं, जिनमें से कई जानलेवा हो सकते हैं। इसीलिए विशेषज्ञों का कहना है कि पशु चाहे पालतू हो अथवा घुमंतु, उसके काटने, पंजे की खरोंच लगने पर भी तुरंत अपना इलाज कराना चाहिए क्योंकि पशुओं से लगाव में हुई जरा सी भी अनदेखी न केवल सेहत पर बल्कि जिंदगी पर भी भारी पड़ सकती है।
खसरा, चेचक और इन्फ्लूएंजा इत्यादि कई बीमारियां शुरूआत में जूनोटिक बीमारियों के रूप में शुरू हुई थी। विशेषज्ञों के मुताबिक एंथ्रेक्स, ब्रूसेलोसिस इत्यादि बैक्टीरियल जूनोज जीवाणु संक्रमण के कारण होते हैं, जो पशुओं से मनुष्यों में फैल सकते हैं जबकि रेबीज, इबोला, कोविड-19 इत्यादि वायरल जूनोज हैं। टोक्सोप्लासमोसिस, लीशमैनियासिस जैसे रोग परजीवी जूनोज की श्रेणी में आते हैं। दाद जैसे जूनोटिक फंगल संक्रमण कवक के कारण होते हैं, जो जानवरों से मनुष्यों में फैल सकते हैं और इन्हें फंगल जूनोज कहा जाता है। स्क्रब टाइफस जानलेवा रोग भी कीटों के जरिये होने वाला जूनोसिस रोग है। कृन्तकों द्वारा प्रसारित हंता वायरस संक्रमण अथवा जंगली पक्षियों द्वारा फैलने वाली एवियन इन्फ्लूएंजा जैसी बीमारियां वन्यजीव जूनोज होती हैं, जिनमें मुख्य रूप से मनुष्यों तथा वन्यजीवों के बीच परस्पर क्रिया शामिल होती है। मवेशियों से ब्रूसेलोसिस तथा बिल्लियों से होने वाला टोक्सोप्लासमोसिस इत्यादि रोग घरेलू पशु जूनोज की श्रेणी में आते हैं। दूषित जल स्रोतों से होने वाला ‘लेप्टोस्पायरोसिस’ जलजनित प्रमुख जूनोटिक रोग है। मच्छरों से फैलने वाला डेंगू, मलेरिया, जेई, फाइलेरिया और किलनी से फैलने वाला लाइम रोग सदिश-जनित जूनोज हैं। संक्रमित जानवरों, उनके शरीर के तरल पदार्थ अथवा दूषित सतहों के सीधे सम्पर्क से होने वाले संक्रमण को प्रत्यक्ष सम्पर्क जूनोज कहा जाता है।
वर्तमान में बर्ड फ्लू, स्वाइन फ्लू, इबोला, रेबीज, निपाह, लेप्टोस्पाइरोसिस, हुकवॉर्म, साल्मोनेलोसिस, ग्लैंडर्स, एवियन इन्फ्लूएंजा, वेस्ट नाइल वायरस जैसी बीमारियां जूनोसिस डिजीज हैं। वायरस, पैरासाइट्स, फंगस इत्यादि के कारण जानवरों से इंसानों में फैलने वाली जूनोसिस बीमारियों से मनुष्यों में हल्के से लेकर गंभीर बीमारी तक हो सकती है और कई मामलों में यह मौत का कारण भी बन सकती हैं। कुत्ते, बंदर, बिल्ली तथा अन्य पशुओं के काटने पर होने वाले रैबीज का अब तक इलाज नहीं मिल सका है। इसके लिए काटने के तुरंत बाद एहतियातन एंटी रैबीज वैक्सीन की सभी डोज लगवाना ही बचाव का उपाय है। जूनोसिस रोगों से बचाव के उपायों को लेकर पशु विशेषज्ञों का कहना है कि पशुओं का नियमित टीकाकरण कराएं और पशुओं को छूने के बाद हाथ अवश्य धोएं। पालतू जानवरों के साथ भी न सोएं बल्कि उनके सोने, रहने और खाने की अलग व्यवस्था करें। पशु में कोई भी असामान्य व्यवहार दिखाई देने पर उसकी तत्काल पशु चिकित्सालय में जांच कराएं। पशुओं के दड़बे, खाल, शौच इत्यादि की जगह की नियमित सफाई करें। चूंकि जूनोटिक रोगों में तेजी से फैलने की प्रवृत्ति होती है और अक्सर लोग जानवरों से फैलने वाले जूनोटिक रोगों को लेकर अनजान होते हैं, इसलिए इन बीमारियों को लेकर लोगों को जागरूक किया जाना बेहद जरूरी है ताकि वे जूनोसिस रोगों के संभावित खतरों से बच सकें।
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