इस अखबार के हिसाब से ‘आने वाले पांच साल के दौरान भी भारत और चीन के बीच संबंध पटरी पर नहीं आएंगे’। ध्यान रहे, यह उस देश का सरकारी भोंपू लिख रहा है जिसके नेताओं के साथ विपक्षी दल कांग्रेस के कुनबाई नेता राहुल गांधी अपने कुछ दरबारियों के साथ गुपचुप मिलते हैं और कोई ‘संधि’ करते हैं!
चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के वफादार अखबार ग्लोबल टाइम्स ने भारत में लोकसभा चुनाव परिणाम आने के फौरन बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सामने आने वाली ‘चुनौतियां’ गिनाना शुरू कर दिया। चुनाव के दौरान इसी अखबार ने मोदी की प्रचंड जीत की संभावनाएं जताई थीं। लेकिन अब विशेष उत्साह दर्शाते हुए इसने आगे मोदी के सामने आने वाली ‘दिक्कतें’ गिनाकर अपने यहां के नेताओं की सोच को झलकाया है।
इस अखबार ने एक लेख प्रकाशित करके भारत के संसदीय चुनाव में राजग की जीत को लेकर अनेक मुद्दे गिनाए हैं जिन पर बढ़ने को लेकर ‘मोदी को दिक्कतें आ सकती हैं’। लेख के अनुसार ‘विशेषज्ञ मानते हैं कि आगे के पांच साल भारत के निराशा भरे हो सकते हैं’। इस अखबार के हिसाब से ‘आने वाले पांच साल के दौरान भी भारत और चीन के बीच संबंध पटरी पर नहीं आएंगे’। ध्यान रहे, यह उस देश का सरकारी भोंपू लिख रहा है जिसके नेताओं के साथ विपक्षी दल कांग्रेस के कुनबाई नेता राहुल गांधी अपने कुछ दरबारियों के साथ गुपचुप मिलते हैं और कोई ‘संधि’ करते हैं।
आगे यह कम्युनिस्ट दुष्प्रचार का प्रसारक अखबार लिखता है,’भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को सोशल मीडिया पर एक बयान जारी किया और इसमें अपनी तीसरी बार विजय का दावा किया। चीन के विशेषज्ञ मानते हैं कि मोदी की चीन की विनिर्माण क्षमता के साथ टक्कर लेना और भारत के व्यावसायिक माहौल को और अच्छा बनाने की महत्वाकांक्षा की पूर्ति कर पाना टेढ़ी खीर होगा।’
ग्लोबल टाइम्स के अनुसार, ‘क्योंकि मोदी की भारतीय जनता पार्टी अपने गठबंधन के बाद भी संपूर्ण बहुमत हासिल नहीं कर पाई, इसलिए प्रधानमंत्री को आर्थिक सुधार को विस्तार देने में मुश्किल आएगी; संभव है वे राष्ट्रवाद का पत्ता खेलें; विशेषज्ञ मानते हैं कि अब चीन-भारत संबंधों में भी बहुत ज्यादा सुधार होना मुश्किल है।’
अखबार लिखता है कि ‘रुझान देखकर वित्तीय बाजार डर गए हैं, उन्हें मोदी की जबरदस्त जीत की आशा थी, लेकिन रुझान देखने के बाद शेयर तेजी से गिरे। डॉलर के मुकाबले रुपया भी तेजी से नीचे आया। विश्लेषक कहते हैं कि बाजार का हाल देखकर पता चला कि कारोबार तथा वित्तीय गलियारों के साथ ही इंटरनेशनल पैसे वाले भी भारत के अर्थतंत्र के आने वाले दिनों को लेकर बहुत भरोसे में नहीं दिखते।’
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