लखनऊ । एक जुलाई से देश में नए आपराधिक कानून लागू होंगे। सर्वाधिक आबादी के नाते उत्तर प्रदेश में आपराधिक मुकदमों की संख्या भी सर्वाधिक है। स्वाभाविक रूप से इसका सबसे अधिक लाभ भी उत्तर प्रदेश को मिलेगा। लॉ एंड ऑर्डर जो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सर्वोच्च प्राथमिकता है। पिछले दिनों मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने नए कानून लागू करने में हुई प्रगति की समीक्षा की। इनको लागू करने और इनसे संबंधित सभी स्टेक होल्डर्स को इनके प्रति जागरूक करने के बाबत जरूरी निर्देश भी दिए। ये बदलाव विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश की अवधारणा के अनुरूप है।
कुछ महत्वपूर्ण बदलाव
🔹नए क्रिमिनल जस्टिस में राजद्रोह का कानून खत्म कर दिया गया है। पर भारतीय संप्रभुता का किसी भी तरह विरोध करने वालों के लिए कड़े दंड का प्रावधान किया गया है।
🔹आतंकवाद जो देश की प्रमुख समस्याओं में से एक है उसे पहली बार साफ तौर पर परिभाषित करते हुए दंड की व्यवस्था की गई है।
🔹इसी तरह संगठित अपराध और मॉब लीचिंग को पहली बार परिभाषित किया गया है।
🔹हाल के कुछ वर्षों में महिलाओं के लिए चेन और मोबाइल छीनैती कानून व्यस्था के लिए बड़ी चुनौती के रूप में उभरा है। कभी कभी तो इस छीना झपटी में महिला को गंभीर चोट आती है। ऐसी चोट जो जानलेवा हो सकती है या अपंगता की वजह। इसके लिए भी पहली बार नए कानून लाए गए हैं।
🔹लालच, दबाव और डर की वजह से गवाहों का मुकरना आम बात रही है। नए कानूनों में उनकी सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम किया गया है। साथ ही तकनीक के जरिए जिस तरह परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर जोर दिया गया है। उससे गवाह मुकर भी नहीं पाएंगे। इससे पुलिस भी पूरी प्रक्रिया के दौरान जवाबदेह बनेगी। वह अपने अधिकारों का बेजा इस्तेमाल नहीं कर सकेगी।
कुल मिलाकर 313 धाराओं में बदलाव किए गए हैं। जो धाराएं अप्रासंगिक हो गई थीं उनको हटा दिया गया। कुछ में नई टाइमलाइन भी जोड़ी गई है। इन बदलावों से देश गुलामी के प्रतीकों से मुक्त होगा। क्रिमिनल जस्टिस के लिहाज से यह एक नए युग की शुरुआत होगी।
उल्लेखनीय है कि अपनी समीक्षा में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था ,”प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने 15 अगस्त 2023 को स्वाधीनता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से देश के सामने पंच प्रण लिए थे, इनमें से एक प्रण था – गुलामी की सभी निशानियों को समाप्त करना। इसी प्रण को पूरा करने के लिए संसद ने अंग्रेज़ों द्वारा बनाए गए इंडियन इन कानूनों को सुलभ,पारदर्शी और जवाबदेह बनाने के लिए बदल दिया गया”।
इन जटिलताओं की वजह से न्याय पाने में दशकों लग जाते हैं। कभी कभी तो पीढियां गुजर जाती। यह न्याय के सार्वभौमिक सिद्धांत नेचुरल जस्टिस के खिलाफ है। नेचुरल जस्टिस का सिद्धांत यह है कि,”न्याय होना ही नहीं चाहिए। ऐसा लगे भी कि न्याय हुआ है”। कानून की जटिलताएं ऐसा होने नहीं देती। लिहाजा नेचुरल जस्टिस की अवधारणा मात्र अवधारणा ही रह जाती है।
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