सहकारिता के साथ सहअस्तित्व हमारी परंपरा रही है। देश में सहकारी संस्थाएं स्वतंत्रता से पहले से काम कर रही हैं, लेकिन वर्तमान में ये देश की अर्थव्यवस्था का आधार स्तंभ हैं। विशेषकर ग्रामीण क्षेत्र के विकास में सहकारी संस्थाओं का बहुमूल्य योगदान है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में कृषि, बागवानी, पशुधन, डेयरी, मत्स्य, चीनी, उर्वरक, खाद्य प्रसंस्करण, वस्त्र उत्पादन सहित सभी गतिविधियां शामिल हैं। देशभर के गांवों और किसानों की उन्नति को ध्यान में रखते हुए सरकार ने 6 जुलाई, 2021 कोे एक अलग सहकारिता मंत्रालय बनाया ताकि योजनाओं को तेजी से लागू किया जा सके।
सहकारी समितियां लैंगिक समानता को मजबूती प्रदान करने के साथ महिलाओं को बढ़ावा दे रही हैं और समाज में पिछड़े व उपेक्षित लोगों को सशक्त बनाकर समाज को भी एकजुट कर रही हैं। अमूल, लिज्जत पापड़ जैसे उत्पादों को वैश्विक पहचान दिलाने में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका है। दुग्ध और कृषि सहकार से करोड़ों महिलाएं जुड़ी हुई हैं। महिला सशक्तिकरण के प्रति सरकार कितनी गंभीर है, इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि बहु-राज्यसहकारी सोसाइटी अधिनियम (मल्टीस्टेट कोआपरेटिव सोसाइटी एक्ट) में संशोधन कर इसके बोर्ड में महिला निदेशकों की नियुक्ति को अनिवार्य बनाया गया है।
केंद्रीय सहकारिता मंत्री अमित शाह कहते हैं, ‘‘सहकारी समितियां ग्रामीण अर्थव्यवस्था की लगभग सभी गतिविधियों को शामिल करती हैं। ये ग्रामीण समुदाय के कमजोर वर्गों को साहूकारों और कंपनियों के शोषण से बचाती हैं।’’ सहकारी समितियों में अपार क्षमता है। इसलिए ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने के लिए सरकार से बड़े प्रोत्साहन की आवश्यकता है। सहकारी क्षेत्र अर्थव्यवस्था व विकास को गति तथा बड़े पैमाने पर लोगों को रोजगार दे सकता है। अमूल के मॉडल से प्रेरित होकर देशभर में 36 लाख से अधिक महिलाएं 60,000 करोड़ रुपये का दूध कारोबार कर रही हैं। वह भी मात्र लगभग 100 रुपये (प्रत्येक) का निवेश करके।’’
उन्होंने बताया कि अभी देश में 93,000 पीएसी के साथ 20 प्रमुख राज्यों के 739 जिलों में 8.54 लाख से अधिक सहकारी समितियां हैं, जिनसे 30 करोड़ लोग जुड़े हुए हैं। 2 लाख दुग्ध समितियां हैं। इनमें से इफको, अमूल, कृभको जैसी समितियां हैं, जो विश्व प्रसिद्ध हैं। वहीं, 12 सहकारी बैंक भी विश्व की शीर्ष 300 सहकारी समितियों में शामिल हैं। देशभर में 1502 सहकारी बैंक हैं, जिनकी 11,000 शाखाएं हैं।
सहकारिता मंत्रालय ने सहकारी समितियों को सशक्त बनाने के लिए 60 से अधिक कदम उठाए हैं। ये पहल पैक्स(प्राथमिक कृषि ऋण समितियां) से एपेक्स को मजबूती प्रदान करने, सहकारी समितियों में सहकारिता के लिए, सहकारी समितियों के लिए आयकर कानून में बदलाव, सहकारी बैंकों के व्यवसाय में आ रही कठिनाइयों को दूर करने तथा सहकारी चीनी मिलों के सशक्तिकरण के लिए की गई हैं।
