यूरोप में इन दिनों राजनीति पूरे उफान पर है। वहां यह उफान यूरोपीय संसद के चुनावों के लेकर दिखाई दे रहा है। 6 से 9 जून को सम्पन्न हुए इन चुनावों में फ्रांस की दक्षिणपंथी पार्टी का जीतना वामपंथियों को बिल्कुल रास नहीं आया है। इनमें मुस्लिम झुकाव वाले सेकुलरों की अच्छी—खासी तादाद है। दक्षिणपंथी पार्टी की जीत से इन्हें इतनी चिढ़ मची है कि ये लोग फ्रांस को सिर पर उठाए हुए हैं। राजधानी पेरिस सहित अनेक शहरों की सड़कों पर उपद्रव का माहौल बना हुआ है। दक्षिणपंथ के इस उभार से चिढ़े वामपंथियों को अब ‘लोकतंत्र खतरे में’ दिख रहा है।
यूरोपीय संघ के इस संसदीय चुनाव में दक्षिणपंथी मानी जाने वाली नेशनल रैली यानी रैसेम्बलमेंट नेशनल, आरएन ने राष्ट्रपति इमानुएल मैक्रों की रेनेसां पार्टी को से 31.5 प्रतिशत वोट अधिक लेकर जीत दर्ज की है। इस खबर के मिलते ही पेरिस की सड़कों पर वामपंथियों की भीड़ उतर आई। वहां जमकर प्रदर्शन किया गया और लोकतंत्र की दुहाई दी गई।
ये प्रदर्शनकारी फ्रांस की संसद के बाहर इकट्ठे हो गए और चुनाव में जीती नेशनल रैली के विरुद्ध नारेबाजी की। हैरानी तो तब हुई जब प्रदर्शनकारियों ने शोर—शराबे के बीच फिलिस्तीन समर्थन के नारे लगा दिए। नेशनल रैली के विरुद्ध रेनेस, नैनटेस तथा रूएन में वामपंथी इकट्ठे हुए। बताते हैं, रेनेस में 2,500 से ज्यादा लोग इकट्ठे थे और दक्षिणपंथ के इस उभार पर अपना आक्रोश जता रहे थे। इनमें वामपंथी मजदूर संघों के कार्यकर्ता भी शामिल थे।
यूरोपीय संघ के इस संसदीय चुनाव में दक्षिणपंथी मानी जाने वाली नेशनल रैली यानी रैसेम्बलमेंट नेशनल, आरएन ने राष्ट्रपति इमानुएल मैक्रों की रेनेसां पार्टी को से 31.5 प्रतिशत वोट अधिक लेकर जीत दर्ज की है। इस खबर के मिलते ही पेरिस की सड़कों पर वामपंथियों की भीड़ उतर आई। वहां जमकर प्रदर्शन किया गया और लोकतंत्र की दुहाई दी गई।
इसी तरह नैनटेस में रैली निकाली गई जिसमें एक हजार से ज्यादा लोगों ने दक्षिणपंथ के विरुद्ध नफरत उगलते हुए नारेबाजी की। वामपंथी प्रदर्शनकारियों ने हाथों में बैनर ले रखे थे जिन पर लिखा था—‘क्रांति या बर्बरता’!
रूएन में भी सैकड़ों वामपंथियों ने नेशनल रैली के विरुद्ध प्रदर्शन मोर्चा निकाला। ऐसा उपद्रव मचाया कि पुलिस को हालात पर काबू करने के लिए काफी प्रयास करना पड़ा। अनेक छात्रों ने पेरिस के एक स्कूल में जमा होकर यूरोपीय संसद में दक्षिणपंथी पार्टी की विजय के प्रति विरोध दर्ज कराया।
इधर 9 जून को जब फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल मैक्रों ने अपने देश की संसद के निचले सदन को भंग किया और 30 जून को चुनाव कराने की औचक घोषणा की तो उसके पीछे यूरोपीय संसद के चुनावों में उनकी हार को बताया जा रहा है। वहां की दक्षिणपंथी पार्टी के ऐसे उभार ने उन्हें भी हैरान किया हुआ है। मैक्रों यूरोप समर्थक मध्यमार्गी माने जाते हैं।
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