इटली में जी7 शिखर सम्मेलन में चीन के विरोध में यूरोपीय देशों में गजब की एकजुटता दिखी है। सम्मेलन के दूसरे दिन जी-7 के मेजबान देश इटली ने अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन, जापान, जर्मनी तथा कनाडा के साथ एकजुट होकर चीन पर कड़े प्रतिबंध लगाने का मसौदा पेश किया। कम्युनिस्ट ड्रैगन के विरुद्ध दो प्रस्ताव मंजूर किए गए हैं। इनमें ऐसी कंपनियों पर पाबंदी की बात की गई है, जिन्होंने रूस को पाबंदियों से बचाने के लिए धोखे से तेल की ढुुलाई की है।
जी7 में दुनिया के सात सबसे बड़ी तथा विकसित अर्थव्यवस्थाओं वाले देश इस समय एकजुट होकर शिखर सम्मेलन में चीन के विरुद्ध कड़ाई को और बढ़ाने के मुद्दे पर सहमत दिखाई दे रहे हैं। विशेष रूप से फ्रांस, इटली, जर्मनी, ब्रिटेन के साथ अमेरिका का चीन की हरकतों पर लगाम कसने का प्रण आने वाले दिनों में विस्तारवादी कम्युनिस्ट देश के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है।
बयान कहता है कि दक्षिण चीन सागर में चीन के सैनिकों तथा समुद्री मिलिशिया का जिस प्रकार का खतरनाक रूप से प्रयोग करके अन्य देशों की गहन समुद्र में नौवहन की आजादी को बार-बार बाधित करना उचित नहीं है। ऐसी जोर जबरदस्ती वाली हरकतों का विरोध हर स्तर पर किया जाएगा।
प्रस्ताव में कड़े आर्थिक प्रतिबंधों की बात दिखाती है कि यूरोप अब चीन की हेकड़ी को सहज में मानने को तैयार नहीं है। ऐसी चीनी कंपनियों पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए जाने का वादा किया गया है जो यूक्रेन के विरुद्ध युद्ध में रूस की मददगार बनी हुई हैं। इसमें चीन के ऐसे वित्तीय संस्थानों पर भी कार्रवाई करने की बात है जो हथियारों के उपकरण और ऐसी तकनीकें रूस को मुहैया करा रहे हैं जिनसे रूस यूक्रेन के विरुद्ध और मारक हथियार बना सकता है।
सम्मेलन के दौरान जारी जी-7 नेताओं का संयुक्त वक्तव्य कहता है कि सदस्य देश यूक्रेन के विरुद्ध रूस की सहायता कर रहीं तीसरे देशों की संस्थाओं तथा व्यक्तियों की अपनी वित्तीय प्रणालियों तक पहुंच रोक देंगे।
चीन जिस प्रकार का ‘अनुचित व्यापारिक व्यवहार’ कर रहा है, यह कदम दरअसल उसके प्रति विरोध दर्ज कराने वाला माना जा रहा है। चीन के साथ इन देशों का जो व्यापार घाटा चल रहा है उसे भी कम करने की बात बलपूर्वक कही गई है। चीन को साफ कहा गया है कि वह निर्यात नियंत्रण के माध्यम से आपूर्ति शृंखलाओं को प्रभावित करने से बाज आए।
चीन विशेष रूप से चिप व इलेक्ट्रॉनिक्स के निर्माण में लगने वाले विशेष खनिजों पर एकतरफा निर्यात प्रतिबंध लगाए हुए है जिन्हें जी7 देश अनुचित बताते हैं। चीन की इस प्रकार की धूर्त चालों से अपने कारोबार को बचाने की बात भी जी7 का प्रस्ताव प्रमुखता से करता है।
यह बयान आगे कहता है कि दक्षिण चीन सागर में चीन के सैनिकों तथा समुद्री मिलिशिया का जिस प्रकार का खतरनाक रूप से प्रयोग करके अन्य देशों की गहन समुद्र में नौवहन की आजादी को बार-बार बाधित करना उचित नहीं है। ऐसी जोर जबरदस्ती वाली हरकतों का विरोध हर स्तर पर किया जाएगा।
जी7 में एक और महत्वपूर्ण बिंदु इस बयान में स्पष्ट हुआ है। इसमें गर्भपात के अधिकार को लेकर सदस्यों की प्रतिबद्धता अब नहीं रही। गत वर्ष जापान में जो शिखर सम्मेलन हुआ था उसमें जी7 नेताओं ने यह मुद्दा जोरशोर से उठाया था कि दुनिया में महिलओं की सुरक्षित एवं कानूनी गर्भपात तक पहुंच हो। लेकिन इस बैठक में उस मुद्दे को त्याग दिया गया। यह इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलनी के विरोध के बाद संभव हो पाया, इसलिए प्रस्ताव में भी इसका जिक्र नहीं किया गया।
टिप्पणियाँ