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‘मार्गदर्शन’ से निखर रहा जीवन

सरिता उपाध्याय ने गरीबी को नकार हिम्मत को स्वीकारा। ‘मार्गदर्शिका’ का साथ मिला और आज सरिता हर महीने कमा रही हैं 40,000 रुपए

by अरुण कुमार सिंह
Jul 4, 2024, 12:17 pm IST
in उत्तर प्रदेश
टिफिन तैयार कंसरिता उपाध्याय

टिफिन तैयार कंसरिता उपाध्याय

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सहकारिता की शक्ति क्या होती है, इसे देखना हो तो गोरखपुर चलिए। यहां किराए के मकान में रहने वाली सरिता उपाध्याय ने वह कर दिखाया है, जिसकी इच्छा हर किसी को रहती है। पहले पाई-पाई के लिए भटकने वाली सरिता आज प्रतिमाह 40,000 रुपए से अधिक कमा लेती हैं। उनकी यह यात्रा केवल चार वर्ष की है। कोरोना काल यानी 2020 में वह एक निजी फैक्ट्री में काम करती थीं। बाद में पति भी छोड़कर चले गए। ऐसे में उनके लिए तीन बच्चों की परवरिश करना आसान नहीं था। उनके दिन तब बदलने शुरू हुए, जब वह ‘मार्गदर्शिका स्वयं सहायता समूह’ से जुड़ीं। इस समूह ने उन्हें 10,000 रु. की मदद दी। इसके बाद उन्होंने अपने घर पर ही ‘मां की रसोई’ नाम से भोजन के पैकेट बनाने का कार्य शुरू किया।

दुकानदारों, छात्रों और अस्पताल आने वाले लोगों तक भोजन पहुंचाने में उनके बच्चों ने साथ दिया। शुरू में थोड़ी कठिनाई अवश्य हुई, लेकिन अच्छा भोजन मिलने के कारण उनके नियमित ग्राहक बनते गए। सरिता कहती हैं, ‘‘समूह से जुड़ने के बाद गरीबी दूर हो गई है। जितनी मेहनत करती हूं, उतना कमा लेती हूं। खाना पहुंचाने के लिए स्वीगी और जोमेटो की भी मदद ली जाती है।’’ आज स्थिति यह है कि सरिता के बड़े बेटे ने 10 जून को लखनऊ में भी एक छोटा रेस्टोरेंट खोल लिया है।

अब बात ‘मार्गदर्शिका स्वयं सहायता समूह’ की। इस समूह का श्रीगणेश 2020 में कोरोना काल के दौरान हुआ। इसकी अध्यक्ष हैं मीनाक्षी राय। उन्होंने समूह की शुरुआत के संबंध में जो बताया, वह काफी दिलचस्प और प्रेरणा देने वाला है। उन्होंने बताया, ‘‘कोरोना काल में लोगों के सामने बड़ी समस्या आई। बाहर काम करने गए श्रमिक अपने-अपने घर लौटने लगे। ऐसे में उनकी आमदनी बंद हो गई। अनाज के अभाव में कई घरों में तो चूल्हे तक बंद हो गए। इन लोगों की मदद के लिए गोरखपुर के कुछ सामाजिक कार्यकर्ता सामने आए। कुछ युवाओं के माध्यम से उन घरों तक अनाज पहुंचाया गया। फिर यह तय किया गया कि ऐसे परिवारों को रोजगार से भी जोड़ा जाए।

उन दिनों मास्क की बड़ी मांग थी। इसलिए हम लोगों ने मास्क के लिए कपड़े काट कर घरों तक पहुंचाया। लोगों से कहा गया कि आप मास्क तैयार करें, बाकी चिंता छोड़ दें। कुछ कार्यकर्ता सुबह कटे कपड़े घरों तक पहुंचा देते थे और शाम तक तैयार मास्क ले आते थे। उन दिनों महिलाओं ने 80,000 मास्क तैयार किए। वे मास्क बाजार के साथ ही विभिन्न अस्पतालों में भेजे गए। इससे अच्छी आय हुई। उस आय को सबमें बांटा गया। कोरोना के बाद कुछ महिलाओं को लगा कि भारी बंदिशों के बाद भी सबने मिलकर काम किया और अच्छी आमदनी भी हुई, तो क्यों नहीं स्वयं सहायता समूह बनाकर सब काम करें। इसी सोच की देन है-मार्गदर्शिका स्वयं सहायता समूह।’’

आज इस समूह के साथ 400 से अधिक महिलाएं जुड़ी हैं। ये महिलाएं गोरखपुर और उसके आसपास की हैं। ये सभी कई तरह के उत्पाद तैयार करती हैं। जैसे- भरवां मिर्च अचार का मसाला, टेराकोटा के आभूषण, बैग, थैले आदि। कुछ महिलाएं समूह की सहायता से दुकान चलाती हैं। कोई शृंगार का सामान बेचती है, कोई पार्लर चलाती है।

कार्य को प्रभावी बनाने के लिए ‘मार्गदर्शिका स्वयं सहायता समूह’ के भी अलग-अलग उपसमूह हैं। हर उपसमूह में 10 महिलाएं हैं। हर सदस्य महीने में 200 रु. जमा करती है। यानी हर उपसमूह के पास महीने में 2,000 रु. जमा होते हैं। यह राशि ऐसी महिला सदस्यों को दी जाती है, जो कुछ कार्य करना चाहती हैं। समूह की सदस्यों को जो राशि दी जाती है, उसके लिए ब्याज नहीं लिया जाता है। हां, 100-500 रु. तक की किस्त बांध दी जाती है। महिलाएं किस्तों में पैसे वापस करती हैं और वह पैसा अन्य जरूरतमंदों के काम आ जाता है। ल्ल

Topics: पाञ्चजन्य विशेषमार्गदर्शिका स्वयं सहायता समूहसहकारिता की शक्तिमास्क बाजारGuide Self Help GroupPower of CooperationMask Market
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