चमोली: उत्तराखंड में हिमालय की गोद में मौजूद कई ऐसे अनगिनत गुमनाम स्थल है जो आज भी देश दुनिया की नजरों से दूर हैं। यदि ऐसे स्थानों को उचित प्रचार और प्रसार के जरिये देश, दुनिया को अवगत कराया जाय तो इससे न केवल पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा अपितु स्थानीय युवाओं को रोजगार के अवसर भी उपलब्ध हो पायेंगे। जिससे रोजगार की आस में पलायन के लिए मजबूर हो रहे युवाओं के कदम अपने ही पहाड़ में रूक पायेंगे। सीमांत जनपद चमोली की निजमुला घाटी में सात झीलों का एक ऐसा ही खजाना अव्यवस्थित है, जिसे पवित्र सप्तकुंड के नाम से जाना जाता है।
कहाँ है सप्तकुंड
प्राकृतिक खजानों से भरी पड़ी चमोली की निजमुला घाटी में झींझी गांव से 24 किमी की दूरी पर स्थित है प्रकृति की अनमोल नेमत सप्तकुंड। सात झीलों या सात कुंडों के समूह को कहते हैं। यहाँ पर ये सभी सात कुंड एक दूसरे से आधे-आधे किमी की दूरी पर स्थित है। लगभग 5 हजार मीटर की ऊंचाई पर हिमालय में मौजूद सात झीलों की मौजूदगी अपने आप में कौतूहल और आश्चर्य का विषय है। वहीं, साहसिक पर्यटन और पहाड़ के शौकीनों के लिए सप्तकुंड, रोमांचित कर देने वाला ट्रैक है।
ये है सात कुंड
देवभूमि एडवेंचर एवं ट्रैकर के प्रबंधक और सप्तकुंड ट्रैकिंग कराने वाले युवा मनीष नेगी कहते हैं कि सप्तकुंड में मौजूद सात झीलों में से छः झीलों में पानी बेहद ठंडा जबकि एक झील में पानी गर्म है। गर्म पानी के कुंड में स्नान करने से पर्यटकों की पूरी थकान दूर हो जाती है। सात कुंडों में पार्वती कुंड, गणेश कुंड, शिव कुंड, ऋषि नारद कुंड, नंदी कुंड, भैरव कुंड, शक्ति कुंड के नाम से जाना जाता है। इन सात कुंडों में छह कुण्डों का पानी इतना ठंडा है कि उसमें एक डुबकी लगाना भी मुश्किल हो जाता है, जबकि, एक कुंड का पानी इतना गरम है कि उसमें नहाने से पर्यटकों की थकान दूर हो जाती है। सप्तकुंड पहुंचने के लिए एशिया के सबसे कठिन पैदल ट्रैक को पार करना पड़ता है। सप्तकुंड ट्रैक साहसिक ट्रैकिंग के शौकीनो के लिए ऐशगाह से कम नहीं है। लेकिन, उचित प्रचार और प्रसार न होने से प्रकृति का ये अनमोल नेमत आज भी देश दुनिया की नजरों से दूर हैं।
ये है धार्मिक मान्यता
सप्तकुंड के बेस कैम्प गांव झींझी के युवा हैरी नेगी और फोटोग्राफर देव नेगी बताते हैं कि सप्तकुंड भगवान शिव का निवास स्थान है। प्रत्येक साल भादों के महीने आयोजित नंदा अष्टमी के दिन स्थानीय गांव ईराणी, झींझी, पाणा, रामणी, दुर्मी, पगना सहित निजमुला घाटी के ग्रामीण यहाँ पहुंचते हैं और भगवान शिव और भगवती नंदा की पूजा करते हैं। जबकि, प्रत्येक 6 वर्ष में माँ नंदा कुरूड की दशोली डोली नंदा की वार्षिक लोकजात यात्रा में नंदा सप्तमी को सप्तकुंड में पराकाष्ठा पर पहुंचती है। लोकजात संपन्न के पश्चात