जून 2023 में कांग्रेस नेता राहुल गांधी अमेरिका दौरे पर थे और वहाँ पर उनका कार्यक्रम सैन फ्रांसिस्को में था। उन्होंने वहाँ पर कहा था कि वे नफरतों के बाजार में मुहब्बत की दुकान खोल रहे हैं। उसी आयोजन में कुछ खालिस्तानी समर्थक आए थे और उन्होंने खालिस्तान के समर्थन और भारत के विरोध में नारे लगाए थे। उसका वीडियो अभी भी देखा जा सकता है। उस आयोजन में उन नारों के बीच राहुल गांधी ने फिर से मुहब्बत की दुकान का उल्लेख किया था।
ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होंने न ही खालिस्तानी नारों का विरोध किया था और न ही भारत विरोधी नारों का हाँ, अपने सम्बोधन में उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री मोदी एवं भारत में कथित असहिष्णुता का अवश्य उल्लेख किया था और यह कहा था कि इन तमाम नफ़रतों के बाजार में वे मोहब्बत की दुकान खोल रहे हैं। यह उनकी राजनीतिक रणनीति हो सकती है, जो कि किसी भी राजनीतिक दल और उसके समर्थकों की हो सकती है। मगर जो एक बात खटकती है वह यह कि आखिर “गांधी” के नाम पर भारत में मोदी सरकार पर निशाना साधने वाला कांग्रेसी एवं कथित गाँधीवादी वर्ग खालिस्तानियों द्वारा महात्मा गांधी की प्रतिमा के अपमान पर चुप्पी क्यों साध जाता है?
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कॉंग्रेस पार्टी स्वयं को महात्मा गांधी का वैचारिक एवं स्वाभाविक उत्तराधिकारी मानती है। और इसी के साथ गाँधीवादी विचारकों का एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा है, जो यह मानता है कि महात्मा गांधी की उत्तराधिकारी कांग्रेस पार्टी ही हो सकती है। फिर भी पिछले दिनों कई ऐसी घटनाएं विदेशी जमीन पर हुई हैं, जिन पर न ही गांधी वादियों का विरोध सामने आया है और न ही कांग्रेस का।
वह है खालिस्तानी समर्थकों द्वारा महात्मा गांधी की प्रतिमाओं का लगातार विदेशी भूमि पर अपमान। हालांकि, अभी हाल ही में तो इटली में महात्मा गांधी की प्रतिमा को खालिस्तानी समर्थकों ने खंडित किया, जिसका उद्घाटन प्रधानमंत्री मोदी करने जा रहे थे। परंतु इस अपमान को लेकर गांधीवादियों से लेकर कांग्रेस के किसी भी नेता की प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है। क्या वह वर्ग मात्र इस कारण प्रसन्न हो रहा है कि नरेंद्र मोदी का विरोध हो रहा है? क्या नरेंद्र मोदी का विरोध महात्मा गांधी के अपमान से भी बड़ा मानक है? हालांकि, अब ऐसे प्रश्न उठने बंद हो जाने चाहिए, क्योंकि आज से तीन वर्ष पहले भी अमेरिका में महात्मा गांधी की प्रतिमा को खालिस्तान समर्थकों ने खंडित किया था।
आखिर ऐसा क्यों है कि भारत के ऐसी धरोहर की प्रतिमा के प्रति यह अपमान बहुत सहज होकर रह गया है? क्या महात्मा गांधी की प्रतिमा को खंडित करने वाले तत्वों को भी यह बात समझ आ गई है कि गांधीवादियों और कॉंग्रेस के लिए केवल नरेंद्र मोदी का विरोध ही मायने रखता है, महात्मा गांधी की प्रतिमा के साथ किया गया अपमान नहीं? महात्मा गांधी इस देश की सामूहिक धरोहर हैं। उन्होंने देश की आजादी की बात की थी, किसी दल विशेष के लोगों के लिए आजादी की बात उन्होनें नहीं की थी। इसलिए उनका अपमान पूरे भारत का अपमान है। और जब ऐसे अपमान पर भी उनकी ओर से कोई आवाज न आए, जो उस धरोहर का स्वाभाविक उत्तराधिकारी मानते हैं, तो कई प्रश्न अपना सिर बार-बार उठाते हैं।
सबसे पहले तो यही प्रश्न कि आखिर विदेशों मे इस भारतीय धरोहर के अपमान पर चुप्पी क्यों है? सबसे हैरान करने वाली बात यही है कि तीन वर्ष पहले अमेरिका में उत्तरी कैलिफोर्निया में महात्मा गांधी की जिस प्रतिमा को तोड़ा गया था, उसे भारत सरकार ने वर्ष 2016 में डेविस शहर को उपहार में दिया था और अब इस प्रतिमा को स्थापित किया जा रहा था तो भी भारत विरोधी एवं गांधी-विरोधी संगठनों ने इस प्रतिमा को स्थापित किए जाने का विरोध किया था।
यह घटनाएं कुछ वर्षों पूर्व पुरानी हैं, परंतु अभिव्यक्ति की आजादी और महात्मा गांधी के विचारों का उत्तराधिकारी स्वयं को मानने वाले लोगों का विरोध न ही तब सुनाई दिया जब भारत सरकार द्वारा महात्मा गांधी की प्रतिमा को भेजे जाने पर अमेरिका में विरोध हुआ और न ही तब कोई स्वर सामने आया जब वर्ष 2021 में उस प्रतिमा को खंडित किया गया। ऑर्गनाइज़ेशन फॉर माइनोरिटीज इन इंडिया नामक कट्टर संगठन, जिसकी प्रतिबद्धता खालिस्तानी समर्थकों के साथ दिखती है, महात्मा गांधी की इस प्रतिमा को स्थापित किए जाने का विरोध किया था और यह ऐसा संगठन है, जिसने वर्ष 2016 में “इंडिया अर्थात भारत” शब्द का ही विरोध किया था। इस संगठन के अनुसार कैलिफोर्निया स्कूल की कक्षा छ और सात की पुस्तकों में “इंडिया” शब्द को हटाकर “साउथ एशिया” किये जाने का अभियान चलाया गया था।
यह हैरानी की बात है कि भारत विरोधी, गांधी विरोधी अभियान विदेशों मे इतने वर्षों से चल रहे हैं, परंतु स्वयं को गांधी जी का स्वाभाविक उत्तराधिकारी मानने वाले लोगों के द्वारा इन सभी घटनाओं का विरोध तो छोड़ ही दिया जाए, उल्लेख तक नहीं हुआ। ऐसा क्यों? क्या उन्हें ऐसा लगता है कि इन विरोधों के चलते भारत की नरेंद्र मोदी सरकार कमजोर हो जाएगी और जिससे अंतत: उनका ही लाभ होगा?
