22 जून कबीर प्राकट्य दिवस विशेष : पांच तत्व गुन तीनी चदरिया
May 9, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • संस्कृति
  • पत्रिका
होम विश्लेषण

22 जून कबीर प्राकट्य दिवस विशेष : पांच तत्व गुन तीनी चदरिया

महात्मा कबीर ने प्रकृति के महत्व को आज से छह शताब्दी पहले ही समझ लिया था, तब जबकि पर्यावरण संकट की आज जैसी कोई समस्या न थी।

by पूनम नेगी
Jun 22, 2024, 04:24 pm IST
in विश्लेषण
संत कबीरदास

संत कबीरदास

FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

झीनी झीनी बीनी चदरिया।

इंगला-पिंगला ताना भरनी,

सुषमन तार से बीनी चदरिया।

आठ कंवल दस चरखा डोलै,

पांच तत्व गुन तीनी चदरिया।

जाको सियत मास दस लागे,

ठोक ठोक कर बीनी चदरिया।

सो चादर सुर नर मुनि ओढ़ी,

ओढ़ि के मैली कीनी चदरिया।

दास कबीर जतन जतन से ओढ़ी,

ज्यों की त्यों धरि दीनी चदरिया।

चरखे पर सूत कातते कर्मयोगी कबीर के अंतस की यह वाणी वाकई अद्भुत है। पूर्ण निष्ठा से अपनी जाति के जुलाहा कर्म का पालन करते हुए उनके द्वारा व्याख्यायित मानव जीवन का यह सर्वकालिक गूढ़ तत्वज्ञान वर्तमान की आपातकालीन परिस्थितियों में पूर्ण समीचीन है।

एक निर्धन निरक्षर जुलाहा परिवार में पलकर कैसे महानता के शिखर को छुआ जा सकता है; यह महात्मा कबीर के आचार-व्यवहार, व्यक्तित्व और कृतित्व से सहज ही सीखा जा सकता है। कबीर साहित्य में जहां एक ओर वेदांत के तत्व ज्ञान, माया, प्रेम और वैराग्य की गूढ़ता मिलती है, वहीं उनके साहित्य में समाज सुधार का प्रखर शंखनाद भी है। कबीर का युग समाजिक विषमताओं का युग था। उनका प्राकट्य मुगल आक्रान्ताओं के शासन की संक्रमणकालीन परिस्थितियों में हुआ था। उस समय देश में सिकन्दर लोदी का शासन था। देश की निर्दोष हिन्दू जनता अत्याचार की शिकार थी। संत कबीर ने इस अन्याय पर इतने तीखे प्रहार किये कि दिखावों की धज्जियां उड़ गयीं। वे मध्यकाल के अंधयुग में ज्ञान का अद्भुत आलोक लेकर आये थे। जनसामान्य का उत्थान ही इस महामनीषी की जीवन साधना थी। यद्यपि अध्यात्म का तत्वज्ञान उनका मुख्य प्रतिपाद्य विषय था; किन्तु प्रकृति भी उनके काव्य में उतनी ही प्रखरता से रूपायित है। प्रकृति के साथ जीने की राह दिखाने वाले इस मध्ययुगीन क्रान्तिकारी संत को मात्र एक व्यक्ति नहीं अपितु समग्र दर्शन मानना चाहिए। एक ऐसी चिंतन पद्धति जो स्वयं में “अणु में विभु” और “गागर में सागर” समाहित करने की उक्ति को चरितार्थ करती प्रतीत होती है।

कबीर साहित्य के साक्ष्यों के अनुसार विक्रमी संवत 1455 को ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन काशी के लहरतारा नामक तालाब से नीरू व नीमा नामक एक निर्धन निरक्षर जुलाहा दम्पति को रहस्यपूर्ण परिस्थितियों में एक कमल पुष्प पर शिशु रूप में यह अवतारी चेतना मिली थी, जिसका पालन पोषण उन्होंने अपने बालक के रूप में किया था। कहा जाता है कि उस काल में देशवासियों के मानस के साथ प्रकृति भी अपना मार्ग बदल रही थी। उस समय काशी में गंगा की एक लहर पीछे छूट गयी थी, उससे जो ताल बना, बनारस में उसका नाम पड़ा- लहरतारा। इसी तालाब के किनारे कबीर अपने पालनहार माता-पिता नीरू-नीमा को मिले थे। ऐसे बालक का प्रकृति व उसके उपादानों से आत्मिक जुड़ाव होना स्वाभाविक ही था। यही वजह है कि कबीर के काव्य में जगह-जगह प्रकृति अपनी पूरी गरिमा के साथ मौजूद दिखती है और मानव जाति को जीवन की जटिल व विषमतामय परिस्थितियों से उबरने की सीख देती नजर आती है।

