जमीनी हालात को गलत आंककर दुस्साहसी कदम उठाने और आतंकवाद को राजनीतिक-कूटनीतिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल करने में ‘माहिर’ पाकिस्तानी सेना और उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने ‘सेल्फ गोल’ कर लिया है। उसे दो-दो झटके लगे हैं। एक, पाकिस्तान अधिक्रांत जम्मू-कश्मीर (पीओजेके) में चल रहे प्रदर्शन का दायरा बढ़कर इस्लामाबाद तक पहुंच गया और दूसरा, पीओजेके में मई के मध्य में सेना के खिलाफ हुए जबरदस्त प्रदर्शन का जवाब सेना समर्थक प्रायोजित रैली-प्रदर्शन से देने की उसकी योजना भी चारों खाने चित हो गई।
पीओजेके के लोगों में सेना की जोर-जबरदस्ती और अपने संसाधनों की संस्थागत लूट के खिलाफ लंबे असरे से गुस्सा पल रहा था। आखिरकार लोगों के सब्र का बांध टूट गया और उन्होंने महंगी बिजली और महंगे आटे के खिलाफ मई के मध्य में बड़े प्रदर्शन का ऐलान कर दिया। इससे निपटने के लिए पाकिस्तान ने अपनी आदत के मुताबिक फौजी ताकत पर भरोसा किया और इसका नतीजा यह हुआ कि प्रदर्शन के दौरान कई जगहों पर हिंसा हुई और कई लोगों की जान चली गई।
उलटा पड़ा दांव
हर समस्या का समाधान जोर-जबरदस्ती और चालबाजी से करने की पाकिस्तान की रणनीति इस बार फिर उलटी पड़ी। बांग्लादेश के ‘अनुभव’ के बाद पाकिस्तान को विरोध प्रदर्शन से डर लगता है। शायद यही कारण है कि मई के दूसरे हफ्ते में हुए प्रदर्शन से निकलते संदेश को दबाने के लिए उसने मोटे तौर पर दो रणनीतियां बनाईं- एक, मई के मध्याह्न के प्रदर्शनों का नेतृत्व करने वालों या उन्हें भड़काने वालों को सार्वजनिक दृष्टि से ओझल कर दिया जाए और दो, सेना के विरोध में हुए प्रदर्शन के जवाब में पूरे पीओजेके में सेना-समर्थक रैलियां निकाली जाएं।
पहली श्रेणी के अंतर्गत हुकूमत की आंखों में पीओजेके के बाग इलाके के कवि और पत्रकार अहमद फरहाद शाह खटक रहे थे। कारण यह था कि 38 साल के फरहाद पीओजेके में पाकिस्तानी सेना के जुल्मों और वहां हो रहे मानवाधिकार उल्लंघनों के खिलाफ बड़ी मुखरता से आवाज उठाते रहे हैं। हुकूमत ने उनपर हाथ डाला, लेकिन वह उसके खिलाफ गया और इस एक घटना ने पीओजेके में हो रहे प्रदर्शनों के व्याप को बढ़ाकर इसे इस्लामाबाद तक पहुंचा दिया।
शाह पर हाथ डालने की कीमत
फरहाद की पत्नी सायदा उरूज जैनब के अनुसार ‘14-15 मई की मध्य रात्रि को फरहाद शाह को इस्लामाबाद स्थित उनके घर के सामने से चार लोगों ने अगवा कर लिया। फरहाद को एक बड़ी कार में ले जाया गया। लोग चार गाड़ियों से आए थे।’ जैनब से बातचीत में फरहाद ने कई बार अपनी जान को खतरा बताया था और यही वजह है कि जैसे ही फरहाद को अगवा किया गया, जैनब ने तत्काल इस्लामाबाद उच्च न्यायालय में याचिका डालते हुए आशंका जताई कि फौज और प्रशासन के खिलाफ आवाज उठाने के लिए संभवत: उन्हें आईएसआई ने अगवा कर लिया है।
