भारत के पड़ोस में जिन्ना के कंगाल देश में जो न हो सो कम है। वहां रोजी-रोटी के तो लाले पड़े ही हुए हैं, इस्लामवादी जिहादियों ने भी सरकार की नाक में दम किया हुआ है। सीमांत इलाकों में तो टीटीपी जैसे तालिबानी जिहादी गुट की समानांतर सरकार चल रही है। हाल में मिली एक जानकारी तो और भी चौंकाने वाली है। पता चला है कि बलूचिस्तान प्रांत की सरकार अपने यहां खदानों की हिफाजत अब उन्हीं से करा रही है जिनसे उन खदानों को खतरा है यानी सरकार आतंकी गुटों को ‘हफ्ता’ देकर खनन उद्योग को ‘सुरक्षित’ रख रही है!
कौन से आतंकवादी गुट हैं जिनसे बलूचिस्तान की खानों को खतरा है और जिनसे उन्हें बचाने को सरकार उन्हीं गुटों को हफ्ता दे रही है? ये गुट हैं प्रतिबंधित बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी और टीटीपी! उन्हें हफ्ता दिया जा रहा है जिससे वे वहां काम करने वाली खदान कंपनियों के मजदूरों और अफसरों को नुकसान न पहुंचाएं। यहां बता दें कि बलूचिस्तान में हमाई, माच, डेगारी, चामलंग, जियारत तथा अबेगम नामक स्थानों पर कोयले की खदानें मौजूद हैं जिन्हें बचाए रखने के लिए प्रांतीय सरकान ने यह जुगत भिड़ाई है।
बताया जाता है इन खदानों में करीब 21 करोड़ टन कोयला जमा है। चामलांग की कोयला खदानें 60 किमी. लंबी हैं जिनमें बिटुमिन कोयला भरा पड़ा है। अकेले यहां की खदानों में 60 लाख टन कोयला मौजूद है।
खदानों की हिफाजत के लिए पाकिस्तान के अर्धसैनिक बल फ्रंटियर कोर को हर टन पर 240 रुपए मिलते हैं। लेकिन इसके उलट चरमपंथी संगठन बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी को खदानों और वहां से निकलने वाले ट्रकों की हिफाजत के नाम पर 260 रुपए प्रति टन के हिसाब से हफ्ता दिया जा रहा है।
ऐसे में प्रांतीय सरकार हरसंभव कोशिश कर रही है कि खदानों में काम कर रहीं कंपनियों के मजदूर बेखौफ रहें और काम करते रहें। वजह यह है कि बलूचिस्तान प्रांत की अर्थव्यवस्था अधिकांशत: खदान क्षेत्र से हो रही आय पर टिकी है। बतातें हैं इस प्रांत में कोयले की ऐसी करीब तीन हजार से अधिक खदानें हैं। एक अनुमान के अनुसार, इन खदानों में लगभग 40 हजार मजदूर दिन—रात काम में जुूटे रहते हैं। शायद इसीलिए पड़ोसी इस्लामी देश प्रतिवर्ष 45.06 लाख टन कोयले का उत्पादन करता है।
हर रोज चामलंग खदान से कोयले से भरे करीब 200-250 ट्रक निकलते हैं जो विभिन्न हिस्सों में कोयला पहुंचाते हैं। आज वहां 4000-4500 रुपए प्रति टन की कीमत पर कोयला बिक रहा है। हर टन पर प्रांत की सरकार को महज 360 रुपए मिल पाते हैं।
एक और दिलचस्प तथ्य यह है कि इन खदानों की हिफाजत के लिए पाकिस्तान के अर्धसैनिक बल फ्रंटियर कोर को हर टन पर 240 रुपए मिलते हैं। लेकिन इसके उलट चरमपंथी संगठन बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी को खदानों और वहां से निकलने वाले ट्रकों की हिफाजत के नाम पर 260 रुपए प्रति टन के हिसाब से हफ्ता दिया जा रहा है। और मजेदार बात यह कि यह पैसा इस गुट के बैंक खाते में ट्रांस्फर की जाती है।
इतना ही नहीं, टीटीपी जैसे दुर्दांत आतंकी संगठन तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान को भी खदानों पर हमला न करने के लिए प्रति टन 60 रुपए देकर मनाया गया हैं। पर्दे के सामने तो पाकिस्तान की सरकार किसी भी संगठन को इस प्रकार का हफ्ता देने की बात कबूल नहीं करती है, लेकिन स्थानीय सूत्रों के हवाले से पता चला है कि हफ्ता देने का यह चलन कोई नया नहीं है।
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