गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर का कहना था कि भारत को जानना है तो विवेकानन्द को पढ़ो। उसमें सब कुछ सकारात्मक है और कुछ भी नकारात्मक नहीं है। रोम्या रोलां ने कहा था कि एक महान आवाज आकाश को भरने के लिए होती है। पूरा विश्व इसका ध्वनि पिटारा है। विवेकानंद जैसे मानव मात्र फुसफुसाहट के लिए नहीं पैदा होते । वे केवल घोषणा कर सकते हैं। सूरज अपनी किरणों को मध्यम नहीं कर सकता। वह अपनी भूमिका के प्रति गहराई से सचेत थे। वेदांत को उसकी अस्पष्टता से बाहर लाना और उसे तर्कसंगत रूप से स्वीकार्य तरीके से प्रस्तुत करना , अपने देशवासियों में अपनी आध्यात्मिक विरासत के बारे में जागरूकता पैदा करना और उनके आत्मविश्वास को पुनः जागृत करना ; यह दिखाना कि वेदांत की गहरी सच्चाई सार्वभौमिक रूप से मान्य हैं और भारत का मिशन पूरे विश्व के लिए इन सच्चाइयों को संप्रेषित करना है – ये वे लक्ष्य थे जो उन्होने अपने सम्मुख निर्धारित किए थे।
स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में जो भाषण दिया था उसकी चर्चा खूब होती है, लेकिन उन्होंने मद्रास में भी एक यादगार भाषण दिया था। यह भाषण उन्होंने 14 फरवरी 1897 को दिया था। इसका शीर्षक था ‘भारत का भविष्य’। इसमें उन्होंने कहा था कि भारत आध्यात्मिक रत्नों का एक महान भंडार है, इसे समावेशी शिक्षा और सांस्कृतिक ज्ञान के विस्तार के लिए लोकतांत्रिक और लोकप्रिय बनाना होगा। भारत की एकता और भारत माता पूजा का आह्वान करते हुए उन्होंने कहा कि अगले पचास वर्षों तक केवल यही हमारी मुख्य बात होगी – यह हमारी महान भारत माता। यह एकमात्र देवता है जो जाग रहा है। यह हमारी अपनी जाति – उसके हाथ, उसके पैर, उसके कान, हर स्थान को हर प्रकार से आच्छादित करता है। सबसे पहले पूजा विराट की पूजा है – हमारे चारों ओर के लोगों की। इनकी पूजा करें। हमें एक-दूसरे से ईर्ष्या करने और एक-दूसरे से लड़ने के बजाय इनकी पूजा करनी होगी।
वह खुद से पहले दूसरों के बारे में सोचते थे। घर में कार्य के दौरान एक बार मां शारदा ने उनसे चाकू देने को कहा। विवेकानंद ने धार वाले हिस्से को पकड़कर उन्हें चाकू दिया, । इस पर मां ने कहा कि आज तुम मेरी परीक्षा में सफल हो गए। यह भी पता चला कि तुम्हें मेरी परवाह है। यह एक प्राकृतिक नियम है कि आप जितने महान और बड़े दिल वाले बनेंगे, उतना अधिक प्राप्त करेंगे, और जितना अधिक संकीर्ण सोच वाले बनेंगे, उतना ही कम प्राप्त करेंगे।
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