गौरतलब हो कि महात्मा कबीर ने प्रकृति के महत्व को आज से छह शताब्दी पहले ही समझ लिया था; तब जबकि पर्यावरण संकट की आज जैसी कोई समस्या न थी। बताते चलें कि भले ही कबीर के व्यक्तित्व का मुख्य पहलू अध्यात्म के तत्वदर्शन के साथ तदयुगीन सामाजिक संरचना में कुरीति भंजक और ढोंग-संहारक स्वरूप में रेखांकित होता है परंतु उनके व्यक्तित्व का एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू उन्हें विलक्षण पर्यावरण प्रेमी के रूप में स्थापित करता है। कबीर साहित्य के तमाम उद्धरण उन्हें पर्यावरण के अनूठे प्रहरी, प्रचारक और प्रसारक साबित करते हैं। थोड़े में बहुत कुछ कहने की अद्भुत क्षमता रखने वाले संत कबीर अपने पद और साखियों में कहते हैं-

‘डाली छेड़ूँ न पत्ता छेड़ूँ, न कोई जीव सताऊँ।

पात-पात में प्रभु बसत है, वाही को सीस नवाऊँ॥’

उपरोक्त पंक्तियां कबीर के अनन्य प्रकृति प्रेम को परिलक्षित करती हैं। पेड़ के पत्ते में परमात्मा के बसने की बात भले ही कोई नास्तिक स्वीकार न करे, लेकिन पेड़-पत्ते सुरक्षित रहते हैं तो ऑक्सीजन सुरक्षित रहती है। इस बात को तो कोई नास्तिक भी अस्वीकार नहीं कर सकता।

संत कबीर कहते हैं-

‘रे भूले मन वृक्षों का मत ले रे।

जो कोई वाको पत्थर मारे, वा को फल दे रे॥

इस तरह कबीर का काव्य तमाम पशु-पक्षियों, पेड़-पौधों व जीव-जन्तुओं का अनूठा संग्रह प्रतीत होता है।

कबीर मानुष जनम दुर्लभ है, देह न बारंबार।

तरवर थैं फल झड़ि पड्या, बहुरि न लागै डार।।

अर्थात् जिस प्रकार संसार में मनुष्य का जन्म कठिनता से मिलता है, उसी प्रकार लाख प्रयत्न करने पर भी एक बार शाख से तोड़ा गया पत्ता वापस जोड़ा नहीं जा सकता। अतः हरे भरे पेड़ को नष्ट करना कबीर की दृष्टि में असंगत है-

पाती तोरै मालिनी, पाती-पाती जीउ।

प्रत्येक पत्ती में जीवों का निवास स्थान है, उसे अनावश्यक हानि नहीं पहुँचानी चाहिये। कबीर की दृष्टि में पेड़-पौधे, धरती, आकाश; ये सदैव बने रहने चाहिये। वे धरती माता के प्रति कृतज्ञता जताते हुए कहते हैं कि हमारी उत्पत्ति जिस धरती से हुई है, वह हमें जीवन का पालन करने हेतु अन्न, जल, फल-फूल सभी प्रदान करती है, किन्तु कभी घमण्ड नहीं करती, न ही इसे अपना गुण मानती है-

सबकी उतपति धरती, सब जीवन प्रतिपाल।

धरति न जाने आप गुन, ऐसा गुरु विचार।।

ऐसी अप्रतिम सहनशीलता व महान दातव्य भाव के कारण संत कबीर कई स्थलों पर धरती माता को गुरु से भी उच्च स्थान देते प्रतीत होते हैं। इसी तरह वे कहते हैं कि पृथ्वी पुत्र वृक्ष भी परोपकार में कम नहीं हैं –

वृक्ष कबहुँ नहिं फल भखै, नदी न संचै नीर।

परमारथ के कारने, साधुन धरा सरीर।।

अर्थात धरती के सारे वृक्ष-वनस्पतियाँ पक्षपात रहित होकर न केवल सभी को समान रूप से फल और छाया देते हैं वरन निरीह पशु-पक्षियों को आश्रय भी देते हैं। वे हमारे लिए प्राणवायु का संचार करता है। उसके फल-फूल, पत्ते और लकड़ी सभी कुछ हमारे काम आते हैं। कबीर के शब्दों में वृक्ष का वृक्षत्व उसके इसी परोपकार भाव में निहित है। दूसरे के उपकार के लिए ही जीवन धारण करने वाले वृक्ष वनस्पतियों का यह व्यवहार सज्जनों के स्वभाव के समतुल्य है। किन्तु खेद का विषय है कि स्वार्थी मनुष्य को इसकी परवाह नहीं। वह तो हानिरहित होने पर भी पत्ती खाने वाले पशुओं को मारकर खा जाता है। कबीर इसे बड़ी गम्भीरता से लेते हैं और ऐसे लोगों को शाकाहार अपनाने की प्रेरणा देते हुए चेताते हैं-