ऐसी एक नहीं कई घटनाएं हुईं जैसे कि वर्ष 2022 में न्यूयार्क में एक मंदिर के पास महात्मा गांधी की प्रतिमा को अनावरण से पहले दो बार तोड़ा गया था। वर्ष 2022 में फरवरी में मैनहट्टन के यूनियन स्क्वेर में भी महात्मा गांधी की आदमकद प्रतिमा को तोड़ दिया गया था। वह प्रतिमा काफी पुरानी थी। इसी के साथ वर्ष 2020 में वॉशिंगटन में भारतीय दूतावास के सामने मौजूद बापू की प्रतिमा को नुकसान पहुंचाया गया। ऐसा कहा जाता है कि ये काम भी खलिस्तान समर्थकों ने किया था।
ऐसे में मोहब्बत की दुकान की बात करने वालों से यह प्रश्न उठता है कि क्या जब ऐसे लोग आपके सामने नारे लगा रहे थे, तो एक बार भी उस समृद्ध धरोहर का ध्यान आपके मन में नहीं आया, जिन्होनें अपना जीवन इस देश के लिए, इसकी स्वतंत्रता के लिए समर्पित कर दिया था?
इटली में महात्मा गांधी की प्रतिमा का तोड़ा जाना और इंदिरा गांधी की हत्या का महिमामंडन
हाल ही में कनाडा से लेकर अमेरिका तक पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या को लेकर जो घटनाएं हुई हैं, वे और भी खतरनाक हैं और उस पर भी इंदिरा गांधी की विरासत का दावा करने वाले हर वर्ग की चुप्पी और भी खतरनाक है। कनाडा में ऑपरेशन ब्लू स्टार की बरसी पर खालिस्तान समर्थकों का जोश देखने लायक था। कनाडा में एक झांकी निकाली गई, जिसमें इंदिरा गांधी के पुतले को सिख अंगरक्षक गोली मारते दिखाए जा रहे हैं। अब प्रश्न यह उठता है कि यह झांकी निकालकर किसे डराया जा रहा है?
कनाडा के सांसद चंद्र आर्य ने इस घटना पर अपना विरोध व्यक्त करते हुए एक्स पर पोस्ट किया। उन्होंने लिखा, “वैंकूवर में खालिस्तान समर्थक हिंदू भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के शरीर पर गोलियों के निशान और हत्यारे बने उनके अंगरक्षकों के हाथों में बंदूकें लिए पोस्टर लेकर फिर से हिंदू-कनाडाई लोगों में हिंसा का डर पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। यह कुछ साल पहले ब्रैम्पटन में इसी तरह की धमकियों और कुछ महीने पहले सिख फॉर जस्टिस के पन्नू द्वारा हिंदुओं से भारत वापस जाने की अपील के बाद की धमकियों के आगे की कार्यवाही है। मैं फिर से कनाडा में कानून प्रवर्तन एजेंसियों से तत्काल कार्रवाई करने का आह्वान करता हूं।”
उन्होंने कहा कि यदि इसे रोका नहीं गया तो इसके असली परिणाम भी निकल सकते हैं और उन्होंने साफ कहा कि यह हिंदुओं को डराने की कोशिश है क्योंकि इंदिरा गांधी के माथे पर बिंदी यह स्पष्ट संदेश है कि निशाना कौन है?
परंतु भारत में न ही इस घटना का और उसके बाद इटली में महात्मा गांधी की प्रतिमा को खालिस्तानियों ने तोड़ दिया, उसका भी कोई विरोध नहीं आया है। ऐसे में प्रश्न यह उठ खड़ा होता है कि क्या देश तोड़ने वाले तत्वों के सामने राजनीतिक विरोध भारी पड़ रहा है? आखिर क्यों देश की पूर्व प्रधानमंत्री एवं देश की स्वतंत्रता के सबसे बड़े नायकों में से एक महात्मा गांधी के निरंतर अपमान पर वह वर्ग चुप्पी साधे बैठा है, जो स्वयं को इन नेताओं का स्वाभाविक उत्तराधिकारी मानता है।
जबकि यह भी सत्य है कि भारत की स्वतंत्रता के नायक पूरे देश के नायक हैं, क्योंकि स्वतंत्रता के समय किसी ने भी दलीय विभाजन की राजनीति के विषय में न ही सोचा था और न किसी को यह भान रहा होगा कि स्वतंत्रता के उपरांत उन्हें मात्र एक दल तक सीमित करने का कुप्रयास किया जाएगा? प्रश्न तो उठेगा ही कि खालिस्तानी समर्थकों द्वारा महात्मा गांधी एवं इंदिरा गांधी के इस निरंतर अपमान पर देश में इतना सन्नाटा क्यों है?
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