गत जून को चंडीगढ़ में ‘पाञ्चजन्य’ और ‘आर्गनाजइर’ के पाठक सम्मेलन के अंतर्गत प्रबुद्ध नागरिक संवाद कार्यक्रम आयोजित हुआ। इसका विषय था-‘राष्ट्रीय विमर्श और पत्र-पत्रिकाएं।’
इसे संबोधित करते हुए ‘आर्गनाजइर’ के संपादक प्रफुल्ल केतकर ने कहा कि भारत के अतिरिक्त विश्व में जहां भी आक्रांता पहुंचे, वहां की स्थानीय सभ्यता 70 से 80 वर्ष में ध्वस्त हो गई। वहीं हमारे देश में मुस्लिम, ईसाई, पारसी, यहूदी समुदाय के लोग आए और यहां आकर रचे-बसे, लेकिन अपनी ज्ञान परंपरा, धर्म संस्कृति और सभ्यता से जुड़े रहे।
भारत की इसी ज्ञान परंपरा और सभ्यता की बेजोड़ ताकत को तोड़ने के लिए ब्रिटिश सत्ता ने निरंतर षड्यंत्रों के तहत क्षति पहुंचाने का प्रयास किया। भारत की संस्कृति विलक्षण है, जो विविधताओं को उत्सव के रूप में स्वीकार करती है। हमने विविधता को भेद नहीं माना।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ.भोला नाथ गुर्जर ने कहा कि प्राचीन समय से ही देश में संवाद की एक अनोखी परंपरा रही है। इस अवसर पर चंडीगढ़ के अनेक गणमान्यजन उपस्थित रहे।
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