संयुक्त राष्ट्र और अफगानिस्तान तालिबान के बीच 30 जून 2024 को कतर की राजधानी दोहा में एक मानवाधिकार से जुड़ी एक मीटिंग होने जा रही है। लेकिन इस्लामिक कट्टरपंथी तालिबान ने एक शर्त रखी कि पहले संयुक्त राष्ट्र इन मानवाधिकार बैठकों में किसी भी अफगानी महिला के शामिल होने पर बैन लगाए। आश्चर्य की बात ये है कि यूएन ने तालिबान की मांगों को मान भी लिया है।
यूएन ने ये सुनिश्चित किया है कि दोहा में विशेष दूतों और तालिबान के प्रतिनिदियों के साथ बैठक में कोई भी अफगानी महिला मौजूद नहीं रहेगी। यहीं नहीं अब तालिबान ने संयुक्त राष्ट्र से ये भी मांग कर दी है कि महिलाओं के अधिकारों के मुद्दों को चर्चा से ही हटाया जाए। यानि कि महिलाओं के अधिकार को लेकर बैठक में किसी भी तरह की चर्चा न हो।
इसको लेकर संयुक्त राष्ट्र के राजनीतिक मामलों के प्रमुख रोजमेरी डिकार्लो, ्पगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र की स्पेशल दूत रोजा ओटुनबायेबा समेत कई देशों के दूतों का कहना है कि वे सभी तालिबान से बैठक के बाद अफगानिस्तान के नागरिक समूहों के साथ अलग से मुलाकात करेंगे।
इस बीच अफगानिस्तान की महिला मामलों की पूर्व मंत्री सिमा समर ने भी संयुक्त राष्ट्र के इस पक्षपातपूर्ण कदम की निंदा का है।
अफगानिस्तान में नर्क की जिंदगी जी रही महिलाएं
गौरतलब है कि अफगानिस्तान की लोकतांत्रिक सरकार को अपदस्थ करके हथियारों के बल पर तालिबान ने देश पर कब्जा कर लिया था। तब से वहां पर तालिबान सरकार ने महिलाओं के ऊपर कई सारे प्रतिबंध लगा दिए। वहां पर महिलाएं तालिबानियों के लिए केवल एक वस्तु बनकर रह गई हैं। अफ़गान महिलाओं और लड़कियों को उन अधिकारों में बड़ी गिरावट का सामना करना पड़ा है जो उन्हें अमेरिकी कब्जे के तहत दिए गए थे। तालिबान ने महिलाओं को काम करने, स्कूल जाने या सार्वजनिक रूप से अपना चेहरा दिखाने पर प्रतिबंध लगा दिया है, और उनके सख्त नियमों का उल्लंघन करने वाली महिलाओं को गायब कर दिया जाता है, प्रताड़ित किया जाता है या यहाँ तक कि मार दिया जाता है।
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