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भारतीय सेना का पहला स्वदेशी साइलेंट किलर ड्रोन है ‘नागास्त्र-1’, दुश्मन को उसके घर में घुसकर डसेगा 

यह ड्रोन नागपुर स्थित सोलार इंडस्ट्रीज की सहायक स्वदेशी कम्पनी ‘इकोनॉमिक एक्सप्लोसिव लिमिटेड’ (ईईएल) तथा बेंगलुरू की ‘जेड मोशन ऑटोनॉमस सिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड’

by योगेश कुमार गोयल
Jun 17, 2024, 05:17 pm IST
in भारत, विज्ञान और तकनीक, महाराष्ट्र
‘नागास्त्र-1’

‘नागास्त्र-1’

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भारतीय सेना को हाल ही में स्वदेशी मैन-पोर्टेबल सुसाइड ड्रोन ‘नागास्त्र-1’ का पहला बैच मिल गया है। यह ड्रोन नागपुर स्थित सोलार इंडस्ट्रीज की सहायक स्वदेशी कम्पनी ‘इकोनॉमिक एक्सप्लोसिव लिमिटेड’ (ईईएल) तथा बेंगलुरू की ‘जेड मोशन ऑटोनॉमस सिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड’ द्वारा बनाया गया है। दो साल पहले ही सोलार इंडस्ट्रीज ने जेड मोशन ऑटोनॉमस सिस्टम्स में 45 प्रतिशत का इक्विटी स्टेक लिया था, जिससे सोलार कम्पनी को मानवरहित एरियल व्हीकल बनाने का मौका मिला।

‘नागास्त्र-1’ आम ड्रोन से बिल्कुल अलग है। दरअसल इसके काम करने का तरीका आम ड्रोन से काफी अलग होता है। यह एक ऐसा आत्मघाती ड्रोन है, जो हमारे सैनिकों की जान को खतरे में डाले बिना बड़ी आसानी से दुश्मन के ट्रेनिंग कैंप अथवा लांच पैड पर हमला कर सकता है। इस ड्रोन की विशेषता यह है कि इसे जैसे ही अपना लक्ष्य मिलता है, यह उसमें घुसकर क्रैश हो जाता है और लक्ष्य को समाप्त कर देता है।

भारतीय सेना द्वारा ऐसे 480 ड्रोन के लिए ईईएल के साथ 300 करोड़ रुपये का करार किया गया था, जिसमें से कम्पनी द्वारा 120 आत्मघाती ड्रोन ‘नागास्त्र-1’ डिलीवर कर दिए गए हैं। सेना ने आपातकालीन खरीद शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए इन ड्रोन का ऑर्डर दिया था। पड़ोसी देशों पाकिस्तान और चीन की सीमाओं पर निगरानी के दौरान तुरंत जरूरतों को पूरा करने के लिए इन आत्मघाती ड्रोन के ऑर्डर दिए गए थे और ऑर्डर के एक साल के भीतर ही कम्पनी द्वारा इनका पहला बैच भारतीय सेना को सौंप दिया गया।

हालांकि भारतीय सशस्त्र बलों ने अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए आपातकालीन खरीद के पहले दौर में विदेशी कम्पनियों से ऐसी ही प्रणाली हासिल की थी लेकिन तब इसके लिए सेना को काफी ज्यादा कीमत चुकानी पड़ी थी। इसीलिए विदेशी स्रोतों पर निर्भरता कम करने के लिए ईईएल को ऐसे 480 लॉइटरिंग म्यूनिशन ड्रोन का ऑर्डर दिया गया और ईईएल द्वारा ‘नागास्त्र-1’ में 75 प्रतिशत से भी ज्यादा स्वदेशी सामग्री का इस्तेमाल करते हुए उच्च तकनीक के साथ इसका निर्माण शुरू किया गया और आखिरकार विदेशों से की जा रही खरीद के मुकाबले इसकी लागत काफी कम हुई। यह हथियार इजरायल और पोलैंड से आयात किए गए हवाई हथियारों से करीब 40 फीसदी सस्ता है। इस ड्रोन के परीक्षण चीन सीमा के पास लद्दाख की नुब्रा घाटी में किए गए थे और परीक्षण के दौरान दुनिया में पहली बार ऐसा हुआ था, जब एक से चार किलोग्राम वॉरहेड के साथ किसी मैन-पोर्टेबल लॉइटरिंग म्यूनिशन का सफल ट्रायल सम्पन्न हुआ।