बकरी पाती खाति है, ताको काढ़ी खाल।

जो नर बकरी खात हैं, तिनका कौन हवाल।।

सार रूप में कहें तो संत कबीर पेड़-पौधों व जीव-जगत के संरक्षण को धार्मिकता से जोड़कर मनुष्य को प्रकृति की गोद में सहजता व सादगी से जीवन जीने की ओर प्रेरित करते प्रतीत होते हैं। यहां तक कि रोज़मर्रा के जीवन में आने वाली व्यावहारिक कठिनाइयों का समाधान भी वे प्रकृति के आश्रय में खोजते दिखाई पड़ते हैं-

कबीर तन पक्षी भया, जहाँ मन तहाँ उड़ि जाइ।

जो जैसी संगति करे, सो तैसे फल खाइ।।

उक्त पंक्तियों में कबीर ने मनुष्य के सामाजिक जीवन में सत्संगति का महत्त्व बताने के लिए ‘पक्षी’ के प्राकृतिक प्रतीक का सहारा लिया है। इसी तरह वे बगुले और कौवे के प्रतीक के माध्यम से संसार में सफेदपोश लोगों की पोल खोलते हैं। ऐसे उद्धरण उनके लोकजीवन विषयक सूक्ष्म ज्ञान के परिचायक हैं। जन सामान्य की देशज भाषा में अपने सहज उपदेशों के द्वारा ज्ञान, भक्ति और मोक्ष मार्ग का पथ प्रशस्त करने वाले कबीर की जीवन-साधना उनकी आत्मपीड़ा का ही प्रतिफलन थी। उनका संवेदनशील मन भ्रम जाल में उलझे संसार की पीड़ा को देख कर कराह उठता है-

चलती चक्की देखि के दिया कबीरा रोय ।

दुई पाटन के बीच में साबुत बचा न कोय ।।

कबीर की लोकमंगल की भावना उन्हें विशिष्ट बनाती है। वे अपने जीवन में बस यही चाहते हैं कि सबका भला हो –

कबीरा खड़ा बजार में, मांगे सबकी खैर।

ना काहू से दोस्ती, न काहू से बैर।।

अनियंत्रित सांसारिक कामनाएं और चिंताएं ही कष्टों की जड़ हैं। जिसने इन कामनाओं पर विजय पा ली; वस्तुतः वही इस संसार का राजा है-

चाह मिटी चिंता मिटी मनवा बेपरवाह।।

जाको कछु नहिं चाहिए सो शाहन को शाह।।

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने उचित ही कहा है,’’ कबीर एक गहरे अनुभव का नाम है, जिसमें सब कुछ समा जाता है। कबीर एक समाधि हैं, जहां सभी का समाधान हो जाता है। कबीर उस किलकारती गंगा के समान हैं जो बह तो सकती है परंतु ठहर नहीं सकती और न एक घट में समा सकती है। कबीर की गति परिधि से केंद्र की ओर है और अवस्था उस महाशून्य के सदृश्य है, जिसमें सभी हैं और जो सभी में हैं।‘’ सही मायने में कबीर अप्रतिम सुधारक थे। जन जीवन का उत्थान ही उनकी जीवन साधना थी। दर्शन के इस महामनीषी की वाणी में अंधविश्वास व कुरीतियों के खिलाफ मुखर विरोध दिखता है। भक्त कबीर के दोहों में अद्भुत शिक्षण है, विलक्षण नीतिमत्ता है और सहज प्रेरणा भी। संत कबीर के इन जीवन सूत्रों को जीवन में उतार कर कोई भी मनुष्य आज भी आनन्दपूर्ण व संतोषी जीवन जी सकता है। वर्तमान की विषम परिस्थितियों में हम सब भारतवासी यदि उनके काव्य में अभिव्यक्त पर्यावरणीय चेतना के मर्म को अपने अंतस में उतार कर अमलीजामा पहना सकें तो यह इस महामनीषी एक सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

कबीर का ढाई आखर का ‘प्रेम’

