‘मस्जिद है या शिवाला, सच बता ही देंगे, पूछेगी जब अदालत पत्थर गवाही देंगे’ ये लाइन है गीतकार मनोज मुंतशिर की एक कविता का, जिसे उन्होंने काशी में ज्ञानवापी ढांचे को लेकर चल रहे केस के दौरान लिखा। लेकिन, उस कविता की ये लाइन मध्य प्रदेश के धार स्थित ऐतिहासिक भोजशाला पर भी बिल्कुल फिट बैठ रही है। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ के आदेश पर भोजशाला का एएसआई सर्वे कर रही है और समय के साथ भोजशाला की जमीन से निकले पत्थर इस बात की गवाही दे रहे हैं कि वहां कोई मस्जिद नहीं, बल्कि सरस्वती मंदिर था।
भोजशाला का 93वें दिन का सर्वे पूरा हो चुका है। जैसे-जैसे एएसआई की टीम खुदाई के काम को आगे बढ़ा रही है सनातन धर्म के प्रतीक मिल रहे हैं। 93वें दिन की खुदाई में जांच टीम को भोजशाला के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र से आज जटाधारी भगवान शंकर की मूर्ति, 7 मुख वाले वासुकी नाग की मूर्ति और कलश सहित 9 पाषाण अवशेष मिले हैं। इस बात का दावा भोजशाला मुक्ति यज्ञ के संयोजक और मुख्य याचिकाकर्ता गोपाल शर्मा ने किया है। गोपाल शर्मा ने ये भी बताया कि खुदाई के दौरान 6 अवशेष मोल्डिंग के टुकड़े भी मिले हैं। सभी साक्ष्यों को ASI की टीम ने संरक्षित कर लिया है।
मुस्लिम पक्ष नई कहानी गढ़ रहा
इस बीच मुस्लिम पक्ष के पक्षकार अब्दुल समद खान ने नई कहानी गढ़ते हुए यह सिद्ध करने की कोशिश की है कि भोजशाला के उत्तर-पूर्वी कोने में जहां पर खुदाई चल रही है वहां पर बने ओटलों को बाद में बनाया गया था। अब मुस्लिमों का कहना है कि यहां पर चीजों को डंप करने के बाद ओटले बनाए गए थे।
अब तक क्या मिला
गौरतलब है कि भोजशाला की खुदाई में अब तक एएसआई की टीम को भगवान राम, कृष्ण और हनुमान जी की मूर्तियां मिल चुकी हैं। उल्लेखनीय है कि इससे पहले 55वें दिन के सर्वे में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को स्तंभों और दीवारों पर भगवान श्रीराम, श्रीकृष्ण, परशुराम, शिव और हनुमान की आकृतियां उभरी हुई मिलीं थीं। विशेषज्ञों द्वारा जब स्तंभों और दीवारों की क्लीनिंग के बाद ये आकृतियां अब साफ नजर आने लगी थीं। गर्भगृह के ठीक सामने एक स्तंभ पर भगवान राम-कृष्ण, परशुराम, और भगवान शिव की आकृति एक ही स्तंभ पर दिखी थी।
भोजशाला ही है सरस्वती मंदिर
भोजशाला ही ‘सरस्वती मंदिर’ था। इस बात का दावा पूर्व पुरातत्वविद के के मुहम्मद ने बीते दिनों किया था। उनका कहना था कि भोजशाला, जिसे मुस्लिम पक्ष ‘कमल मस्जिद’ असल में वो कोई मस्जिद नहीं, बल्कि सरस्वती मंदिर था। लेकिन बाद में इस्लामवादियों ने इस्लामी इबादतगाह में बदल दिया।
केके मुहम्मद का कहना था कि धार स्थित भोजशाला के बारे में ये ऐतिहासिक तथ्य है कि ये सरस्वती मंदिर ही था। बाद में इसे मस्जिद बनाया गया। उल्लेखनीय है कि हिन्दू समुदाय लगातार ये दावा करता आ रहा है कि यहां पर कोई मस्जिद कभी थी ही नहीं, बल्कि ये मां सरस्वती का मंदिर था।
टिप्पणियाँ