उच्च न्यायालय में 15 मई को ही याचिका डाली गई थी और उसी दिन दोपहर 3 बजे तक रक्षा मंत्रालय से जवाब तलब कर लिया गया जिसमें अदालत को बताया गया कि फरहाद आईएसआई की गिरफ्त में नहीं हैं। इस पर जज ने पाकिस्तान के अटार्नी जनरल (एजीपी) मंसूर उस्मान अवान को चार दिन के भीतर फरहाद को खोजने का आदेश देते हुए साफ किया कि इसकी पूरी जिम्मेदारी खुद उनकी होगी।
इसके साथ ही अदालत ने 29 मई को आईएसआई और मिलिट्री इंटेलिजेंस के सेक्टर कमांडरों, इंटेलिजेंस ब्यूरो के निदेशक, कानून मंत्री आजम नजीर तरार के अलावा रक्षा, कानून और गृह मंत्रालय के सचिवों को भी पेश होने का निर्देश दिया। अदालत के ऐसे सख्त रुख का ही नतीजा रहा कि 29 मई को एजीपी अवान ने अदालत को बताया कि फरहाद पुलिस की हिरासत में है और उसे कोहाला नाके से सरकारी अधिकारी को उसके कामकाज में बाधा पहुंचाने के लिए गिरफ्तार किया गया था। उसके खिलाफ कोहाला नाके के प्रभारी शौकत की शिकायत पर कथित तौर पर एफआईआर दर्ज की गई है।
जाहिर है, आईएसआई और सेना ने वही किया जो वह बलूचिस्तान में अक्सर करती रही है- अगर कोई मामला इस तरह तूल पकड़ ले कि उनके लिए अपनी गर्दन बचानी मुश्किल हो जाए तो स्थानीय पुलिस को सामने लाकर पल्ला झाड़ लो। फरहाद किस्मत वाले रहे कि उनकी पत्नी बिना समय गंवाए उच्च न्यायालय के पास पहुंच गई जिसके कारण फिलहाल तो उनकी खैरियत की उम्मीदें बंध गई हैं। 29 मई को ही मुजफ्फराबाद के सदर थाने में परिवार वालों से फरहाद को मिलाया गया।
प्रदर्शन का दायरा बढ़ा
सेना और आईएसआई ने बेशक फरहाद को अगवा किए जाने के मामले से फिलहाल अपना दामन साफ कर लिया है, लेकिन इसका एक असर यह जरूर हुआ कि पीओजेके में हो रहा प्रदर्शन इस्लामाबाद तक पहुंच गया। फरहाद की रिहाई के लिए 28 मई को इस्लामाबाद में बड़ा प्रदर्शन हुआ। इसमें फरहाद की मां समेत उनके सगे-संबंधियों, दोस्तों ने भाग लिया। फरहाद की मां के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे और वे रुंधी आवाज में बेटे की रिहाई की मांग कर रही थीं। प्रदर्शन में उन लोगों के दोस्तों-रिश्तेदारों ने भी भाग लिया जो पहले से लापता हैं और उनकी कोई खैर-खबर नहीं है। मानवाधिकार संगठन के कार्यकर्ता भी इसमें शामिल हुए। हुआ वही जिससे पाकिस्तान बचना चाह रहा था- पीओजेके में हो रहे प्रदर्शन को देश-विदेश में सुर्खियां बनने से रोकना।
मरी के सैन्य कमांडर की भूमिका
पीओजेके में हुए हालिया प्रदर्शन की काट के तौर पर मुजफ्फराबाद समेत जगह-जगह पर सेना के समर्थन में रैली निकालने का फैसला किया गया। पीओजेके के मामले में सारे महत्वपूर्ण फैसले पंजाब के मरी में तैनात 12 इन्फैंट्री डिवीजन के दो सितारा कमांडर लेते हैं। यहां के प्रशासन पर मुर्री के इस डिवीजन का कैसा दबदबा है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब भी कोई खास बात होती है, मरी का कमांडर पीओजेके के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति