ये बुजुर्ग, महिलाएं और बच्चे उन लोगों के परिजन हैं जिन्हें पिछले कुछ साल के दौरान पाकिस्तानी सुरक्षा बलों ने झूठे आरोप लगाकर ‘अगवा’ किया हुआ है। धरने पर बैठे उनके परिजन यह तक नहीं जानते कि उनकी आंख के वे तारे आज जिंदा भी हैं कि नहीं!
पाकिस्तान के क्वेटा शहर में लोग क्वेटा प्रेस क्लब की इमारत के सामने धरने पर बैठे बुजुर्गों, महिलाओं, बच्चों आदि को देखकर अंदर तक हिल जाते हैं, लेकिन बहुत असहाय महसूस करके कुछ पल वहां ठहरने के बाद चले जाते हैं। ये बुजुर्ग, महिलाएं और बच्चे उन लोगों के परिजन हैं जिन्हें पिछले कुछ साल के दौरान पाकिस्तानी सुरक्षा बलों ने झूठे आरोप लगाकर ‘अगवा’ किया हुआ है। धरने पर बैठे उनके परिजन यह तक नहीं जानते कि उनकी आंख के वे तारे आज जिंदा भी हैं कि नहीं!
उनके इस धरने को और दो दिन बाद पूरे 5,500 दिन हो जाएंगे, लेकिन इस्लामाबाद में अपनी ही सियासत में उलझे नेताओं में से कोई वहां नहीं फटका है। किसी ने आहत बलूचों की खैर—खबर नहीं ली है। किसी ने बलूच दमन के विरुद्ध आवाज नहीं उठाई है। सालों से बलूचों को कुचला—रौंदा जाता रहा है, लेकिन उनकी सुनने वाला कोई नहीं है। इस्लामबाद के क्वेटा प्रेस क्लब के सामने बैठे परिवारों से जैसे कोई सरोकार नहीं है।
क्या मांग है इन परिजनों की? यही कि उनके अपने जो ‘लापता’ हैं, उनकी कोई तो खोज—खबर मिले। सरकार बताए तो कि उनका अपराध क्या था, वे कहां हैं, उन्हें यातनाएं जो नहीं दी जा रही हैं, झूठे बयान तो नहीं उगलवाए जा रहे हैं?
इन्हीं ‘लापता’ अपनों की सुरक्षित वापसी की मांग कर रहे हैं उनके परिजन। ‘वॉयस फॉर बलूच मिसिंग पर्सन्स’ नाम का संगठन बनाकर सब एकजुट होकर बहरी सत्ता को अपना दर्द सुनाना चाहते हैं। इस संगठन की अगुआई में यह धरना प्रदर्शन निर्बाध जारी है। ‘बलूचिस्तान पोस्ट’ लिखता है कि बलूच यकजेहती कमेटी मकरान के नेता सिबगतुल्लाह उन परिजनों से हमदर्दी जताने गए थे, उनकी मांगों को समर्थन दे आए थे।
वॉयस फॉर बलूच मिसिंग पर्सन्स (वीबीएमपी) एक संगठन है जो बलूचिस्तान में लापता हुए व्यक्तियों की सुरक्षित बरामदगी के लिए वकालत करने के लिए समर्पित है, जो कथित तौर पर पाकिस्तानी सुरक्षा बलों की कार्रवाई के कारण लापता हुए हैं।
बलूचों के साथ इस धरने में खड़े हैं एक और नेता, मामा कदीर बलूच। वे बलूच इलाकों से जबरन अगवा किए गए युवकों की तरफ ध्यान आकर्षित करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। उनकी अगुआई में क्वेटा प्रेस क्लब के बाहर पिछले पांच हजार से ज्यादा दिन से चल रहा यह धरना अब एक विरोध शिविर का रूप ले चुका है। मकसद एक ही है कि ‘लापता’ बलूचों और उनके दुखी परिवारों का दर्द सरकार के साथ ही अंतरराष्ट्रीय संगठनों के सामने पहुंचे। कोई तो कोशिश की जाए कि आहत परिजनों को सांत्वना मिले।
सोचिए, उन परिवारों के बारे में जिनके यहां का इकलौता कमाने वाला सालों, महीनों से ‘लापता’ है और वे यह तक नहीं जानते कि वह जिंदा भी है कि नहीं। मासूम बच्चों को गोद में लिए कितनी ही माएं या अपने बेटे, भाई की राह तकते वृद्धों की सूनी आंखों को देख किसी राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टी के नेता का दिल न पसीजना यह दिखाता है कि जिन्ना के बनाए कंगाल पड़ोसी देश में भावनाओं की भी कंगाली है!
