चीन तिब्बत पर गलत तरीके से कब्जा किए बैठा है इस बात को पूरी दुनिया जानती है। कोई उसके खिलाफ बोलने की हिम्मत नहीं कर पा रहा है। लेकिन, अब कनाडा की जस्टिन ट्रुडो सरकार ने तिब्बत को लेकर कनाडा की संसद में एक प्रस्ताव पारित किया है। इसमें कहा गया है कि तिब्बत को ये तय करने का पूरा अधिकार है कि वो किसके साथ रहना पसंद करता है।
क्या है पूरा मामला
मामला कुछ यूं है कि एक कनाडाई सांसद हैं ब्रुनेले ड्युसेपे, जिन्होंने कनाडा के हाउस ऑफ कॉमंस यानि कि वहां की संसद में तिब्बत की समस्या को लेकर एक प्रस्ताव पेश किया। इस प्रस्ताव में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि तिब्बतियों को पूरी तरह से अधिकार है कि वे स्वंतत्रता पूर्वक आर्थिक, धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृति नीतियों को चुन सकें। इस पर किसी बाहरी ताकत को किसी भी तरह का दखल देने का अधिकार नहीं होना चाहिए।
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इसके साथ ही प्रस्ताव में ये भी कहा गया है कि चीनी सरकार को दलाई लामा के उत्तराधिकारी चुनने की प्रक्रिया में दखल देने का कोई अधिकार नहीं है। प्रस्ताव के जरिए कनाडा ने तिब्बतियों के साथ मिलकर चीन के उस दुष्प्रचार से निपटने में मदद करेंगे, जिसमें वो ये कहता है कि तिब्बत उसका हिस्सा है।
7 दशक से तिब्बत पर कब्जा जमाए है चीन
उल्लेखनीय है कि चीन की कम्युनिस्ट सरकार बीते 7 दशक से तिब्बत पर कब्जा जमाए हुए है। चीनी पीएलए लगातार तिब्बती बौद्धों पर अत्याचार कर रही है। चीनी अत्याचार का ही परिणाम है कि तिब्बती धर्मगुरू दलाई लामा निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे हैं। चीन तिब्बती बौद्धों का लगातार ‘सिनिसाइजेशन’ कर रहा है।
भारत तिब्बत की स्वतंत्रता का रहा है समर्थक
भारत सरकार लंबे वक्त से स्वतंत्र तिब्बत का समर्थक रहा है। इसको लेकर कई बार भारत सरकार ने आवाज भी उठाई है। भारत के हिमाचल प्रदेश में तिब्बती लोगों का एक प्रसिद्ध संस्थान भी है, जहां से तिब्बत के लोग अपने परंपरा को बचाए हुए हैं। भले ही खालिस्तानी आतंकी संगठन हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के बाद से भारत और कनाडा के रिश्तों में थोड़ी तल्खी आई हो, लेकिन फिर भी तिब्बत के मुद्दे पर कनाडा और भारत का रुख एक ही प्रतीत होता है।
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