गुवाहाटी (हि.स.)। मौलाना बदरुद्दीन अजमल नेतृत्व वाली एआईयूडीएफ का असम से एक प्रकार से लोकसभा चुनाव में सफाया हो गया है। और तो और, स्वयं अजमल बुरी तरह से चुनाव हार गए हैं। वहीं, अजमल ने नगांव सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार प्रद्युत बरदलै को चुनाव हराने के लिए अपने जिस उम्मीदवार को खड़ा किया, वह तीसरे स्थान पर चले गए। वहीं, करीमगंज सीट पर भी एआईयूडीएफ अपनी नाक बचाने में सफल नहीं हो सकी।
चुनाव आयोग द्वारा जारी किए गए आंकड़े बताते हैं कि धुबड़ी सीट पर एआईयूडीएफ प्रमुख मौलाना बदरुद्दीन अजमल को 10,12,476 मतों के अंतर से कांग्रेस उम्मीदवार रकीबुल हुसैन ने चुनाव हरा दिया। वहीं, नगांव के एआईयूडीएफ उम्मीदवार अमीनुल इस्लाम तीसरे स्थान पर चले गए। उन्हें कांग्रेस उम्मीदवार प्रद्युत बरदलै ने 6,51,510 मतों के अंतर से चुनाव हरा दिया। इनके अलावा करीमगंज सीट पर एआईयूडीएफ के उम्मीदवार साहाबुल इस्लाम चौधरी को सिर्फ 29,205 वोट ही मिले। वह तीसरे स्थान पर रहे। उन्हें भाजपा उम्मीदवार कृपानाथ मल्लाह ने 5,15,888 मतों से पराजित कर दिया।
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि एआईयूडीएफ की यह पराजय एक प्रकार से बदरुद्दीन अजमल के राजनीतिक रंगमंच का पटाक्षेप है। अजमल पर आरोप लगते रहे हैं कि दो दशक तक उन्होंने न सिर्फ असम में सांप्रदायिकता की राजनीति की, बल्कि सरेआम धनबल की राजनीति को भी आगे बढ़ाया। चुनाव के दौरान टिकटों के बंटवारे से लेकर हर मौके पर जिस प्रकार से राजनीति को उन्होंने धन अर्जित करने का हथकंडा बनाया- वह आखिरकार उनके लिए आत्मघाती साबित हुआ। इत्र के सम्राट अजमल झाड़-फूंक और प्रलोभन की राजनीति के बल पर तकरीबन दो दशक तक सत्ता का सुख भोगते रहे। सरकार चाहे जिस किसी भी पार्टी की बनी, लेकिन अजमल के कारोबार को उससे लाभ ही प्राप्त हुआ।
अजमल न सिर्फ विभिन्न मौके पर अपनी पार्टी के नेताओं और पत्रकारों के साथ बदसलूकी करते नजर आए, बल्कि अनेक सार्वजनिक कार्यक्रमों में उन्हें खुलेआम लोगों को अपमानित करते देखा गया। ऐसा एक भी व्यक्ति नहीं मिलता जो अजमल को व्यक्तिगत तौर पर पसंद करने वाला हो।
दो दशक तक वह बांग्लादेशी घुसपैठी मुसलमानों के सहारे राजनीति करते रहे। इस दौरान बांग्लादेशी संदिग्ध नागरिक ”डी वोटर” बनते रहे। डिटेंशन कैंपों में इनकी तादाद बढ़ती रही और अजमल भाषणबाज़ी करते रहे।
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