हिंदू त्योहारों के समय पर्यावरण की दुहाई देने वाले कथित सामाजिक कार्यकर्ता और ‘पेटा’ के कर्ताधर्ता बकरीद पर करोड़ों पशुओं की कुर्बानी पर ऐसे चुप रहते हैं, मानो उन्हें कुछ दिखाई ही नहीं देता है।
इस समय बकरीद को लेकर पूरे देश में पशु बाजार लगे हैं। ये बाजार नियमित स्थानों के अलावा उन खाली सरकारी जगहों पर भी लगे हैं, जहां के आसपास मुसलमानों की संख्या ठीक—ठाक है। दिल्ली के जाफराबाद में तो मेट्रो स्टेशन के नीचे पशु मेला लगा दिया गया है। बिहार, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों के पशु मेलों में ऊंट भी देखे जा रहे हैं। राजस्थान, गुजरात जैसे राज्यों में ऊंट तो हो सकते हैं, लेकिन जब बिहार जैसे राज्य में ऊंट मिलते हैं, तो आश्चर्य होता है। इसका एक मतलब यह भी है कि ऊंट सहित अन्य पशुओं की जबर्दस्त तस्करी हो रही है। 11 जून को गोपालगंज पुलिस ने एक ट्रक को पकड़ा। इस ट्रक से 19 ऊंट बरामद हुए थे। इन्हें बड़ी बेरहमी से ठूंस कर रखा गया था। ये सारे ऊंट दुर्लभ प्रजाति के थे जो राजस्थान से लाए गए थे और उन्हें किशनगंज के रास्ते आगे ले जाने की तैयारी थी। इन ऊंटों की कीमत 30 से 40 लाख रुपए बताई जा रही है। इन ऊंटों को राजस्थान सरकार संकटग्रस्त प्रजाति के रूप में घोषित कर चुकी है। इनके संरक्षण के लिए तमाम कोशिशें भी की जा रही हैं। पुलिस ने ट्रक को जब्त कर लिया है। ट्रक के साथ मथुरा के रहने वाले जुनैद और शाहनवाज तथा नूँह मेवात के निवासी जुनैद खान और साहिल को भी गिरफ्तार किया गया है।
*पूर्णिया प्रमंडल के रास्ते लगातार हो रही है पशु तस्करी*
बिहारवासियों के लिए यह कोई बड़ी घटना नहीं है, क्योंकि वे ऐसा देखने को अभ्यस्त हैं। अमूमन हर दिन गो तस्करी की घटना सामने आती है। यह यहां का नियमित मामला है और तस्करों और कसाइयों के लिए एक आकर्षक व्यवसाय भी। एक अनुमान के अनुसार हर दिन लगभग 20 हज़ार से 30 हज़ार गायों की तस्करी कर उन्हें बांग्लादेश भेजा जाता है। इसमें सबसे प्रमुख मार्ग किशनगंज का होता है। किशनगंज से चिकेन नेक की दूरी मात्र 28 किलोमीटर है। बकरीद के समय यह गतिविधि और बढ़ जाती है।
ऊंटों की तस्करी से ऊंटों की संख्या में लगातार कमी हो रही है। एक रिपोर्ट के अनुसार 2012 में भारत में 4 लाख ऊंट थे। 2019 में उनकी संख्या घटकर ढाई लाख हो गई। एक अनुमान के मुताबिक अब भारत में लगभग 2 लाख ऊंट बचे हैं। ऊंटों की संख्या में हो रही कमी के कारण राजस्थान सरकार ने 2015 में एक कानून पारित किया। यह कानून रेगिस्तान के किसी भी जानवर को अवैध रूप से बाहर ले जाने पर रोक लगाता है। ऊंट के वध के लिए कड़े प्रावधान किए गए हैं, फिर भी तस्कर ऊंटों को लगातार बांग्लादेश भेज रहे हैं।
गत 15 वर्ष से पूर्णिया प्रमंडल ऊंट तस्करों का केंद्र बन गया है। 2020 में बकरीद के समय 23 ऊंटों को किशनगंज में पकड़ा गया था। तस्करों से जब कड़ाई से पूछताछ की गई तो उन्होंने कई सनसनीखेज खुलासे किए थे। उनकी निशानदेही पर पास के गांव खुदा और अंबरिया से 16 ऊंट और बरामद किए गए। पुलिस ने इस तस्करी के मामले में 21 लोगों को गिरफ्तार किया था।
2021 में भी 11 ऊंटों को अररिया पुलिस ने चंद्रदेई गांव के पास जब्त किया था। ये ऊंट ट्रक पर लदे हुए थे। इनमें एक की मौत हो गई थी, जबकि अन्य की हालत भी नाजुक थी। सभी ऊंटों के दोनों पैर बंधे थे और शरीर में कई स्थानों पर जख्म के निशान थे। इन्हें इस प्रकार ठूंस कर रखा गया था कि वे हिलडुल भी नहीं कर पा रहे थे। 2021 में ही अररिया के पलासी अंतर्गत डेहती में पुलिस ने 17 ऊंटों को पकड़ा था। ऊंट तस्करों की हिम्मत इतनी बढ़ी हुई थी कि वे पुलिस टीम को ही घेरने का प्रयास कर रहे थे।
वर्ष 2022 में भी बकरीद के समय 12 ऊंटों को पूर्णिया के अमौर थाना अंतर्गत बड़ी ईदगाह के समीप पकड़ा गया था। इसमें भी एक ऊंट मरा हुआ था और 11 ऊंट गंभीर रूप से घायल और बीमार थे। तस्कर इन्हें क्रूरतापूर्वक, भूखे प्यासे एक छोटे ट्रक में भरकर ले जा रहे थे। तस्करों ने ऊंट छोड़ने के लिए 5 से 20 लाख रुपए तक की रिश्वत भी देनी चाहिए थी। इस मामले में अमौर के तीन तस्कर उस्मान, इरफान कुरैशी और नानू कुरैशी तथा उत्तर प्रदेश के तीन तस्कर में गिरफ्तार किए गए थे।
*बकरीद के समय बांग्लादेश में होती है ऊंटों की बड़ी मांग*
इस्लामिक मामलों के जानकार और सामाजिक कार्यकर्ता हाजी मोहम्मद अफजल इंजीनियर ने बताया कि अपने को श्रेष्ठ साबित करने के लिए ऊंटों की कुर्बानी देने की होड़ बढ़ी है। इस कारण बांग्लादेश में बकरीद के समय ऊंट की मांग काफी बढ़ जाती है।
होली, दीपावली जैसे हिंदू त्योहारों के समय जो लोग पर्यावरण की बात करते हैं, मानवता की बात करते हैं, जीव पर दया करने की बात करते हैं, ऐसे लोग बकरीद में करोड़ों पशुओं की कुर्बानी पर चुप क्यों रहते हैं। कहां हैं, वे पेटा वाले, जो अपने को बड़े सामाजिक सुधारक मानते हैं!
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