किसी भी व्यक्ति के ईसाई होने यानी क्रिश्चियन होने में कोई समस्या नहीं है अगर आपका विवेक अधिक जागृत नहीं है और आप एक सामान्य साधारण व्यक्ति हैं तथा नियमित चर्च टैक्स देते हैं, कभी-कभी चर्च जाते हैं और खुद को क्रिश्चियन कहते हैं।
इसके सिवाय क्रिश्चियनटी और कुछ भी डिमांड नहीं करती। चर्च को टैक्स देना और चर्च के अनुशासन में रहकर जीना। बाकी जीवन में कुछ भी करना। इससे क्रिश्चियन होना सबसे आसान है बशर्ते आपका विवेक अधिक उन्नत और चेतना अधिक जागृत न हो। औसत व्यक्ति के लिए क्रिश्चियन होने में अगर वह यूरोप में पैदा हुआ है तो बहुत आसानी है।
हिंदू होने में भी कोई समस्या नहीं है क्योंकि हिंदू धर्म में देश, काल और पात्र के भेद और विवेक पर इतना अधिक बल है कि तामसिक व्यक्ति भी हिंदू हो सकता है रजोगुणवाला भी और सात्विक भी।
इतना जरूर है कि वह केवल अपने मत और अपने पथ का उन्माद और उसका आग्रह न रखे। सत्य के विराट स्वरूप को स्मरण रखे और प्रयास करें कि वह विराट सदा स्मरण रहे और भगवान का भजन नियमित करें तो वह हिंदू है।
पर मुसलमान या मोहम्मदन या मोमिन होने में सबसे ज्यादा समस्या है। क्योंकि कुरान एक स्पष्ट और छोटे आकार की किताब है।
यह स्पष्ट रूप से थोड़े में ही बताती है कि क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए। और उसमें से क्या करना चाहिए, वह तो बहुत लोगों को प्रिय लगेगा।
बहुत सी ऐसी चीजें हैं जो रजो गुण और तमोगुण को पुष्ट करती हैं। मार-काट, भोग-विलास की प्रचुर प्रेरणा वहां दी गई है।
परंतु क्या नहीं करना चाहिए इसका जो निषेध है वह भी बहुत स्पष्ट है और बहुत कड़ाई से है और ऐसा कोई मोमिन करोड़ों में एक आध ही होगा जो उन कामों को ना करता हो जिनका करना कुरान में और हदीस में वर्जित है और इस प्रकार स्वयं कुरान के अनुसार ऐसे सभी लोग जो स्वयं को मोमिन या मुसलमान कहते हैं और कुरान में जिन कामों को करना वर्जित किया गया है या स्वयं पैगंबर ने जिन कामों की वर्जना की है, उनको अगर करता है तो वह मोमिन नहीं है।
उसका मस्जिद या मदरसा या किसी भी मुस्लिम वस्तु पर कोई अधिकार नहीं है। वह मुशरिक और मुनाफिक है और उसे इस जीवन में भी और कयामत के बाद दोजख में भी बहुत ही भयंकर सजा मिलेगी।
इस प्रकार कुरान के अनुसार मोहम्मद पंथी या मुहम्मदन या मोमिन होना बहुत कठिन काम है। बहुत ही कठिन काम है।
करोड़ों में एकाध ही सच्चे मोमिन हो पाते हैं।
इसमें जो सबसे बड़ी समस्या आती है वह यह है कि अगर आप सच्चे नहीं है और अगर आप ऐसे काम की छूट लेते हैं जिनको कुरान में और हदीस में मना किया गया है तो फिर आप बार-बार इस तरह कुरान की दुहाई नहीं दे सकते।
आपको कोई अधिकार ही नहीं रह जाता।
फिर आपको अपने राज्य और अपने क्षेत्र के कानून की ही दुहाई देनी होगी। उसे ही मानना होगा। कुरान की दुहाई देकर चाहे जो मांग करना कानून को तोड़ना और दंडनीय अपराध माना जाएगा।
कुरान की बात वही कह सकता है जो उसके अनुसार पूरा जीवन जीता है।
क्योंकि उसमें किसी तरह की कोई छूट नहीं दी गई है। बहुत स्पष्ट कथन है कुरान के।
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