पुण्यश्लोक देवी अहिल्याबाई होल्कर की त्रिशताब्दी का ये वर्ष है। आज की स्थिति में भी उनका चरित्र आदर्श के समान है। दुर्भाग्य से उनको वैधव्य प्राप्त हुआ, लेकिन एक अकेली महिला होने के बाद भी उन्होंने अपने बड़े राज्य को केवल संभालना नहीं, बल्कि बड़ा करना और केवल राज्य को बड़ा ही नहीं किया। बल्कि, उसे सुराज्य के तौर पर बड़ा किया। यह कहना है राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत जी का।
देवी अहिल्याबाई होलकर के त्रिशताब्दी वर्ष के अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने मां अहिल्याबाई होल्कर को लेकर कहा कि राज्यकर्ता कैसा हो, वो उदाहरण थीं। उनके नाम के पीछे ‘पुण्यश्लोक’ शब्द लगा हुआ है। पुण्यश्लोक उस राजकर्ता को कहते हैं, जो कि अपनी प्रजा को हर तरह के अभावों, दुखों से मुक्त करता है। यानि कि एक तरह से अपनी प्रजा के कर्तव्य से उऋण हो जाता है। वास्तव में उस काल में हमारे यहां जो आदर्श राज्यकर्ता हुए, उनमें से एक देवी अहिल्याबाई थीं।
उद्योगों का किया निर्माण
देवी अहिल्याबाई ने प्रजा को रोजगार मिले, इसके लिए उद्योगों का निर्माण किया। ये निर्माण इतना पक्का था कि महेश्वर का वस्त्र उद्योग आज भी चलता है, जिससे बहुत से लोगों को आज भी रोजगार मिलता है। देवी अहिल्याबाई ने प्रजा के सभी अंगों विशेषकर दुर्बल और पिछड़े लोगों का ध्यान रखा। अपने राज्य में कर व्यवस्था को उन्होंने संयमित रखा, किसानों की चिंता की। उनका राज्य सभी प्रकार से सुराज्य था। क्योंकि वो प्रजा की चिंता अपने बच्चों की तरह करती थीं, इसी कारण से ‘देवी अहिल्याबाई’ की उपाधि उन्हें मिली होगी।
नारी शक्ति की प्रतीक हैं देवी अहिल्याबाई
RSS प्रमुख ने कहा मातृशक्ति कितनी सशक्त है, क्या-क्या कर सकती है इसका अनुकरण करने लायक आदर्श देवी अहिल्याबाई थीं, अपने जीवन से हम सब लोगों के सामने रखा है। उन्होंने जो कार्य किए हैं वो कई प्रकार से विशेष हैं। देवी अहिल्याबाई को उस समय के सभी राज्यकर्ता देवी स्वरूपा ही मानते थे। उनके सभी के साथ मित्रतापूर्ण संबंध थे। अपने राज्य पर किसी भी तरह का आक्रमण न हो इसकी उन्होंने कई व्यवस्थाएं कर रखी थीं। उन्हें समर नीति के जानकार के तौर पर भी जाना जाता है। हमारे देश की संस्कृति के आधार को और अधिक पुष्ट करने के लिए उन्होंने देश के कई स्थानों पर मंदिरों का निर्माण करवाया था।
देवी अहिल्याबाई एक राज्यकर्ता होने के बाद भी खुद को राजा नहीं मानती थीं। वो ये मानती थीं कि वो भगवान शिव के आदेश पर राज्य चला रही हैं। आज की हमारी स्थिति में भी हमारे लिए वो एक आदर्श हैं, उनका अनुकरण करने के लिए वर्ष भर उनका स्मरण करने का प्रयास सर्वत्र चलने वाला है, यह अतिशय आनंद की बात है।
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