वापस रामणी गांव लौट जाती है। हिमालय के कोने-कोने का भ्रमण कर चुके प्रकृति प्रेमी और ट्रैकर बृहषराज तडियाल कहते हैं कि सप्तकुंड में आकर जो शांति और शुकुन मिलता है वो अन्यत्र कहीं नहीं। यहां अदृश्य दैवीय शक्ति का वास है जो शरीर को नयी ऊर्जा देती है। इन शक्तियों को यहाँ आकर महसूस किया जा सकता है। सप्तकुंड की सुंदरता आपका मन मोह देगी। ऐसी सुंदरता अन्यत्र कहीं नहीं है। ये हिमालय में मौजूद साक्षात स्वर्ग है।
पूरे ट्रैक में होते हैं हिमालय के विहंगम दीदार
झींझी गांव और ईराणी गांव से सप्तकुंड की दूरी लगभग 24 किमी पैदल चलकर पूरा किया जा सकता है। स्थानीय निवासी मोहन सिंह नेगी और चंदू नेगी का कहना है ये कि सप्तकुंड ट्रैक में आपको हिमालय के दीदार होते हैं। ट्रैक के दौरान बांज, बुरांस, देवदार, कैल, खोरू, भोज, सहित नाना प्रकार के पेड़ो की छांव में थकान मिटाने का अवसर मिलता है वहीं सप्तकुंड के बीच में झींझी गांव से 10 किमी पर पड़ने वाले सिम्बें के मखमली बुग्याल में सैकड़ों प्रकार के फूलों की खूबसूरती पर्यटकों को रोमांचित करती है साथ ही थकान भी काफूर हो जाती है। सिम्बे बुग्याल को देखकर पर्यटक फूलों की घाटी को भूल जाते हैं। वहीं इस दौरान औषधीय पौधों को भी देखा जा सकता है।
जबकि, दर्जनों प्रकार के हिमालयी जीव जंतु और पशु पक्षियों की झलक और चहचाहट भी देखने को मिलती है, जो बेहद आनंदित करने वाला होता है। पूरे ट्रैक में प्राकृतिक सुषमा और झरने भी रोमांचित करते हैं। चेज हिमालय के प्रबंधक विमल मलासी कहते हैं कि सप्तकुंड पहुंचते ही पर्यटकों को हिमालय की हिमाच्छादित चोटियों के विह्गंम दृश्यों का दीदार करने का अवसर मिलता है। सप्तकुंड से हिमालय की नंदा घुंघुटी, त्रिशूल, नंदा देवी, चौखम्भा, बंदरपुंछू, सहित हिमालय की बडी श्रृंखलाओं को देखा जा सकता है। यहाँ पहुंचकर ऐसा आभास होता है कि जैसे भगवान नें खुद आकर यहाँ की सुंदरता उकेरी हो। लेकिन तमाम खूबियों के बाद भी सप्तकुंड आज भी देश दुनिया की नजरों से ओझल है। सरकार और पर्यटन विभाग को चाहिए की सप्तकुंड को पर्यटन मानचित्र पर लाने के लिए विशेष कार्ययोजना बनाई जानी चाहिए ताकि पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा साथ ही स्थानीय युवाओं को रोजगार के अवसर भी मिलेंगे।
ऐसे पहुंचा जा सकता है सप्तकुंड
ऋषिकेश से चमोली वाहन द्वारा
चमोली से निजमुला वाहन द्वारा
निजमुला से ईराणी/झींझी वाहन द्वारा/ पैदल
झींझी से सप्तकुंड पैदल – 24 किमी
वास्तव में देखा जाए तो उत्तराखंड में सप्तकुंड जैसे अनगिनत गुमनाम स्थल है जिन्हें देश दुनिया के सामने लाना जरूरी है। ताकि उत्तराखंड को नयी पहचान मिल सके। अगर आप भी साहसिक पर्यटन के शौकीन हैं तो चले आइये सप्तकुंड।
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