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डर बढ़ा, वोट घटा

42 लोकसभा सीटों वाले इस राज्य में तृणमूल कांग्रेस को 22 सीटें मिली थीं। वहीं कांग्रेस पार्टी केवल दो सीटों पर सिमट कर रह गई थी। जबकि 2014 में दो सीटें जीतने वाली भाजपा ने यहां पर 18 सीटें जीती थीं।

by पाञ्चजन्य ब्यूरो
Jun 12, 2024, 03:47 pm IST
in विश्लेषण, पश्चिम बंगाल
भाजपा समर्थकों के साथ इस तरह की जाती है मारपीट।

भाजपा समर्थकों के साथ इस तरह की जाती है मारपीट।

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प. बंगाल में भाजपा का प्रदर्शन पहले की तुलना में गिरा है। लोकसभा चुनावों में 2019 के मुकाबले इस बार भाजपा की छह सीटें कम हो गई। 2019 के चुनाव में 42 लोकसभा सीटों वाले इस राज्य में तृणमूल कांग्रेस को 22 सीटें मिली थीं। वहीं कांग्रेस पार्टी केवल दो सीटों पर सिमट कर रह गई थी। जबकि 2014 में दो सीटें जीतने वाली भाजपा ने यहां पर 18 सीटें जीती थीं।

प. बंगाल में मुसलमानों की आबादी लगभग 35 प्रतिशत है। बंगाल में हुए कुल मतदान में महिलाओं की संख्या पुरुषों से कहीं अधिक रही। मतदान करने में महिलाओं की संख्या पुरुषों से अधिक रही। पुरुषों का 82.24 मतदान प्रतिशत रहा, वही, 82.35 प्रतिशत महिलाओं ने मतदान किया। जानकार मानते हैं कि प. बंगाल में सहित कई राज्यों में कट्टरता के आधार पर गोलबंदी भाजपा विरोधी मतों को एकजुट करने वाला प्रमुख कारण है।

प. बंगाल में लगातार बढ़ रही मुस्लिम आबादी ने एकमुश्त होकर तृणमूल कांग्रेस को वोट दिया। ममता बनर्जी ने अपनी सभी चुनावी सभाओं में लगातार यह बयान दिया कि वह किसी भी सूरत में प. बंगाल में सीएए और एनआरसी लागू नहीं होने देंगी। मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति करने वाली ममता बनर्जी ने मुसलमानों को लुभाने वाले सभी दावे अपने चुनावी भाषणों में किए।

प. बंगाल पूर्वोत्तर का प्रवेश द्वार भी है। अगर यहां पर स्थितियां ऐसी ही रही तो पूर्वोत्तर दूर होने लगेगा। प. बंगाल की कुल मुस्लिम आबादी में बड़ी संख्या में बांग्लादेशी से आए घुसपैठियों की है। बंगाली मुसलमानों की घुसपैठ के चलते यहां की जनसांख्यिकी स्थितियां बिल्कुल बदल चुकी हैं। कई जिले मुस्लिम बहुल हो चुके हैं। मुसलमान यहां पर करीब 17 सीटों पर निर्णायक स्थिति में हैं। इसका लाभ तृणमूल को मिला। एक और बड़ा कारण प. बंगाल में भाजपा को कम सीटें मिलने का कारण रहा वह था ‘डर’। जब भी प. बंगाल में राजनीति की बात होती है तो पहले वहां की सियासी हिंसा की चर्चा होती है। प. बंगाल में हिंसा का नाता चुनाव से नहीं राजनीति से हो गया है।

आजादी के बाद से बंगाल ने कई राजनीतिक दलों के नेतृत्व वाली सरकारें देखी हैं। जिनमें दो दशकों से अधिक समय तक शासन करने वाली कांग्रेस और तीन दशकों से अधिक समय तक शासन करने वाली भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के नेतृत्व वाला वाम मोर्चा शामिल हैं। वर्तमान में पश्चिमी बंगाल में ममता बनर्जी की अगुआई वाली तृणमूल कांग्रेस की सरकार है। ममता के राज में राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं के बीच, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में, हिंसक झड़पों की संस्कृति पिछले कुछ वर्षों में ही बहुत ज्यादा पनपी है। हर चुनाव में यहां हिंसा होती है। प. बंगाल में 2019 के लोकसभा चुनावों और उसके बाद हुए राज्य में हुए विधानसभा चुनावों के हिंदुओं और भाजपा कार्यकतार्ओं के साथ जमकर हिंसा की गई थी। कितने ही भाजपा कार्यकतार्ओं की हत्या कर दी गई थी। तृणमूल के गुंडों के खौफ के चलते भी भाजपा समर्थक कम संख्या में मतदान के लिए निकले।

इसके अलावा इंडी गठबंधन में शामिल होने के बाद भी ममता बनर्जी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन कर चुनाव नहीं लड़ा। इसका फायदा ममता को तो मिला लेकिन कांग्रेस को नहीं। कांग्रेस और ममता दोनों का मतदाता एक ही है। ममता की सरकार होने के चलते मुस्लिम मतदाताओं ने तृणमूल को वोट किया लेकिन कांग्रेस को यहां पर बस ही एक ही सीट मिली। कांग्रेस भी तृणमूल के वोट बैंक में सेंध नहीं लगा सकी। राज्य से मतदाताओं को डराने, उनके पहचान पत्र छीनने और मतदान को प्रभावित करने के कई वीडियो सोशल मीडिया पर चर्चा में रहे। भाजपा ने राज्य में अच्छा जनाधार बनाया है किन्तु पिछले लोकसभा चुनाव के बाद विधानसभा और पंचायत चुनाव में उत्तरोत्तर बढ़ती हिंसा और भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्याओं ने राज्य में निडर मतदान और निर्बाध निर्वाचन को लेकर प्रश्न चिह्न खड़े कर दिए हैं।

Topics: dent in Trinamool's vote bankमुस्लिम बहुलपाञ्चजन्य विशेषMuslim majorityबंगाली मुसलमानबांग्लादेशी से आए घुसपैठिएतृणमूल के वोट बैंक में सेंधBengali Muslimsinfiltrators from Bangladesh
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