कहा जाता है कि भारत में तम्बाकू सेवन की शुरुआत मुगलकाल में हुई थी। 15वीं सदी में मुगल आक्रांता अकबर के शासनकाल में वर्नेल नाम का एक पुर्तगाली यात्री उसके दरबार में आया था और उसने अकबर को तम्बाकू और एक चिलम भेंट की थी। अकबर को उसका स्वाद बहुत पसंद आया। इसलिए उसने उस पुर्तगाली के जाने के बाद भी उस शौक को जारी रखा।
अकबर को धुआं उड़ाते देख यह शौक धीरे-धीरे दरबारियों और जनता तक फैलता गया। मुगलकाल में जहांगीर के समय में तम्बाकू की खेती भी भारत में शुरू हो गयी थी। यह भी कहा जाता है कि अकबर के शासनकाल में एक राज कारीगर अब्दुल ने हुक्के का अविष्कार किया था। इस प्रकार भारत में तम्बाकू भरी चिलम व हुक्के की लत मुगलकाल में लगी थी; जो वर्तमान युग तक आते-आते बीड़ी, सिगरेट, गुटखा, खैनी और तमाम तरह के अन्य उत्पादों तक पहुंच चुकी है। इस बुरी लत के दुष्प्रभावों को भारत आज तक भुगत रहा है।
सेहत ही नहीं, पर्यावरण के लिए भी घातक है तम्बाकू
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा गंभीर चेतावनी जारी करते हुए कहा गया है कि आज दुनियाभर में 110 करोड़ से ज्यादा लोग बीड़ी, सिगरेट, हुक्का, गुटखा, जर्दा व खैनी जैसे तम्बाकू जनित उत्पादों के सेवन के आदी हैं। इस हानिकारक लत की वजह से प्रति वर्ष न केवल 80 लाख लोग असमय अपनी जान गंवा रहे हैं, वरन इससे पर्यावरण को भी भारी नुकसान पहुंच रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन और ‘एक्सपोज टोबैको’ द्वारा जारी की गयी इस रिपोर्ट में बताया गया है कि सिगरेट से हर साल आठ करोड़ टन कार्बन डाई ऑक्साइड पर्यावरण में मिल रही है और सिगरेट के निर्माण में हर साल 2200 करोड़ लीटर पानी भी बर्बाद होता है। काबिलेगौर हो कि ‘टोबैको इन हिस्ट्री’ किताब के लेखक जॉर्डन गुडमैन कहते हैं कि मानव सभ्यता के इतिहास में स्वास्थ्य के लिए सबसे घातक उत्पादों में तम्बाकू प्रमुख है। गुडमैन लिखते हैं कि अमेरिका के जेम्स बुकानन ड्यूक द्वारा सिगरेट के आविष्कार और उसे पूरी दुनिया में लोकप्रिय बनाने के फलस्वरूप 20वीं सदी में लगभग दस करोड़ लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा था।
स्वास्थ्य संगठन आंकड़ों के अनुसार चिंताजनक तथ्य यह है भारत दुनिया के सबसे बड़े तम्बाकू उत्पादक और उपभोक्ता देशों में एक है और भारत में तम्बाकू सेवन के कारण हर साल तकरीबन 10 लाख लोग असमय जान से हाथ धो बैठते हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञों और पर्यावरण विज्ञानियों के अनुसार ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे ऑफ इंडिया के अनुसार चेतावनी भरी रिपोर्ट इस मायने में भी कम गंभीर नहीं है कि अपने जीवन को धुंए व गुटखे में बर्बाद करने वाले लोग न केवल अपने शरीर का नुकसान पहुंचा रहे हैं बल्कि अपने आसपास के स्वस्थ लोगों को भी रोगी बना रहे हैं।
कई जानलेवा रोगों की प्रसारक है तम्बाकू
लखनऊ के मशहूर पल्मोनरी (फेफड़ा) विशेषज्ञ डॉ. सूर्यकान्त के अनुसार तम्बाकू के सेवन का सीधा असर दिमाग पर पड़ता है। बीड़ी- सिगरेट पीने और तम्बाकू खाने वाले व्यक्ति को लगता है कि इसे खाने से उसे एक तरह की दिमागी शांति मिल रही है और वो धीरे-धीरे इसका आदी होता जाता है। ऐसे लोगों को जब तम्बाकू के जानलेवा खतरों का बोध होता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।
लखनऊ के लोहिया रिसर्च इन्सटीटयूट के कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉ. गौरव गुप्ता के अनुसार सिगरेट व तम्बाकू की लत से मुख व फेफड़ों का कैंसर, दांत-मुंह से संबंधित बीमारियां, टीवी, दिल के रोग, निमोनिया, नपुंसकता, अस्थमा जैसे सांस के रोग तथा प्रजनन सम्बन्धी रोग हो जाते हैं। इसकी लत से महिलाओं को माहवारी से जुड़ी समस्याएं तथा गर्भधारण में समस्या होती है। तम्बाकू के लती लोग पूरी तरह अपना मुंह नहीं खोल पाते। उनके मुंह के अन्दर दोनों ओर सफेद लाइन कैंसर का संकेत होती है।
हिन्दू धर्मग्रन्थ करते हैं नशे का निषेध
स्कन्द पुराण में कहा गया है कि स्वधर्म का आचरण करके जो पुण्य प्राप्त किया जाता है, वह नशा करने से नष्ट हो जाता है। इस कुटेव के कारण पात्र व्यक्ति को भी विभिन्न तीर्थो में स्नान-दान और जप-तप का पुण्यफल भी नहीं मिलता। ऋषि मनीषा कहती है कि नशे की लत से मनुष्य के हृदय में दूषित वृत्तियों का जन्म होता है और उसके विचार अशुद्ध हो जाते हैं।
हालांकि चरक, सुश्रुत व वाग्भट जैसे मनीषियों के हजारों वर्ष पूर्व रचे गये आयुर्वेद ग्रन्थों में धूम्रपान का विधान मिलता है किन्तु गौरतलब तथ्य यह है कि इन ग्रंथों में औषधियों के धूम्रपान का वर्णन है। जैसे एक स्थान पर महर्षि चरक ने उल्लेख किया है कि आम के सूखे पत्ते को मिट्टी के पात्र में सुलगा कर धूम्रपान करने से गले के रोगों में आराम होता है। दमा तथा श्वास संबंधी रोगों में वासा (अडूसा) के सूखे पत्तों का धूम्रपान प्रभावशाली उपाय बताया गया है। इसी तरह आयुर्वेद ग्रन्थों में भांग का सेवन भी औषधीय रूप में करने की बात कही गयी है।
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