यह ड्रोन 4500 मीटर ऊपर उड़ान भरते हुए सीधे दुश्मन के टैंक, बंकर, बख्तरबंद वाहनों, हथियार डिपो तथा सैन्य समूहों पर घातक हमला कर सकता है। लॉइटरिंग म्यूनिशन को आत्मघाती ड्रोन, कामिकेज ड्रोन अथवा विस्फोट करने वाले ड्रोन के रूप में जाना जाता है, जो एक एरियल वैपन सिस्टम है। इसमें एक अंतर्निर्मित वारहेड होता है, जिसे आमतौर पर टारगेट के चारों ओर घूमने के लिए डिजाइन किया जाता है। जब टारगेट स्थिर हो जाता है तो यह उसे हिट करता है और उससे टकराता है। यह ड्रोन हवा में अपने टारगेट के आसपास घूमता है और सटीक आत्मघाती हमला करता हैं। सटीक हमला इसके सेंसर पर निर्भर करता है।

लक्ष्य के ऊपर मंडराने और फिर उससे टकराने की क्षमता के कारण इसे घातक युद्ध हथियार कहा जाता है।
‘नागास्त्र-1’ वास्तव में एक ‘फिक्स्ड-विंग इलैक्ट्रिक मानवरहित एरियल वाहन’ (यूएवी) है, जो स्वदेश में बना पहला मैन-पोर्टेबल आत्मघाती ड्रोन है। यह न केवल ज्यादा तापमान पर बल्कि अत्यधिक ठंडे बेहद ऊंचाई वाले क्षेत्रों में भी काम कर सकता हैं। इन ड्रोन्स को दुश्मनों के प्रशिक्षण शिविर, लांच पैड और घुसपैठियों को सटीक निशाना बनाने के लिए ईईएल द्वारा पूरी तरह भारत में ही डिजाइन और विकसित किया गया है।

सेना के लिए ये ड्रोन इस मायने में बेहद महत्वपूर्ण हैं कि भारतीय सेना में इन सुसाइड ड्रोन के शामिल होने के बाद सेना के जवान अब अपनी जिंदगी को खतरे में डाले बिना ही दुश्मन को टारगेट कर सकते हैं। जीपीएस तकनीक से लैस यह ड्रोन ‘कामिकेज मोड’ में दो मीटर की पिन प्वाइंट एक्यूरेसी के साथ करीब 30 किलोमीटर की रेंज तक अपने टारगेट को निशाना बना सकता है और सटीकता के साथ किसी भी खतरे को बेअसर कर सकता है। इस आत्मघाती ड्रोन का वजन करीब 9 किलोग्राम है और इसकी ऑटोनोमस मोड रेंज करीब 30 किलोमीटर की है। ‘नागास्त्र-1’ ऑटो मोड में अधिकतम 30 किलोमीटर की स्पीड तय कर सकता है और जब इसे रिमोट से ऑपरेट किया जाता है, तब इसकी गति 15 किलोमीटर हो जाती है और यह अपने टारगेट के ऊपर 60 मिनट तक मंडरा सकता है।

यह एक किलो के वारहेड के साथ 15 किलोमीटर तक जा सकता है। आत्मघाती ड्रोन को साइलेंट मोड में और 1200 मीटर की ऊंचाई पर ऑपरेट किया जाता है, जिससे इसे पहचानना मुश्किल हो जाता है। जरूरत पड़ने पर यह ड्रोन सीमा पार हमले करने की क्षमता से भी लैस है। कम आवाज और कम नजर आने वाली तकनीक की मदद से इन ड्रोन्स को चुपके से दुश्मन के घर में घुसाकर हमला करवाया जा सकता है।

पारम्परिक मिसाइलों और सटीक हथियारों से अलग यह कम लागत वाला ऐसा हथियार है, जिसे सीमा पर घुसपैठ करने वाले आतंकवादियों के समूह को निशाना बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। खासतौर से पैदल चल रहे सेना के जवानों के लिए डिजाइन किए गए इस ड्रोन में कम आवाज और इलैक्ट्रिक प्रोपल्सन है, जो इसे ‘साइलेट किलर’ बनाता है। 200 मीटर से अधिक की ऊंचाई पर इसकी आवाज का पता लगाना लगभग असंभव है। इसका इस्तेमाल कई तरह के ‘सॉफ्ट स्किन टारगेट’ के खिलाफ किया जा सकता है।

