पाकिस्तान के संदर्भ में आज यह बात कोई राज नहीं रही है कि वहां की सरकार ने अपने सुरक्षा बलों को बलूचिस्तान में मनमानी करने की खुली छूट दी हुई है। उस प्रांत के लोग अब इस्लामाबाद की पाशविकता से इतने त्रस्त हो चुके हैं कि उन्हें अब उम्मीद की किरण भारत में नजर आ रही है। क्योंकि पाकिस्तान के सुरक्षा बलों ने ‘उग्रपंथियों’ पर कार्रवाई के नाम पर जिस तरह अब तक सैकड़ों युवाओं और समाजकर्मियों को ‘अगवा’ किया है उससे पूरे क्षेत्र में जैसे आतंक का साया मंडरा रहा है।
ताजा जानाकरी के अनुसार, पाकिस्तान की फ्रंटियर कॉर्प्स ने दो बलूच युवकों को उठा लिया है। दोनों सगे भाई बताए जाते हैं। उनको ‘अगवा’ करने का यह आरोप बलूचिस्तान मानवाधिकार परिषद (एचआरसीबी) ने लगाया है। संगठन का कहना है कि उन युवकों के परिजनों ने फ्रंटियर कॉर्प्स के शिविर के सामने धरना दे रखा है और उधर फौजी उन्हें धमका रहे हैं कि ‘यहां से उठ जाओ, अपने घर जाओ।’
बताया गया है कि फ्रंटियर कॉर्प्स ने बलूचिस्तान प्रांत के बुलेदा में ‘उग्रपंथियों की तलाशी का अभियान’ चलाया था। इस बहाने उन्होंने निर्दोष बलूचों में जबरन घुसकर अत्याचार करने शुरू किए। इसी अभियान के दौरान फौजियों ने दो युवकों को उनके घर से उठा लिया। ये दोनों, शाह जान नूर तथा सादिक नूर सगे भाई बताए गए हैं।
बलूचिस्तान मानवाधिकार परिषद (एचआरसीबी) ने इस घटना की जानकारी देते हुए एक्स पर लिखा कि गत 16 जून को सुबह 6 बजे, फ्रंटियर कॉर्प्स वालों ने बुलेदा के गिली इलाके में एक घर पर छापा मार कर दो जवान भाइयों, शाह जान नूर तथा सादिक नूर को अगवा कर लिया है।’ बता दें कि बलूचिस्तान मानवाधिकार परिषद एक गैर सरकारी संगठन है जो बलूचिस्तान के पीड़ितजन के लिए आवाज उठाता है।
परिषद ने बताया कि दोनों भाइयों, शाह जान और सादिक को अगवा किए जाने से इलाके में रोष व्याप्त है। लोग पाकिस्तान सरकार को इस तरह के अत्याचार के लिए कोस रहे हैं। उनका कहना है कि दोनों भाई निर्दोष हैं और उनका किसी भी प्रकार की उग्रपंथी कार्रवाई में कभी कोई हाथ नहीं रहा है। पीड़ित परिवार की आर्त पुकारों का सुरक्षाकर्मियों पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। उलटा वे उनको धरना उठा लेने को धमका रहे हैं।
वैसे बलूचिस्तान की यह घटना अपने में इकलौती और अनोखी नहीं है। उस क्षेत्र में शायद ही कोई ऐसा परिवार हो जिस पर पाकिस्तान सरकार की पाशविकता का प्रभाव न पड़ा हो। सैकड़ों ‘अगवा’ हुए युवाओं, कार्यकर्ताओं, मानवाधिकारियों और नेताओं का आज तक कोई अता—पता नहीं चला है। उनके परिजनों की कहीं कोई सुनवाई नहीं है। अनेक तो जान बचाने को किसी गुप्त ठिकाने पर रह रहे हैं या विदेश जा चुके हैं और वहीं से बलूचों के अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। बलूचिस्तान मानवाधिकार परिषद जैसे कुछ संगठन हालात ठीक करने के लिए काम तो कर रहे हैं लेकिन सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही है।
टिप्पणियाँ