इसके अलावा केंद्रीय पंजीयक व राज्य सहकारी समितियों के पंजीयक कार्यालयों के सुदृढ़ीकरण के लिए भी कुछ कदम उठाए गए हैं। सरकार के इन प्रयासों से ग्रामीण अर्थव्यस्था में तेजी आएगी और रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे। सहकारिता मंत्रालय के साथ भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ (एनसीयूआई) भी कदमताल कर रहा है। यह सहकारी भागीदारी, सहकारी शिक्षा और प्रशिक्षण कार्यक्रमों के जरिए उभरते क्षेत्रों को सहकारिता से जोड़ रहा है ताकि सहकारी समितियों को नए-नए व्यवसाय करने में आसानी हो।
अर्थव्यवस्था में सहकारिता क्षेत्र की सशक्त भागीदारी हो, इसके लिए सरकार ने तीन नई बहु-राज्य सहकारी समितियों- भारतीय बीज सहकारी समिति लिमिटेड (बीबीएसएसएल), राष्ट्रीय सहकारी आर्गेनिक्स लिमिटेड (एनसीओएल) तथा राष्ट्रीय सहकारी निर्यात लिमिटेड (एनसीईएल) की स्थापना की है। इन तीनों को प्रत्येक जिले से 5-5 तथा देशभर में 3,750 (प्रत्येक) सहकारी समितियों को सदस्य बनाने का लक्ष्य दिया गया है। बीबीएसएसएल का काम गुणवत्तापूर्ण व प्रामाणिक बीजों का उत्पादन, वितरण व विपणन, एनसीओएल का काम जैविक उत्पादों को बढ़ावा देना तथा एनसीईएल को सहकारी समितियों के उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने की जिम्मेदारी सौंपी गई है।
एनसीओएल तो ‘भारत आर्गेनिक्स’ ब्रांड के तहत दर्जनभर जैविक उत्पाद भी उतार चुका है। वहीं, एनसीईएल को अभी तक 10,000 करोड़ रुपये से अधिक के निर्यात की अनुमति मिली है। इसमें 20 देशों में चावल, चीनी, गेहूं, आटा, मैदा आदि के निर्यात के अलावा यूएई को 10,000 टन अतिरिक्त प्याज का निर्यात भी शामिल है। वैसे तो राष्ट्रीय स्तर पर 19 बहु-राज्य सहकारी समितियां हैं, लेकिन इनमें से केवल इफको का आकार व पैमाना ही अमूल कंपनी के बराबर है। 2022-23 में इफको का टर्नओवर 60,324 करोड़ रुपये रहा। अमित शाह के अनुसार, बीते दो वर्ष में सहकारिता क्षेत्र में कई अभूतपूर्व काम हुए हैं। 2020 में 10 बहु-राज्य सहकारी संस्थाएं पंजीकृत हुईं, जबकि 2023 में यह आंकड़ा बढ़कर 102 हो गया। यानी मल्टी कोआॅपरेटिव सोसायटी के पंजीकरण में 10 गुना वृद्धि हुई है।
देश में सहकारी संस्थाओं के आंकड़ों में असंतुलन स्पष्ट दिखता है। अगर इनके जिलावार विस्तार को देखें तो इनका राष्ट्रीय औसत 1156 है। लेकिन भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ के आंकड़ों के अनुसार, सहकारिता के क्षेत्र में महाराष्ट्र, गुजरात, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल और केरल सहित सात राज्यों का प्रदर्शन ही राष्ट्रीय औसत से अधिक है। बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और असम में इनकी स्थिति संतोषजनक नहीं है। इन राज्यों में सहकारिता को मजबूत किए बिना बड़े लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता है।
सहकारिता क्षेत्र में अन्न भंडारण को विशेष प्राथमिकता दी गई है। इसके लिए देश के कोने-कोने में हजारों गोदाम बनाए जा रहे हैं। खाद्यान्न मामले में देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकार ने सहकारिता क्षेत्र की विश्व की सबसे बड़ी भंडारण योजना शुरू की है। इससे न केवल अनाज की बर्बादी रुकेगी, बल्कि भंडारण की समस्या से जूझ रहे किसानों को नुकसान भी नहीं झेलना पड़ेगा और उन्हें उपज की उचित कीमत भी मिलेगी। भंडारण योजना के तहत अगले पांच वर्ष में सवा लाख करोड़ रुपये की लागत से देशभर में 700 लाख मीट्रिक टन भंडारण की क्षमता विकसित हो जाएगी। इन गोदामों में किसान जरूरत के अनुसार अपने उत्पांदों का भंडारण कर सकेंगे और इच्छानुसार बाजार भाव पर बेच सकेंगे।
इस वर्ष फरवरी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 11 राज्यों में फैले पैक्स के 11 गोदामों का उद्घाटन किया और अन्य कृषि बुनियादी ढांचा विकसित करने के लिए अतिरिक्त 500 गोदामों की आधारशिला भी रखी। साथ ही, देशभर में 18,000 पैक्स की कम्प्यूटरीकरण परियोजना का भी उद्घाटन किया था। परियोजना के तहत पैक्स स्तर पर बन रहे सभी गोदामों को आपस में जोड़ा जा रहा है। देश में एक लाख से अधिक पैक्स हैं, जिनसे 13 करोड़ से अधिक किसान जुड़े हुए हैं।
इन गोदामों को किराए पर देने के लिए सहकारिता मंत्रालय ने खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग, फूड कॉरपोरेशन आफ इंडिया और राष्ट्रीय सहकारिता विकास निगम (एनसीडीसी) के साथ करार किया है। इसके अलावा, भारतीय राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता (एनसीसीएफ) द्वारा गोदामों के निर्माण व किराए पर लेने के लिए वाणिज्य मंत्रालय, उपभोक्ता मामले विभाग, एनसीसीएफ, एनसीडीसी और नाबार्ड के बीच भी अनुबंध हुआ है। इन पहलों का उद्देश्य नाबार्ड के सहयोग और एनसीडीसी के नेतृत्व में पैक्स गोदामों को खाद्यान्न आपूर्ति शृंखला के साथ निर्बाध रूप से एकीकृत करना है।
देश को विकसित बनाने के लिए कृषि क्षेत्र का तेजी से आधुनिकीकरण किया जा रहा है। पैक्स जैसी सहकारी समितियों की नई भूमिका भी तय हो रही है। पैक्स का कम्प्यूटरीकरण किया जा रहा है ताकि उसे आधुनिक बनाने के साथ रोजमर्रा के कार्यों में तेजी लाई जा सके। इसके लिए नाबार्ड ‘राष्ट्रीय एकल सॉफ्टवेयर’ बना चुका है, जिसे सामान्य सेवा केंद्र, जन औषधि केंद्र, राष्ट्रीय सरकारी डेटाबेस आदि के साथ जोड़ा जा रहा है। खास बात यह है कि सरकार ने पैक्स के जरिए 300 सरकारी सेवाओं को आम लोगों तक पहुंचाने की मंजूरी दी है। यही नहीं, पैक्स को प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र खोलने की भी मंजूरी दी गई है।
देशभर में 2,000 पैक्स को इन केंद्रों के संचालन का लक्ष्य दिया गया है। इसके अलावा, पैक्स को प्रधानमंत्री किसान समृद्धि केंद्र की जिम्मेदारी सौंपने के साथ पेट्रोल-डीजल की खुदरा बिक्री और एलपीजी सिलेंडर बेचने की भी अनुमति दी गई है। ग्रामीण क्षेत्रों में पैक्स की पानी समिति घर-घर पानी पहुंचा रही है और साझा सेवा केंद्र के तौर पर सरकारी सुविधाएं भी दे रही है। पैक्स का कारोबारी दायरा बढ़ने से ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर सृजित हुए हैं।
उन्होंने बताया कि जुलाई 2021 में अलग सहकारिता मंत्रालय बनने के बाद ये बदलाव आए हैं। सहकारिता मंत्री का प्रभार मिलने के बाद अमित शाह ने सहकारिता का एक मॉडल बनाकर प्रत्येक राज्य को भेजा। राज्य सरकारों की सहमति के बाद इसे पूरे देश में लागू किया गया है। इस मॉडल में इस बात पर जोर दिया गया है कि पूरे देश में पैक्स एक सामान रूप से चले। पहले पैक्स किसी एक क्षेत्र में अच्छा काम करती थी, तो अब वह 25 से अधिक क्षेत्रों में काम कर सकेगी। इससे गांवों में आर्थिक समृद्धि आएगी और रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे। सरकार ने सहकारिता क्षेत्र के लिए कई योजनाएं बनाई हैं और सहकारी संस्थाओं को पैक्स का उपयोग करने की जिम्मेदारी भी दी है।
एक समान कानून से ये संस्थाएं न सिर्फ मजबूत होंगी, बल्कि इन्हें अधिक काम भी कर सकेंगी। सहकारी संस्थाएं एक शृंखला की तरह काम करती हैं। पहले सहकारिता बैंकों को रिजर्व बैंक के कड़े दिशानिर्देशों के कारण काफी मुश्किलें आती थीं। लिहाजा, वित्त मंत्रालय के साथ मिलकर नीति बनाई गई और सहकारी बैंकों की समस्याओं का समाधान करते हुए उन्हें सुविधाएं दी गईं। चीजें आसान हुईं तो लघु उद्योगों और ग्रामीण क्षेत्रों की समितियों को आसानी से ऋण मिलने लगा। इससे सहकारी संस्थाएं और उनसे जुड़े लोग आर्थिक रूप से समृद्ध हो रहे हैं।
इफको के प्रबंध निदेशक डॉ. उदय शंकर अवस्थी बताते हैं कि केंद्रीय सहकारिता मंत्री अमित शाह की पहल से सहकारिता क्षेत्र के लिए वित्तीय मानकों पर अहम फैसले लिए गए। एक करोड़ से दस करोड़ रुपये तक आय वाली सहकारी समितियों का अधिभार 12 प्रतिशत से घटाकर 7 प्रतिशत कर दिया गया है। सहकारी समितियों के लिए न्यूनतम वैकल्पिक कर 18.5 प्रतिशत से घटाकर 15 प्रतिशत कर दिया गया है, जिससे सहकारी समितियों पर कर अधिभार कम होगा।
सहकारी चीनी मिलों को आयकर में राहत देने से उनके दिन बहुर गए। उनके आयकर से जुड़े दशकों पुराने लंबित मुद्दों का समाधान किया गया। साथ ही चीनी मिलों के सुदृढ़ीकरण के लिए 10,000 हजार करोड़ रुपये की ऋण योजना शुरू की गई। पैक्स द्वारा नकद जमा राशियों और नकद ऋण सीमा प्रति सदस्य 20,000 रुपये से बढ़ाकर 2 लाख रुपये की गई। सहकारी समितियों की स्रोत पर नकद निकासी सीमा की एक करोड़ रुपये से बढ़ाकर 3 करोड़ रुपये किया गया। इसमें कोई टैक्स कटौती नहीं होगी।
सरकार की योजना देश की सभी पंचायतों को सहकारी समितियों से जोड़ने की है। इस योजना में उन पंचायतों को शामिल किया जाएगा, जो अभी तक किसी सहकारी समिति से नहीं जुड़ी हैं। ऐसी 30,000 पंचायतों में नई बहुद्देशीय पैक्स या डेयरी या मत्स्य सहकारी समितियां गठित की जाएंगी। इसके अलावा, सभी निष्क्रिय समितियों को भी योजनाओं का लाभ देकर पुनर्जीवित करने का प्रयास किया जा रहा है।
जैसे-जैसे देश में सहकारी समितियों का विकास हो रहा है, किसान भी आत्मनिर्भर हो रहे हैं। खासतौर से इसमें एफपीओ यानी किसान उत्पादक संगठनों की बड़ी भूमिका है। सरकार ने देशभर में 10,000 एफपीओ बनाने का लक्ष्य रखा था, जिसमें 8,000 से अधिक बन चुके हैं और सक्रिय भागीदारी कर रहे हैं। एफपीओ से जुड़कर छोटे किसान भी उद्यमी बन रहे हैं और अपने उत्पाद को निर्यात कर लाभान्वित हो रहे हैं। यही नहीं, पशुपालकों और मछली उत्पादकों को भी सहकारिता का लाभ मिल रहा है। मत्स्य पालन क्षेत्र में 25,000 से अधिक सहकारी समितियां सक्रिय हैं। सरकार ने अगले 5 वर्ष में दो लाख नई सहकारी समितियां बनाने का लक्ष्य रखा है। इनमें मत्स्य पालन और दुग्ध क्षेत्र की सहकारी समितियों की संख्या सबसे अधिक है। ये बड़े स्तर पर प्रौद्योगिकी और डिजिटल इंडिया कार्यक्रम को किसानों तक पहुंचाएंगी। कुल मिलाकर कृषि क्षेत्र में बुनियादी ढांचे के विस्तार का लाभ किसानों को मिल रहा है और वे आधुनिक प्रौद्योगिकी से भी जुड़ रहे हैं।
सहकारिता के क्षेत्र में भारत के प्रयासों को दुनियाभर में सराहा जा रहा है। नैनो उर्वरक के क्षेत्र में ड्रोन की प्रसिद्धि दिनोंदिन बढ़ रही है। इसमें इफको अगुआ बनकर उभरा है। साथ ही, जल संरक्षण के विभिन्न नवाचारों में भी इफको की भूमिका सराहनीय है। इफको, अमूल, नैफेड, कृभको जैसी देश की शीर्ष सहकारी समितियों ने दिखा दिया है कि सहकारिता के जरिए अपने व्यवसाय को कैसे बढ़ाया जा सकता है और अपने मॉडल को कैसे प्रभावी बनाया जा सकता है। भारत की सहकारिता की शक्ति का दुनिया भी लोहा मान रही है।
इफको के प्रबंध निदेशक डॉ. उदय शंकर अवस्थी कहते हैं, ‘‘सहकारिता के लिए बीते दो-तीन वर्ष महत्वपूर्ण उपलब्धियों वाले रहे हैं। कृषि क्षेत्र की सर्वोच्च सहकारी समिति इफको को वर्ल्ड कोआपरेटिव मॉनिटर (आईसीए) की रिपोर्ट में दुनिया की शीर्ष 300 सहकारी समितियों में लगातार प्रथम स्थान मिला है। इफको की नैनो तकनीक-नैनो यूरिया (तरल) और नैनो डीएपी (तरल) की मांग विश्व भर में हो रही है। इफको की जैविक खेती को बढ़ावा देने और मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने के लिए नैनो उत्पादों की शृंखला कृषि क्षेत्र की गेम चेंजर साबित हुई है।’’
इसी तरह, दुग्ध क्षेत्र में अमूल सहकारिता का ज्वलंत उदाहरण है, जिसकी विश्व बाजार में अलग पहचान है। अमूल 50 से अधिक देशों में अपने उत्पाद निर्यात करता है। अब इसने अमेरिका के कुछ प्रांतों में भी दूध की बिक्री के लिए कदम बढ़ाया है। अमूल भारत का सफल सहकारी मॉडल है, जिसने दुग्ध सहकारी क्षेत्र को मजबूती प्रदान करने के साथ लाखों किसानों का जीवन बदल दिया है। भारत को विश्व स्तर पर सबसे बड़ा दूध उत्पादक बनाने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है। 72,000 करोड़ रुपये के वार्षिक कारोबार के साथ जीसीएमएमएफ यानी अमूल दुनिया का 8वां सबसे बड़ा दुग्ध संगठन है। महत्वपूर्ण बात यह है कि वैश्विक स्तर पर दुग्ध क्षेत्र जहां मात्र दो प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है, वहीं भारत में यह 6 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। बीते एक दशक के दौरान भारत में दूध उत्पादन 60 प्रतिशत और प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता 40 प्रतिशत बढ़ी है।
