महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव के जो परिणाम आए हैं, वे चुनावी पंडितों को भी हैरान करने वाले हैं। राज्यभर में अभूतपूर्व विकास कार्य होने के उपरांत भी भाजपा के नेतृत्व वाली महायुति को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा है। उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा, ‘‘हम विमर्श को सही शक्ल नहीं दे पाए।’’ अनेक राजनीतिक विश्लेषक भी फडणवीस के मत से सहमत हैं। वहीं कुछ पत्रकार मानते हैं कि भाजपा ने काम तो बहुत किया, पर उनको सही तरीके से लोगों के सामने नहीं रख पाई, जबकि भाजपा के ही कुछ कार्यकर्ता यहां तक कहते हैं कि कहीं-कहीं संवादहीनता का भी नुकसान हुआ है।
पिछले कुछ वर्षों में यह भी देखा गया है कि जैसे ही महाराष्ट्र में भाजपा महायुति की सरकार आती है, तुरंत मराठा आरक्षण का आंदोलन शुरू हो जाता है। आश्चर्य की बात यह है कि मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के कार्यकाल (2014-19) में मराठों को आरक्षण देने का निर्णय लिया गया था। 2019 में भाजपा से नाता तोड़कर जनादेश के विपरीत मुख्यमंत्री बनने वाले उद्धव ठाकरे द्वारा न्यायालय में ठीक से पक्ष न रखने के कारण मराठा आरक्षण न्यायालय में निरस्त हो गया था, लेकिन आंदोलनकारी शांत रहे। जैसे ही दुबारा भाजपा महायुति सत्ता में आई, फिर से इस आंदोलन का शिगूफा छोड़ दिया गया।
इस बार मराठा आंदोलन मनोज जरांगे नामक एक व्यक्ति को आगे करके चलाया गया। सोशल मीडिया में इस तरह की बातें खूब चलीं कि मनोज के संबंध शरद पवार से हैं। मनोज जरांगे ने तीखी भाषा का प्रयोग कर आरक्षण के नाम पर कुछ जातियों को भड़काया। इस कारण समाज में दरार पैदा हो गई। मध्य महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में यह सामाजिक दरार बहुत ही गहरी है। वर्तमान राज्य सरकार ने मराठाओं को आरक्षण भी दे दिया है। इसके बावजूद आंदोलन समाप्त नहीं हुआ है। बीड जिले में दंगे करवाने के प्रयास हुए। लोकसभा चुनाव के दौरान भी बीड जिले में तनाव रहा।
केंद्रीय मंत्री रावसाहेब दानवे की हार मराठा आरक्षण आंदोलन के कारण हुई है। दानवे को हराने वाले कांग्रेस प्रत्याशी कल्याण काले ने कहा है कि मराठा आरक्षण आंदोलन के कारण उन्हें चुनाव में फायदा मिला है। उल्लेखनीय है कि रावसाहेब दानवे आज तक एक भी चुनाव नहीं हारे थे। सुधीर मुनगंटीवार, प्रख्यात वकील उज्ज्वल निकम जैसे भाजपा नेता जाति के आधार पर मत पड़ने के कारण ही हारे हैं। जिस लोकसभा क्षेत्र में जिस भी जाति की संख्या अधिक है, उसे भाजपा के विरोध में उकसाने में कांग्रेस सफल रही।
अन्य राज्यों की तरह महाराष्ट्र में भी मुसलमानों ने भाजपा के विरोध में जम कर मतदान किया। उदाहरण के तौर पर धुले लोकसभा क्षेत्र को ले सकते हैं। यहां भाजपा प्रत्याशी डॉ.सुभाष भामरे को पांच विधानसभा क्षेत्रों से 1,90,000 के करीब बढ़त मिली थी। वहीं कांग्रेस की शोभा बच्छाव को केवल मालेगांव मध्य विधानसभा क्षेत्र, जो 90 प्रतिशत मुस्लिम जनसंख्या वाला है, में 1,94,000 मतों की बढ़त मिली। डॉ. भामरे केवल इसी मुस्लिम बहुल क्षेत्र के मतदान के कारण 3,831 मतों से हार गए।
इस बार यह भी देखा गया कि भाजपा के पन्ना प्रमुखों के सामने कई तरह की समस्याएं आईं। कुल मिलाकर कह सकते हैं कि महाराष्टÑ ने जिस प्रकार विकास के साथ खड़े होकर देश को दिशा दिखानी थी, उसमें इस राज्य ने निराश किया।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
टिप्पणियाँ