‘नागास्त्र-1’ की विशेषता यह भी है कि इसका टारगेट मिड-फ्लाइट के दौरान भी बदला जा सकता है और इसका बड़ा लाभ यही है कि इसके चलते अधिक कुशलता के साथ लक्ष्य को भेदने में आसानी रहती है। इस ड्रोन की एक और खास विशेषता पैराशूट रिकवरी मैकेनिज्म है, जो मिशन निरस्त होने पर गोला-बारूद को वापस ला सकता है और ऐसे में इसे कई बार इस्तेमाल किया जा सकता है। दरअसल यदि इस ड्रोन के इस्तेमाल के दौरान इसे टारगेट नहीं मिलता है या फिर मिशन को समाप्त कर दिया जाता है तो इस ड्रोन को वापस भी लिया जा सकता है। इसीलिए इसमें लैंडिंग के लिए पैराशूट सिस्टम दिया गया है, जिससे इसे कई बार उपयोग में लाया जा सकता है।

विदेशी स्रोतों पर निर्भरता कम करने के लिए ईईएल को ऐसे 480 लॉइटरिंग म्यूनिशन ड्रोन का ऑर्डर दिया गया और ईईएल द्वारा ‘नागास्त्र-1’ में 75 प्रतिशत से भी ज्यादा स्वदेशी सामग्री का इस्तेमाल करते हुए उच्च तकनीक के साथ इसका निर्माण शुरू किया गया और आखिरकार विदेशों से की जा रही खरीद के मुकाबले इसकी लागत काफी कम हुई। यह हथियार इजरायल और पोलैंड से आयात किए गए हवाई हथियारों से करीब 40 फीसदी सस्ता है। इस ड्रोन के परीक्षण चीन सीमा के पास लद्दाख की नुब्रा घाटी में किए गए थे और परीक्षण के दौरान दुनिया में पहली बार ऐसा हुआ था, जब एक से चार किलोग्राम वॉरहेड के साथ किसी मैन-पोर्टेबल लॉइटरिंग म्यूनिशन का सफल ट्रायल सम्पन्न हुआ।

नागास्त्र-1 ऐसा फिक्स्ड विंग्स ड्रोन है, जिसके पेट में विस्फोटक रखकर दुश्मन के अड्डे पर हमला बोला जा सकता है और इसके वैरिएंट्स को ट्राईपॉड या हाथों से उड़ाया जा सकता है। इसकी जीपीएस टारगेट रेंज 45 किलामीटर है और इसके विस्फोट से 20 मीटर का इलाका खत्म हो सकता है। ‘नागास्त्र-1’ की एक और विशेष बात यह है कि यह खास कैमरे से लैस है। इसमें नाइट विजन कैमरे भी लगे हैं, जिसके जरिये चौबीसों घंटे दुश्मन पर नजर रखी जा सकती है।

हमले के दौरान यह रीयल टाइम वीडियो बनाता है। रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक ‘नागास्त्र-1’ पाक अधिकृत कश्मीर में बहुत काम आएगा, जहां सैनिकों को भेजने का जोखिम नहीं उठाना पड़ेगा बल्कि नागास्त्र के जरिये आतंकियों के लांच पैड, ट्रेनिंग कैंप और ठिकानों को पलक झपकते ही खत्म किया जा सकेगा। रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि जिस तरीके से रूस-यूक्रेन और इजरायल-फिलिस्तीन की लड़ाई में ड्रोन का इस्तेमाल दिखा है, ऐसी परिस्थितियों में भारत के लिए ‘नागास्त्र-1’ गेमचेंजर साबित हो सकता है। एसपीएस एविएशन के मुताबिक कंपनी अब ‘नागास्त्र-2’ पर भी काम कर रही है, जो ‘नागास्त्र-1’ का हाईटेक और अपडेटेड वर्जन होगा।

‘नागास्त्र-2’ 25 किलोमीटर से अधिक की दूरी तय कर सकेगा और टारगेट के ऊपर 90 मिनट तक मंडरा सकेगा। इसके अलावा यह 2.2 किलोग्राम तक का वारहेड अथवा हथियार ले जाने में सक्षम होगा। बहरहाल, चूंकि ‘नागास्त्र’ ड्रोन्स राडार में भी पकड़ नहीं आते, इसलिए अब सेना किसी भी समय चुपके से आतंकियों और देश के दुश्मनों के ठिकानों पर बिना सैन्य जवानों की किसी हानि के आसानी से एयर स्ट्राइक कर सकती है यानी भविष्य में सर्जिकल स्ट्राइक्स के लिए फाइटर जेट्स की जरूरत नहीं पड़ेगी औरा यह काम ये ड्रोन ही आसानी से निपटा देंगे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

Topics: नागास्त्र-1ड्रोन को साइलेंट मोडनागास्त्र-2इजरायल-फिलिस्तीन की लड़ाई में ड्रोनNagastra-1silent mode for dronesNagastra-2drones in Israel-Palestine conflictभारतीय सशस्त्र बलindian armed forcesपाञ्चजन्य विशेष
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