समेत प्रशासनिक अधिकारियों को सीधे तलब तक कर लेता है। इस बात को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि पिछले साल अप्रैल में सरदार तनवीर इलियास की चुनी गई सरकार को सेना ने सत्ता से बेदखल कर चौधरी अनवारुल हक के नेतृत्व में कठपुतली सरकार बनवा दी थी। इसका कारण यह था कि मुर्री के कमांडर के निर्देशों का पालन करने में तनवीर हीला-हवाली कर रहे थे।
27 मई के प्रस्तावित विरोध प्रस्ताव से निपटने का पूरा खाका भी मरी में तैयार हुआ जिसके तहत मई 11-14 के बीच हुए प्रदर्शनों में अहम भूमिका निभाने वाले लोगों को हिरासत में लेने के साथ ही पीओजेके में 26 मई को सेना समर्थक रैलियां निकालने का फैसला हुआ। मिली जानकारी के अनुसार इसके लिए पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) और आॅल जम्मू एंड कश्मीर मुस्लिम कॉन्फ्रेंस जैसे राजनीतिक दलों को मरी तलब किया गया था। पीओजेके की मुखौटा सरकार में ये दोनों दल भागीदार हैं। इसमें एक बड़ी रैली कोहला से मुजफ्फराबाद तक निकालने का फैसला हुआ।
पंजाब के मरी और पीओजेके में पड़ने वाले कोहला के बीच मुश्किल से 30 किलोमीटर का फासला है और मरी में तैनात 12वीं इन्फैंट्री डिवीजन ने इस बात का पूरा ध्यान रखा कि कोहला से मुजफ्फराबाद के बीच निकाली जाने वाली सेना समर्थक रैली में गाड़ियों से लेकर लोग तक जुटाए जा सकें। यह सफल भी रही क्योंकि इसमें सैकड़ों गाड़ियां थीं। बसों, कारों से लेकर मोटरसाइकिलों पर सवार हजारों लोग इसमें शामिल हुए। इस रैली को निकाला था आल जम्मू एंड कश्मीर मुस्लिम कॉन्फ्रेंस ने।
लेकिन इस रैली को छोड़कर पीओजेके में निकाली गई किसी भी रैली में मुट्ठी भर लोग ही जुटे। स्थिति यह थी कि ज्यादातर जगहों पर लोगों की संख्या 25-30 ही रही। केवल मुजफ्फराबाद में निकाली गई रैली में 100-150 लोगों ने भाग लिया।
भीड़ नदारद रही
पीओजेके में पीपीपी का जनाधार कैसा है, इसका अंदाजा इसी बात से लग गया कि उसने अपने बड़े नेताओं को सड़क पर उतार दिया, उसके बाद भी लोग इन रैलियों में शामिल नहीं हुए। सेना के समर्थन में रैलियां निकालने का आह्वान पीपीपी के पीओजेके अध्यक्ष चौधरी मोहम्मद यासीन ने किया था। मुजफ्फराबाद में सचिवालय से लेकर आजाद चौक तक निकाली गई रैली में पीओजेके की विधानसभा के स्पीकर चौधरी लतीफ अकबर, पीओजेके में सूचना विभाग का काम देखने वाले सरदार जावेद अयूब, मंगला बांध मामले के मंत्री कासिम मजीद अली नकवी जैसे नेताओं के अलावा सरदार हैदर, बशीर मुनीर, जहांगीर अली नकवी जैसे लोग भी शामिल हुए। सचिवालय पर उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए लतीफ अकबर ने कहा कि कश्मीरियों के पाकिस्तान से रिश्ते पाकिस्तान के जन्म से भी पुराने हैं और इसमें कोई अंतर नहीं आने वाला।
सेना के विरुद्ध प्रदर्शन