कबीर का प्रेम तत्व बेहद गहन है। वे कहते हैं कि ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय। उनके अनुसार जिसने भी प्रेम के मूल तत्व को जान लिया, जिसके हृदय में मानवता के लिए सच्चा प्रेम जग गया, उसका व्यक्तित्व परिपूर्ण हो जाता है। फिर वह जो भी देखेगा, प्रेम की आंखों से ही देखेगा, प्रेम से ही बोलेगा, प्रेम से ही सुनेगा, प्रेम से ही करेगा। तब उसका न कोई दुश्मन होगा, न कोई विभाजन और न ही कोई अलगाव होगा। तब सभी एक ही समष्टि के अंग-अवयव बन जाएंगे। प्रेम की इसी एकात्मकता के परम ज्ञान को कबीर ने ‘अद्वैत’ की अवस्था कहा है।

कबीर के ढाई आखर प्रेम की रोचक व्याख्या करते हुए ओशो कहते हैं, ‘’प्रेम शब्द अधूरा है क्योंकि इसमें ढाई अक्षर हैं; मगर दिलचस्प तथ्य यह है कि इस प्रेम में जो अधूरापन है, वही इसकी शाश्वतता है। प्रेम का यह अधूरापन जीवात्मा व परमात्मा के आपसी संबंध जैसा है। कितना ही विकसित होता जाए, फिर भी विकास जारी रहता है क्योंकि पूर्णता मृत्यु है। जो भी चीज पूरी हो जाती है, वह मर जाती है। तुम कितने ही तृप्त होते जाओ, फिर भी तुम पाओगे कि हर तृप्ति और अतृप्त कर जाती है। यह ऐसा जल नहीं है कि तुम पी लो और तृप्त हो जाओ। यह ऐसा जल है जो तुम्हारी प्यास को सतत बढ़ाता जाता है। इस गहन रहस्य को खोजते-खोजते मनीषियों, दार्शनिकों, चिंतकों, वैज्ञानिकों को सदियां लग गयीं पर प्रेम अधूरा ही रहा। कारण कि प्रेम आदि अनादि है, इस जगत में परमात्मा का प्रतिनिधि। परमात्मा की पूर्णता गहन अपूर्णता जैसी है। उस पूर्ण में और पूर्ण को डाल दो, तो भी वह उतना ही रहता है, जितना था। वह जैसा है, वैसा ही है; उसमें घट-बढ़ नहीं होती। सचमुच कबीर का प्रेम दर्शन अनूठा और निराला है।

Topics: महात्मा कबीरप्रकृति के महत्व पर कबीर दासKabir's coupletsBirth of Kabir DasKabir Prakatya Diwas22 June SpecialMahatma Kabirकबीर के दोहेKabir Das on the importance of natureकबीर दास का जन्मकबीर प्राकट्य दिवस22 जून विशेष
ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

No Content Available

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ

पाकिस्तान बोल रहा केवल झूठ, खालिस्तानी समर्थन, युद्ध भड़काने वाला गाना रिलीज

देशभर के सभी एयरपोर्ट पर हाई अलर्ट : सभी यात्रियों की होगी अतिरिक्त जांच, विज़िटर बैन और ट्रैवल एडवाइजरी जारी

‘आतंकी समूहों पर ठोस कार्रवाई करे इस्लामाबाद’ : अमेरिका

भारत के लिए ऑपरेशन सिंदूर की गति बनाए रखना आवश्यक

पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ

भारत को लगातार उकसा रहा पाकिस्तान, आसिफ ख्वाजा ने फिर दी युद्ध की धमकी, भारत शांतिपूर्वक दे रहा जवाब

‘फर्जी है राजौरी में फिदायीन हमले की खबर’ : भारत ने बेनकाब किया पाकिस्तानी प्रोपगेंडा, जानिए क्या है पूरा सच..?

S jaishankar

उकसावे पर दिया जाएगा ‘कड़ा जबाव’ : विश्व नेताओं से विदेश मंत्री की बातचीत जारी, कहा- आतंकवाद पर समझौता नहीं

पाकिस्तान को भारत का मुंहतोड़ जवाब : हवा में ही मार गिराए लड़ाकू विमान, AWACS को भी किया ढेर

पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर से लेकर राजस्थान तक दागी मिसाइलें, नागरिक क्षेत्रों पर भी किया हमला, भारत ने किया नाकाम

‘ऑपरेशन सिंदूर’ से तिलमिलाए पाकिस्तानी कलाकार : शब्दों से बहा रहे आतंकियों के लिए आंसू, हानिया-माहिरा-फवाद हुए बेनकाब

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies