नई दिल्ली। दिल्ली देश की राजधानी है, लेकिन दिल्ली की सरकार यहां मूलभूत सुविधाएं भी नहीं दे पा रही है। जिंदा रहने के लिए पानी जरूरी है, लेकिन प्रचंड गर्मी और कड़क धूप में पूरी दिल्ली पानी को तरसती रही। राजनीति चलती रही। कभी हरियाणा, कभी हिमाचल और कभी उत्तर प्रदेश पर दिल्ली सरकार दोष मढ़ती रही। अब मानसून से पहले की बारिश ने बता दिया है कि दिल्ली वालों का क्या हाल होने जा रहा है। शुक्रवार को हुई बारिश में दिल्ली डूब गई। सड़कें नदियां बन गईं, कार और बस नावें।
जनता ने जिन्हें दिल्ली को संवारने और जीवन सुधारने के लिए सत्ता सौंपी वे शराब घोटाले में जेल में बंद हैं। दिल्ली के मंत्री समर एक्शन प्लान बनाने की जगह अपने मुखिया को जेल से छुड़ाने की जुगत करते रहे। पूरी गर्मी दिल्ली वालों का गला सूखता रहा। बिजली हाफ और पानी माफ का मॉडल लागू करने के बाद दिल्ली से पानी ही ‘साफ’ हो गया। पानी दूसरे राज्य से चलकर तो आता है और फिर गायब हो जाता है। और फिर मानसून में उमड़-घुमड़कर आ जाता है।
भारत के मौसम विभाग का कहना है कि गुरुवार सुबह 8.30 बजे से शुक्रवार सुबह 8.30 बजे के बीच यानी 24 घंटे के दौरान दिल्ली में 228 मिमी बारिश हुई। करीब 88 साल बाद जून के महीने में इतनी बारिश हुई है। 1936 में 28 जून को 235.5 मिलीमीटर बारिश हुई थी। यानी 88 साल का रिकार्ड टूटा है। अभी तो यह शुरुआत है, पूरा मानसून सीजन पड़ा है।
मानसून के दौरान सिस्टम की कारगुजारियां जले में नमक छिड़क जाती हैं। जनता को भी शायद अब इसकी आदत सी हो गई है।
गर्मी और मानसून में हर साल ऐसी ही परेशानी सामने आती है। लोग टैंकरों के पीछे भागते नजर आते हैं और बारिश में सड़कों पर बसें और कारें डूबी हुई दिखती हैं। जलभराव से रोड पर कई किलोमीटर का जाम (ट्रैफिक जाम की बात हो रही है) लग जाता है। यातायात ठप हो जाता है। शुक्रवार को भी यही हुआ। लेकिन आम आदमी पार्टी के सांसदों को इससे क्या लेना-देना। वे तो संसद में तख्तियां लिए हुए थे कि – केजरीवाल को रिहा करो। केजरीवाल रिहा हुए थे, लेकिन चुनावी मौसम में वादों की झड़ी लगाने के लिए। वे शायद मानसून की झड़ी को भूल गए। याद होता तो जाम न दिखता। यहां के नेता अनशन करते हैं, लेकिन ‘जल’जले के बाद। दिल्ली की मेयर का कहना था कि इस बार दिल्ली के लोग मानसून का पूरी तरह से आनंद लेंगे। हो सकता है कि सड़कों पर कार को नाव की तरह चलाने में अलग ही आनंद हो। जाम में फंसने का आनंद भी तो अलग है। एक कहावत कही जाती है- दही की फांस लगना। वहीं एक कहावत अब और कही जाएगी – जल से जलने की, ‘जल’जले की।
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