मई के दूसरे सप्ताह में हुए भारी विरोध प्रदर्शन से सरकार और पीओजेके में सारे फैसले लेने वाली सेना बौखलाई हुई थी और इससे निपटने के लिए उसने वही किया, जिस पर उसे सबसे ज्यादा भरोसा है- ताकत के बूते आम लोगों के विरोध को दबाने की कोशिश। पिछले प्रदर्शन के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले लोगों को सुरक्षा बलों ने गिरफ्तार कर लिया और जैसे-जैसे यह खबर फैलने लगी, लोगों ने कई जगहों पर सेना और सरकार के खिलाफ रैलियां निकालीं।
इन दोनों तरह की रैलियों में बड़ा अंतर यह था कि जहां सेना के समर्थन में निकाली गई रैलियों में कम ही सही, लेकिन कुछ समय तो तैयारी के लिए मिल ही गया था, अपने नेताओं की गिरफ्तारी के खिलाफ पीओजेके के आम लोगों की रैलियां स्वत:स्फूर्त थीं। कई जगहों पर रैलियां निकाली गईं और पाकिस्तान के खिलाफ नारे लगे। मिली जानकारी के मुताबिक 27 मई को पीर पंजाल घाटी स्थित पुंछ जिले के सबसे बड़े शहर रावलाकोट में सैकड़ों लोग सड़कों पर उतर आए और उन्होंने अपने लोगों की रिहाई की मांग की। इन रैलियों का आयोजन जम्मू कश्मीर ज्वाइंट एक्शन कमेटी ने किया था। रैली में पीओजेके के लोगों को उनका अधिकार देने, फौजी अत्याचार बंद करने, आम लोगों के खून का हिसाब देने जैसी मांगें की गईं।
ऐसी ही एक रैली में कोहला से मुजफ्फराबाद के बीच निकाली गई। रैली में हजारों लोगों के शामिल होने का जिक्र करते हुए एक जनसभा में लोगों से अपील की गई कि जो भी लोग सेना के बहकावे में आकर उनका समर्थन कर रहे हैं, ऐसे लोगों का बहिष्कार करें- ‘‘इस गरीब रियासत के लोगों को बिजली के मद में 27 खरब रू. खर्च करने पड़ते हैं जबकि सारा पैसा चंद लोगों की जेब में जाता है। वे हमेशा हमें लूटते आए हैं। ये बेगैरत लोग हैं और हममें से जो भी इन लोगों के इस्तकबाल के लिए जाता है, उसे अपने बिरादरी, अपने कबीले से निकाल बाहर करें।’’
पुंछ नदी के किनारे स्थित कोटली में भी 27 मई को सेना के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन हुआ और गिरफ्तार किए गए नेताओं को तत्काल रिहा करने की मांग की गई। लोगों ने इस बात पर नाराजगी जताई कि बड़ी संख्या में लोगों को झूठे मामलों में फंसाकर हिरासत में ले लिया गया है। ज्वाइंट एक्शन कमेटी के आह्वान पर पीओजेके में जगह-जगह निकाली गई ये रैलियां सेना के समर्थन में निकाली गई रैलियों पर भारी रहीं।
इससे एक बार फिर यह साबित हुआ कि पीओजेके के लोगों में शासन-प्रशासन के खिलाफ गुस्सा भरा हुआ है और वह बाहर निकलने को बराबर बेताब रहता है। पाकिस्तानी फौज के रिकार्ड को देखते हुए यही कहा जा सकता है कि इस गुस्से को समय-समय पर पलीता लगाकर भड़काने का काम वह खुद कर देती है। इसका उदाहरण पाकिस्तान के विभिन्न अशांत क्षेत्रों में देखा जा सकता है। इसलिए पीओजेके के आसमान पर एक बड़े बवंडर को आकार लेते महसूस किया जा सकता है।
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