कदीर बलूच कोशिश कर रहे हैं, आह्वान कर रहे हैं कि बलूचों के साथ अन्याय की हद पार हो चुकी है। 70 साल से पाकिस्तान के हाथों कुचले—मसले जा रहे बलूच आजादी की राह तक रहे हैं। कदीर मीडिया, राजनीतिक नेताओं और मानवाधिकारी संगठनों की इस ओर अनदेखी से हैरान हैं।
यह बात भी है कि पहले बलूच मुखर नहीं थे, चुप रहकर अपने पर किए जा रहे जुल्म को सहने को मजबूर थे। लेकिन साल 2000 के बाद से उनमें अपनी राजनीतिक हैसियत को लेकर चेतना जागी है, उन्हें समझ आया है कि उन्हें हक की लड़ाई खुद लड़नी होगी। उसके बाद से उनके बीच से राजनीतिक नेतृत्व खड़ा हुआ, उसके बाद से इस्लामाबाद को रह—रहकर उस नेतृत्व के नारे सुनाई दिए हैं। और संभवत: उनका मुंह बंद कराने के लिए ही इस्लामाबाद ने उनके विरुद्ध अपने सुरक्षाबलों को अत्याचार करने की खुली छूट दी।
कदीर धरने में अपने भाषणों में अगवा हुए बलूचों की पीड़ा का जिक्र करते हैं, वे बर्बर पाकिस्तानी सेना की अमानवीयता का जिक्र करते हैं और वे अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों की दुहाई देते हैं। उनके अनुसार, अगवा युवकों में से किसी के मर जाने पर उसे आनन—फानन में दफन कर दिया जाता है, परिवारों को खबर तक नहीं दी जाती। वे कहते हैं कि बलूच समुदाय शांति का समर्थक है, लेकिन उस पर अत्याचार करना पाकिस्तान की हुकूमत का बर्बर चेहरा सामने रखता है।
बलूचों की एक मांग यह भी है कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन उनके दर्द को दुनिया के सामने पहुंचाएं। कदीर के अनुसार बलूच संगठन मानवाधिकारी कार्यकर्ताओं के साथ सतत संपर्क बनाए हुए है।
पाकिस्तान के ‘कब्जे’ वाले बलूचिस्तान प्रांत से पुलिस और फौज ने मिलकर बलूच संगठनों के नेताओं, कार्यकर्ताओं, पत्रकारों तथा आम लोगों को जबरन अगवा किया है। वजह नहीं बताई जाती, अपराध नहीं बताया जाता, बस कोई भी फर्जी आरोप लगाकर शाम ढले सादी वर्दी में आकर पुलिस वाले किसी न किसी को घर से उठा ले जाते रहे हैं।
सोचिए, उन परिवारों के बारे में जिनके यहां का इकलौता कमाने वाला सालों, महीनों से ‘लापता’ है और वे यह तक नहीं जानते कि वह जिंदा भी है कि नहीं। मासूम बच्चों को गोद में लिए कितनी ही माएं या अपने बेटे, भाई की राह तकते वृद्धों की सूनी आंखों को देख किसी राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टी के नेता का दिल न पसीजना यह दिखाता है कि जिन्ना के बनाए कंगाल पड़ोसी देश में भावनाओं की भी कंगाली है! तो भी ये परिवार डटे हैं कि आज नहीं तो कल उनकी सुनवाई होगी और उन्हें न्याय मिलेगा।
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