वर्ल्ड कोआपरेटिव मॉनिटर में अमूल विश्व स्तर पर दूसरे स्थान पर है। यह रैंकिंग देशभर में प्रति व्यक्ति जीडीपी कारोबार के अनुपात पर आधारित है। देशभर में 1,85,903 डेयरी सहकारी समितियों से 1.60 करोड़ से अधिक दूध उत्पादक जुड़े हुए हैं। वैश्विक स्तर पर दूध उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी 24 प्रतिशत है। देश में सुदूर के पिछड़े गांवों की डेयरी सहकारी क्षेत्र की महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण में 10 लाख करोड़ रुपये के इसके कारोबार की प्रमुख भूमिका है। हाल ही में सरकार ने 1,000 करोड़ रुपये से अधिक की कई डेयरी परियोजनाओं का उद्घाटन किया है। इस प्रकार डेयरी सहकारी क्षेत्र विकास का एक सफल मॉडल बनकर उभरा है।
पिछले 20 वर्ष में अकेले गुजरात में ही दुग्ध संघों की संख्या 12 से बढ़कर 23 हो गई है। इसी तरह, बीते एक दशक के दौरान देश में शहद का उत्पादन 75,000 मीट्रिक टन से बढ़कर लगभग डेढ़ लाख मीट्रिक टन हो गया है। साथ ही, शहद का निर्यात भी लगभग तीन गुना बढ़ गया है। शहद का निर्यात पहले 28,000 मीट्रिक टन था, जो अब 80,000 मीट्रिक टन पर पहुंच गया है। इसमें नैफेड और ट्राईफेड के साथ राज्यों की सहकारी संस्थाओं की भूमिका भी अहम रही है।
सहकारिता आंदोलन को सरकार से समर्थन और प्रोत्साहन का ही परिणाम है कि इस क्षेत्र को नई दिशा और गति मिली है। पहले कृषि क्षेत्र ही नहीं, दूसरे अन्य क्षेत्र भी बिखरे हुए थे। अब सरकार के प्रयासों से न केवल सहकारी संस्थाएं सक्रिय, सक्षम और अधिक उपयोगी बनी हैं, बल्कि इन संस्थाओं की कार्य संस्कृति भी बेहतर हुई है। साथ ही, सरकार ने सहकारी समितियों के संचालन में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए 2023 में कानून बनाकर पारदर्शी सहकारिता का एक मजबूत खाका तैयार किया है। इन बड़े और प्रभावकारी कदमों से देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सहकारिता की सहभागिता बढ़ी है। सरकार सहकारी बैंकों को भी बहु-राज्यीय बनाने में जुटी हुई है। इसके लिए अधिक से अधिक बहु-राज्य सहकारी समितियों को बैंक में बदलने की प्रक्रिया को आगे बढ़ा रही है।
कुल मिलाकर सरकार सभी आवश्यक सुविधाएं प्रदान करके देश के करोड़ों गरीबों के जीवन को बहुत सरल बना रही है। साथ ही, अलग सहकारिता मंत्रालय के गठन के बाद नए कानून, नए कार्यालय और नई पारदर्शी व्यवस्था के साथ सहकारिता में नए युग की शुरुआत हुई है। भारत के संकल्प की सिद्धि में सहकारी संस्थाओं की भूमिका बहुत बड़ी है, क्योंकि आत्मनिर्भर भारत की बुनियाद पर ही विकसित भारत की बुलंद तस्वीर उभर सकती है।
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