देहरादून: पिथौरागढ़ जिले की चार और चमोली जिले की एक झील को आपदा प्रबंधन विभाग, वैज्ञानिकों की सलाह पर पंचर करने जा रहा है। इन झीलों पर उपग्रह से निगरानी रखी जा रही है।
उत्तराखंड में दारमा घाटी बेसिन में एक अनाम झील बन गई है, इसके साथ-साथ यांगती घाटी में मबान झील, दारमा बेसिन में प्यूंगु झील, यांगता घाटी में ही कुठी झील के भविष्य में आपदा की दृष्टि से संवेदनशील माना गया है। चमोली जिले में धौलीगंगा बेसिन क्षेत्र में वसुधरा झील को भी विशेषज्ञों ने अति संवेदनशील श्रेणी में रखा हुआ है। वसुंधरा झील के आसपास का क्षेत्र अति संवेदनशील बताया जा रहा है, नीति माणा क्षेत्र में पड़ने वाली इस झील पर विशेषज्ञ लगातार अपनी नजर बनाए हुए है, यहां पहले भी आपदा ने दस्तक दी थी।
इन पांचों झीलों को लेकर एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और भू गर्भ, जलवायु विशेषज्ञों ने मंथन किया और एक राय बनाते हुए इसे पंचर करते हुए इसके जल निकास किए जाने पर सहमति जताई है।
जानकारी के मुताबिक, इन झीलों के अस्तित्व की एक रिपोर्ट देश के चार बड़े संस्थान, वाडिया इंस्टीट्यूट, जीएसआई लखनऊ, एनआईएच रुड़की और आईआईआरएस देहरादून के भूगर्भ और जलवायु विशेषज्ञों द्वारा राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन विभाग को दी है।जिसके बाद उत्तराखंड आपदा प्रबंधन विभाग ने इस बारे में आगे की योजना बनाते हुए इन झीलों को पंचर करने की तैयारी कर ली है।
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एसडीआरएफ के प्रमुख डा रंजीत सिन्हा के अनुसार इन झीलों पर सेटेलाइट के माध्यम से निगरानी की जा रही थी,इसके बनने के कारण और आकार को लेकर जो विशेषज्ञों की रिपोर्ट आई है, उसके बाद से इन पर सरकार ने काम शुरू कर दिया है। इन्हे वैज्ञानिक तरीके से डिस्चार्ज क्लिप पाइप्स डाल कर पंचर कर दिया जाएगा और इसके पानी को निकाल लिया जाएगा।
उन्होंने बताया कि भविष्य में ये झीलें विकराल रूप धारण कर, नुकसान पहुंचा सकती है, लिहाजा इनके पानी का डिस्चार्ज धीमे-धीमे करना जरूरी है। उल्लेखनीय है कि केदारनाथ आपदा भी गांधी सरोवर फटने की वजह से आई थी। जिसके बाद से हिमालय में उपग्रह के माध्यम से भूगर्भ और जलवायु विशेषज्ञों की संस्थाओं द्वारा नजर रखने का काम, एनडीआरएफ करवाती रही है।
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