किसी चिंगारी को शोले में कैसे बदला जा सकता है, यह कोई पाकिस्तान और इसके फौजी रणनीतिकारों से पूछे। हाल ही में पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (POJK) में जिस तरह पाकिस्तान की सरकार और फौज के खिलाफ जबर्दस्त प्रदर्शन हुआ और लोगों ने जगह-जगह पर सैनिकों को दौड़ा-दौड़ाकर पीटा, उससे बौखलाई फौज ने समस्या के समाधान का जो फॉर्मूला निकाला, वह आग में घी का काम कर रहा है।
पूरे पीओजेके में सेना के पक्ष में प्रायोजित रैलियां निकाली गईं और इसके साथ ही ऐहतियात के तौर पर कई लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया ताकि फिर कोई बवाल न खड़ा हो जाए। लेकिन, हुआ इसका उल्टा और नेताओं की गिरफ्तारी के विरोध में जगह-जगह रैलियां निकाली गईं और सेना समर्थक रैलियों के विपरीत इन रैलियों में बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए।
सेना की खुली पोल
पीओजेके में जो-कुछ भी होता है, उसका फैसला सेना करती है और इसके लिए पीओजेके की मुखौटा सरकार को बता दिया जाता है कि क्या करना है। इस बार भी वैसा ही हुआ। मुजफ्फराबाद समेत पीओजेके के अलग-अलग इलाकों में जिस तरह सरकार के विरोध में लोगों ने रैलियां निकाली थीं और जिसे दबाने में फौज के पसीने छूट गए थे। उसकी ‘लोहे को लोहा काटता है’ की तर्ज पर सेना के समर्थन में रैलियां निकालने की योजना बनी। इसके लिए पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) और ‘ऑल जम्मू एंड कश्मीर मुस्लिम कॉन्फ्रेंस’ जैसे राजनीतिक दलों को जरूरी निर्देश दे दिए गए और उसी के मुताबिक 26 मई को पीओजेके के विभिन्न इलाकों में सेना के समर्थन में रैलियां निकाली गईं।
पीओजेके में मुखौटा सरकार है, उसमें ये दोनों दल भागीदार हैं। बहरहाल, शायद रैलियां निकालने का फैसला इतनी जल्दबाजी में हुआ कि कोहाला से मुजफ्फराबाद तक निकाली गई गाड़ियों की रैली को छोड़कर किसी और रैली के लिए लोगों को जुटाने का ‘इंतजाम’ नहीं हो सका और इनमें मुट्ठी भर लोग ही जुटे।
कोहाला से मुजफ्फराबाद के लिए निकाली गई गाड़ियों की रैली में सैकड़ों गाड़ियां जरूर शामिल हुईं जिसमें बसों, कारों से लेकर मोटरसाइकिल सवार तक थे। अंदाजा है कि इसमें हजारों लोग शामिल हुए। इस रैली को निकाला था ‘ऑल जम्मू एंड कश्मीर मुस्लिम कॉन्फ्रेंस’ ने। इस रैली को सफल बनाने के लिए सेना ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। लेकिन, इस रैली को छोड़कर पीओजेके में निकाली गई किसी भी रैली में मुट्ठी भर लोग ही जुटे। स्थिति यह थी कि ज्यादातर जगहों पर लोगों की संख्या 25-30 ही रही। केवल मुजफ्फराबाद में निकाली गई रैली में 100-150 लोगों ने भाग लिया।
पीपीपी नहीं जुटा सकी भीड़
पीओजेके में पीपीपी का जनाधार कैसा है, इसका अंदाजा इसी बात से लग गया कि उसने अपने बड़े नेताओं को सड़क पर उतार दिया, लेकिन उसके बाद भी लोग इन रैलियों में शामिल नहीं हुए। सेना के समर्थन में रैलियां निकालने का आह्वान पीपीपी के पीओजेके अध्यक्ष चौधरी मोहम्मद यासीन ने किया था। पूरे पीओजेके में निकाली गई रैलियां किस तरह विफल रहीं इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मुजफ्फराबाद में सचिवालय से लेकर आजादी चौक तक निकाली गई रैली में पीपीपी के कई बड़े नेताओं के शामिल होने के बाद भी नतीजा ढाक के तीन पात रहा।
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इसमें पीओजेके की विधानसभा के स्पीकर चौधरी लतीफ अकबर, पीओजेके में सूचना विभाग का काम देखने वाले सरदार जावेद अयूब, मंगला बांध मामले के मंत्री कासिम मजीद अली नकवी जैसे बड़े नेताओं के अलावा सरदार हैदर, बशीर मुनीर, जहांगीर अली नकवी जैसे नेताओं ने भी भाग लिया। सचिवालय पर उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए लतीफ अकबर ने कहा कि कश्मीरियों के पाकिस्तान से रिश्ते पाकिस्तान के जन्म से भी पुराने हैं और इसमें कोई अंतर नहीं आने वाला।
सेना के खिलाफ बड़ा प्रदर्शन
मई के दूसरे सप्ताह में लोगों का सरकार और फौज विरोधी प्रदर्शन उग्र हो गया था और इससे पाकिस्तान की सरकार घुटनों पर आ गई थी। आईएमएफ (अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष) से अपमानजनक शर्तों पर ऋण लेने को मजबूर पाकिस्तान सरकार ने मौके की नजाकत को देखते हुए आटे और बिजली की कीमतों में कमी में ही भलाई समझी और आनन-फानन में इसकी अधिसूचना में जारी हो गई।
लेकिन, फौज इस स्तर के विरोध प्रदर्शन से बौखलाई हुई थी और इससे निपटने के लिए उसने वही किया, जिसपर उसे सबसे ज्यादा भरोसा है- ताकत के बूते आम लोगों के विरोध को दबाने की कोशिश। पिछले प्रदर्शन के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले लोगों को सुरक्षा बलों ने गिरफ्तार कर लिया और जैसे-जैसे यह खबर फैलने लगी, लोगों ने कई जगहों पर सेना और सरकार के खिलाफ रैलियां निकालीं। इन दोनों तरह की रैलियों में बड़ा अंतर यह था कि जहां सेना के समर्थन में निकाली गई रैलियों में कम ही सही, लेकिन कुछ समय तो तैयारी के लिए मिल ही गया था, लेकिन अपने नेताओं की गिरफ्तारी के खिलाफ पीओजेके के आम लोगों की रैलियां स्वत:स्फूर्त थीं।
कई जगहों पर रैलियां निकाली गईं और पाकिस्तान के खिलाफ नारे लगे। मिली जानकारी के मुताबिक 27 मई को पीर पंजाल घाटी स्थित पुंछ जिले के सबसे बड़े शहर रावलाकोट में सैकड़ों लोग सड़कों पर उतर आए और उन्होंने अपने लोगों की रिहाई की मांग की। इन रैलियों का आयोजन जम्मू कश्मीर ज्वाइंट ऐक्शन कमेटी ने किया था। रैली में पीओजेके के लोगों को उनका अधिकार देने, फौजी अत्याचार बंद करने, आम लोगों के खून का हिसाब देने जैसी मांगें की गईं।
पिछले प्रदर्शन के बाद से ही इस तरह की अटकलें थीं कि मजबूरी में ‘खरीदी’ गई यह शांति बहुत दिन नहीं टिकने वाली और फिलहाल पाकिस्तान की सरकार और फौज ने जो रणनीति अपनाई है, उससे यही लगता है कि पीओजेके में बहुत जल्द एक और बड़ा जनांदोलन देखने को मिलेगा।
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